Sunday, January 30, 2011

अफ्रीकी देश हरियाणा से सीखेंगे खेती-किसानी


कृषि क्षेत्र में हरियाणा की प्रगति गाथा सुनकर अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि अभिभूत हैं। कृषि, बागवानी, खाद्य प्रसंस्करण, कृषि शिक्षा और औद्योगिक तकनीक के क्षेत्र में हरियाणा के सहयोग का भरोसा दिलाने पर वहां के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपने देश आने का न्योता दिया। हुड्डा शुक्रवार को यहां अफ्रीकी देशों के दूतावासों के साथ संयुक्त कृषि व्यापार संबंधों पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे। द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर देते हुए हुड्डा ने कहा कि इसमें काफी संभावनाएं हैं। हरियाणा के साथ अफ्रीकी देशों की भागीदारी से नए आर्थिक परिदृश्य का उदय होगा। भारत का अफ्रीकी देशों से तालमेल का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले पांच सालों में द्विपक्षीय व्यापार में चार गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। हरियाणा के विकास का ब्योरा देते हुए हुड्डा ने कहा कि राज्य के पास देश की कुल भूमि का केवल 1.34 फीसदी है। इसी के बल पर राज्य ने प्रगति कर देश में अपना स्थान बनाया है। राज्य में नई औद्योगिक नीति के तहत हरियाणा सरकार द्वारा कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहनों के साथ विशेष ध्यान दिया गया है। मुख्यमंत्री ने नाइजीरिया के किसानों के प्रतिनिधिमंडल को हरियाणा आने का निमंत्रण दिया ताकि उन्हें वहां की प्रगति की जानकारी मिल सके। जबकि युगांडा की उच्चायुक्त मिनिषा जयंत माधवानी ने मुख्यमंत्री हुड्डा को अपने यहां 11 अक्टूबर से आयोजित व्यापार मेले में आने का न्योता भी दिया। उन्होंने अपने साथ विकास के प्रतीक किसानों को भी लाने की अपील की। हुड्डा ने बासमती चावल और मुर्रा भैंसों का भी जिक्र किया, जिनके माध्यम से श्वेत क्रांति सफल हो पाई है। उन्होंने इथोपिया में कृषि, सिंचाई और पशुधन के आदान-प्रदान कार्यक्रमों में सहयोग की पेशकश की। इसमें राज्य के हिसार स्थित लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा अध्ययन विश्वविद्यालय पूरी मदद करेगा। बुर्किना फासो दूतावास के आर्थिक सलाहकार इदरीस राउवा ने टमाटर प्रसंस्करण के क्षेत्र में परस्पर सहयोग की बात कही। पानीपत के अचार उद्योग का जिक्र करते हुए हुड्डा ने कहा कि इससे बुर्किना फासो को काफी लाभ मिल सकता है।

उर्वरता बचाने को हरियाणा ने मांगा विशेष पैकेज


घट रही खेती योग्य भूमि की उर्वरता और नीचे खिसकता जल स्तर हरियाणा की मुश्किलों का सबब बन गया है। फसलों की उत्पादकता घटने को लेकर हरियाणा के माथे पर बल पड़ने लगा है। हरियाणा ने केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से आगामी बजट में राज्य के कृषि क्षेत्र की इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए विशेष पैकेज के प्रावधान की मांग की है। अगले वित्त वर्ष के आम बजट से कृषि क्षेत्र में सुधार को लेकर हरियाणा ने कई उम्मीदें लगा रखी हैं। इनमें भूमि संरक्षण और सिंचाई प्रमुख मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर राज्य की चिंताएं बढ़ गई हैं। उत्पादकता बढ़ाने के चक्कर में रासायनिक खादों का प्रयोग और सिंचाई के लिए भूजल का अंधाधुंध दोहन अब खतरनाक हद तक पहुंच गया है। वैज्ञानिकों ने जल संकट के लिए राज्य को पहले ही सतर्क कर दिया है। आने वाले सालों में फसलों की सिंचाई के लिए भारी संकट पैदा होने वाला है। इसी तरह जल और हवाओं से भूमि का क्षरण भी तेज गति से हो रहा है। हरियाणा ने प्रणब मुखर्जी को सौंपे ज्ञापन में राज्य के लिए खास पैकेज घोषित करने का अनुरोध किया है। हरियाणा को आशंका है कि इसके लिए खास प्रबंध करने में देरी खाद्यान्न की पैदावार के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। यह देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए भी खतरा साबित होगी। राज्य में अब गेहूं व चावल के साथ मक्का और मोटे अनाज को भी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में शामिल किए जाने की जरूरत है। कृषि उत्पादकता की थम रही रफ्तार को गति प्रदान करने के लिए हरियाणा ने पशुधन विकास व दुग्ध उत्पादन बढ़ाने का सुझाव दिया है। हालांकि इसकी राह में पशुचारे की किल्लत बड़ी मुश्किल है। हरियाणा की ओर से इसके लिए जरूरी कदम उठाने की बात कही गई है।

खुदकुशी कर रहे कर्ज में डूबे किसान


उड़ीसा के बरगढ़ जिले में महज एक माह के दौरान चार किसानों ने आत्महत्या कर ली। बेमौसम बारिश की वजह से फसलों को पहुंचे नुकसान ने इन किसानों को आत्महत्या करने पर विवश कर दिया। खेती के पूर्व इन किसानों ने कर्ज लिया था, लेकिन फसल बर्बाद होते ही इनकी कमर टूट गई और एक के बाद एक कर एक माह के अंदर चार किसानों ने आत्महत्या कर ली। खास बात यह है कि यह बरगढ़ जिला धान की कटोरी के रूप में प्रसिद्ध है। यानी गुणवत्तायुक्त व अधिक मात्रा में यहां धान की खेती होती है, लेकिन बेमौसम बारिश के चलते धान की फसल बर्बाद हो गई। हालांकि सरकार ने किसानों के लिए 900 करोड़ रुपये की घोषणा तो की है, लेकिन इसका लाभ आम किसानों को नहीं मिल रहा है। खुदकुशी करने वाले किसानों में धीरपुर गांव के अशोक खटवा व उनका पुत्र सुजीत खटवा ने फांसी लगाकर 27 दिसंबर की रात आत्महत्या कर ली थी। इसके ठीक दो दिन बाद इसी जिले के गोपई गांव के शिव घोई ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली और 26 जनवरी को जड़ा गांव के किसान भैरव भुए ने आत्महत्या कर ली। जबकि भैरव भुए पांच एकड़ जमीन का मालिक था। धान की फसल के लिए उसने सहकारी समिति से 20 हजार रुपये और कुछ धनराशि अपने परिचितों से भी उधार ली थी। दिसंबर महीने में बेमौसम बारिश से उसकी फसल बर्बाद हो गयी। भैरव ने कर्ज का आधा रुपया तो किसी तरह चुका दिया था लेकिन फसल बर्बाद हो जाने के कारण कुछ लोगों को कर्ज चुकाने में असफल रहा। इसी के चलते उसने आत्महत्या का रास्ता चुना। अनशनकारी किसानों की हालत बिगड़ी बुलंदशहर : ककोड़ की सीमा से सटे जनपद गौतमबुद्धनगर के गांव भट्टा में भूमि अधिग्रहण के विरोध में आमरण अनशन पर बैठे कई किसानों की हालत बिगड़ रही है। गुरुवार को धरने पर तीन हजार से ज्यादा किसान मौजूद रहे। यमुना एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरण द्वारा जनपद बुलंदशहर और गौतमबुद्धनगर में भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है। क्षेत्र के किसान इसका विरोध कर रहे हैं। हाल ही में तहसील सिकंदराबाद व खुर्जा के भी चालीस गांवों को प्राधिकरण में शामिल किया गया है।



Friday, January 28, 2011

किसानों की लड़ाई में केंद्र को आगे लाने की तैयारी


इलाहाबाद कचरी में किसान आंदोलन के समर्थन में कांग्रेस की सक्रियता काफी बढ़ गई है। पार्टी स्तर से इस मुद्दे पर केंद्र का हस्तक्षेप कराने की पहल भी होती दिख रही है। इसके लिए मृतक गुलाब विश्वकर्मा के आश्रितों को केंद्र से मुआवजा दिलाकर राज्य को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश होगी। रविवार को कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी ने कचरी पहुंचकर किसानों को उनके संघर्ष में साथ देने का भरोसा दिलाया था वहीं सोमवार को पार्टी के विधानमंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी भी कचरी पहुंचे। प्रमोद ने यहां घोषणा की कि जब तक गुलाब विश्वकर्मा के हत्यारों को सजा नहीं मिल जाती है, सदन नहीं चलने दिया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन ने गुलाब विश्वकर्मा की हत्या की है। इस मौके पर उन्होंने जेपी पावर प्रोजेक्ट को लेकर प्रदेश की मुख्यमंत्री से जवाब भी मांगा। प्रमोद ने दिवंगत गुलाब विश्वकर्मा के घर जाकर उनके परिवारीजनों से सांत्वना प्रकट की। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से भी मुआवजा दिलाने का आश्वासन दिया। कांग्रेस नेता ने मृतक गुलाब विश्वकर्मा की रिश्तेदार कुसुम विश्वकर्मा से प्रार्थना पत्र लेकर मामले को सदन में उठाने की बात कही। इसके बाद उन्होंने अनशन स्थल पहुंचकर वहां मौजूद किसानों को संबोधित किया। कहा कि जिस प्रकार से हरियाणा में किसानों को जमीन के बदले कंपनी के फायदे में हिस्सेदारी दी जाती है, उसी प्रकार से करछना के देवरी पावर प्रोजेक्ट में भी किसानों को हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। टप्पल के किसानों की तरह ही यहां के किसानों को भी मुआवजा दिया जाना चाहिए। भाजपा नेता योगेश शुक्ला ने भी क्रमिक अनशन स्थल पहुंच कर किसानों की लड़ाई में भागीदार बनने की बात कही।
        

भारत में चीनी न्यूजीलैंड ब्राजील से सस्ती : पवार


केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने सोमवार को महंगाई के लिए लोगों की खाने पीने की आदतों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि इसकी वजह से दूध और मांस की मांग बढ़ी है। यही नहीं पवार का यह भी कहना था कि देश में चीनी के दाम न्यूजीलैंड और ब्राजील से कम हैं। पवार के मुताबिक कृषि उत्पादन बढ़ने तथा किसानों को फसल का वाजिब मूल्य मिलने से महंगाई नियंत्रित होगी। उनका प्रयास कृषि उत्पादन बढ़वाने का है। इसके तौर-तरीकों पर वह राज्य सरकार से बात करेंगे। कृषि मंत्री ने सोमवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में महंगाई के लिए प्याज उत्पादक राज्यों में अधिक बारिश को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि उनका कहना था कि केंद्र के प्रयासों से प्याज के दाम काफी कम हुए हैं। कृषि मंत्री ने फसल उत्पादन पर जोर देते हुए कहा कि जब किसानों को उनके उत्पादों, विशेषकर गन्ने का उचित मूल्य मिलेगा तो महंगाई नहीं बढ़ेगी। पवार के मुताबिक देश में हर साल दुग्ध उत्पादन में तीन फीसदी की वृद्धि दर्ज की जा रही है। इसके सापेक्ष इनकी मांग भी बढ़ रही है। वह दुग्ध व मीट उत्पादन बढ़ाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।

खादान संकट की पुनरावृति


लेखक खाद्य संकट के कारणों पर प्रकाश डाल रहे हैं ……
2008 के खाद्यान्न संकट की पुनरावृत्ति महज तीन साल के भीतर हो गई तो इसका कारण यही है कि तब इसका तात्कालिक उपाय ही ढूंढ़ा गया था। 5 जनवरी को संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने कहा कि दिसंबर में खाद्य सूचकांक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। पहले जहां खराब मौसम के चलते खाद्य पदाथरें की कीमतें ऊंची होती थीं, वहीं अब मांग और आपूर्ति के लगभग बराबर होने कारण इनमें उफान आया है। दरअसल, जनसंख्या व खपत में वृद्धि के कारण जहां मांग में तेजी आई, वहीं मिट्टी अपरदन, भूजल Oास, वैश्विक तापवृद्धि के कारण उत्पादन के मोर्चे पर दुनिया मात खा रही है। जनसंख्या वृद्धि के कारण हर रोज 2,19,000 व्यक्ति बढ़ रहे हैं। इसके अलावा दुनिया में 300 करोड़ लोग खाद्य श्रृंखला में ऊपरी पायदान पर चढ़ रहे हैं, जिससे अनाज के प्रत्यक्ष की बजाय अप्रत्यक्ष उपभोग को बढ़ावा मिल रहा है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आय बढ़ने और खान-पान की पश्चिमी शैली अपनाने के कारण दूध, मांस, अंडे की खपत अप्रत्याशित ढंग से बढ़ी है। आज चीन की कुल मांस खपत अमेरिका की तुलना में दोगुना हो चुकी है। अनाज से ईंधन बनाने के प्रचलन से अनाजों का गैर खाद्य उपभोग बढ़ा है। उदाहरण के लिए अमेरिका में 2009 में 41.6 करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ, जिसमें से 11.9 करोड़ टन अनाज ईंधन बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया। यह अनाज 35 करोड़ लोगों की साल भर की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। अमेरिका ने एथनॉल फैक्टरियों में भारी निवेश करके मनुष्य के पेट और कारों की टंकी के बीच जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी है। उपरोक्त कारणों से खाद्यान्न की खपत तेजी से बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1990 से 2005 के बीच जहां विश्व की अनाज खपत में हर साल 2.1 करोड़ टन की बढ़ोतरी हो रही थी, वहीं 2005-10 के बीच यह 4.1 करोड़ टन तक पहुंच गई। लेकिन जहां अनाजों की खपत में दो गुनी बढ़ोतरी हुई है, वहीं पैदावार में बढ़ोतरी रुक सी गई। विश्व के अधिकांश सिंचित क्षेत्रों में भूजल पर दबाव बढ़ा है। गहराई से पानी खींचने में सक्षम सबमर्सिबल पंपों के बड़े पैमाने पर प्रचलन ने भूजल Oास की समस्या को और गंभीर बनाया। पिछले दशक में कृषि पैदावार के सबंध में एक नई घटना यह घटी है कि तकनीक के मामले में सर्वाधिक उन्नत देशों में भी उत्पादकता में ठहराव आ गया है। उदाहरण के लिए धान की उत्पादकता में चोटी पर रहे जापान में पिछले 14 वषरें से प्रति हेक्टेयर पैदावार जस की तस बनी हुई है। विश्व के अनाज उत्पादन में गिरावट का एक कारण कृषि भूमि का गैर कृषि कार्य के लिए बढ़ता उपयोग है। नगरों के विस्ताार, औद्योगिक इकाइयों, सड़क, पार्किंग स्थल आदि के कारण कृषि भूमि तेजी से कम होती जा रही है। तेजी से फैलते शहर उपजाऊ जमीन के साथ-साथ सिंचाई के पानी को भी निगल रहे हैं। जो पानी सिंचाई के काम आता था उसकी आपूर्ति शहरों में होने लगी है। वैश्विक तापवृद्धि के चलते खाद्यान्न की उत्पादकता में तेजी से गिरावट आ रही है। पिछले साल रूस में जून से मध्य अगस्त तक चली गर्म हवाओं के कारण फसलें सूख गईं और देश का अनाज उत्पादन 10 करोड़ टन से घटकर 6 करोड़ टन रह गया। बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। खाद्यान्न संकट के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कीमतों में बढ़ोतरी अब तात्कालिक घटना नहीं रह गई है क्योंकि जिन कारणों से कीमतें बढ़ रही हैं उनके फिर से सामान्य होने की उम्मीद कम ही है। अत: दुनिया को अपनी प्राथमिकता बदलनी होगी। सैन्य खर्च की तुलना में जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने, मिट्टी व जल संरक्षण, जनसंख्या स्थिरीकरण जैसे उपायों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

Wednesday, January 26, 2011

कृषि पैदावार का घटना चिंतनीय


विकास का रास्ता कृषि से होकर गुजरता है। मगर आजादी के : दशक बाद हमारी कृषि व्यवस्था की हालत बदतर हो चुकी है। दूसरी ओर आबादी एक अरब,15 करोड़ से ऊपर जा चुकी है। बढ़ती आबादी, बेरोजगारी और घटती खाद्यान्न की पैदावार ने आम लोगों की दो जून की रोटी दूभर कर दी है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि क्षेत्रों की विकास दर बढ़ने के बजाय 0.2 प्रतिशत घटना चिंतनीय है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार आज भी कृषि है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि और इससे सम्बंधित क्षेत्रों का योगदान करीब 18 फीसद है किंतु एक समय वह भी था जब कृषि क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 50 फीसद से अधिक था। लगभग 60-65 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए इसी पर निर्भर है। फिर भी कृषि व्यवस्था चमत्कारी विकास की रफ्तार में बुरे दौर से गुजर रही है। कृषि परिदृश्य और अन्य उत्पादन पर निगाह डाली जाये तो संतोष के साथ ढेर सारी चुनौतियां भी नजर आती हैं। खरीफ सत्र 2009-10 के दौरान कुल खाद्यान्न का क्षेत्रफल 2008-09 के 714.02 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 667.84 लाख हेक्टेयर रहा जो 46.18 लाख हेक्टेयर की गिरावट दर्शाता है। हालांकि हमारा खाद्यान्न भंडार किसी प्राकृतिक आपदा से निपटने में सक्षम है। इसके बावजूद 37.2 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी की मार झेल रही है। संप्रग सरकार के पूरे कार्यकाल में गरीबों पर खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने की मार पड़ी, साथ ही इस दौरान खाद्यान्न की प्रति व्यक्ति उपलब्धता काफी कम हुई। 2002 में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता 494 ग्राम प्रतिदिन थी, पांच साल बाद घटकर 439 ग्राम पर पहुंच गयी है। वास्तव में कृषि के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती स्वयं इसका अस्तित्व बचाये रखना बन गया है। जीडीपी में कृषि का योगदान आजादी के समय के 51 प्रतिशत से घटकर मात्र 18 प्रतिशत रह गया है और रोजगार में हिस्सेदारी 72 फीसद से घटकर 52 फीसद पर पहुंच गई है। भारत के पास दुनिया की कुल 2.4 प्रतिशत जमीन है, पर दुनिया की आबादी का करीब 18 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहता है। खेतीलायक जमीन सिर्फ अमेरिका में हमसे ज्यादा है और जल क्षेत्र सिर्फ कनाडा और अमेरिका में अधिक है। फिर भी देश में आज कृषि की हालत बुरी है। कृषि भूमि दिन- प्रतिदिन घट रही है। हमारे यहां प्रति व्यक्ति 0.3 हेक्टेयर कृषि भूमि है जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा 11 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति है। कृषि के आवश्यक साधनों की उपलब्धता भी विश्व के औसत की तुलना में चार से छठवें हिस्से के बराबर है। कृषि के लिए आवश्यक प्राकृतिक साधनों की उपलब्धता लगातार घट रही है जबकि सूखा बाढ़ जैसी आपदाओं का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी आपदा भी कृषि के भविष्य के लिए चुनौती बन गई है। इससे देश में कृषि की स्थिति दयनीय हो गयी है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव किसानों पर पड़ा है। यही कारण है कि किसानों की आत्महत्याओं के मामले बढ़ गये हैं। इस मामले में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ अग्रणी हैं। केंद्र सरकार के नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008 में किसानों की आत्महत्या के कुल 16,196 मामले दर्ज किये गये जिसमें 10,797 अर्थात् 66.6 प्रतिशत मामले इससुसाइड बेल्टमें ही थे। इससे पूर्व 2007 में किसानों की 66.2 प्रतिशत आत्महत्याएं इन पांच राज्यों में दर्ज की गई थीं। इनमें भी अग्रणी राज्य महाराष्ट्र है। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2008 में महाराष्ट्र के 3,802 किसानों ने खुदकुशी की जबकि 1997 से लेकर आज तक दो लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सरकार को इसकी जानकारी है। फिर भी उसके पास ऐसा कोई सकारात्मक उपाय नहीं है, जो किसानों को मुहैया करा सके। यही वजह है कि भारत के किसान खेती को घाटे का सौदा मानने लगे हैं। 40 प्रतिशत किसान इच्छा जता चुके हैं कि उन्हें आजीविका का विकल्प मिल जाए तो वे खेती को एक पल खोये बिना तिलांजलि दे देंगे। आज ज्यादातर खाद्यान्न के दाम आसमान छू रहे हैं। ये 30 सालों में अधिकतम स्तर पर पहुंच गये हैं। आधुनिकता भूमंडलीकरण के बावजूद स्थिति में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं हो रहा है बल्कि इससे दुनिया की 100 करोड़ आबादी को स्थायी रूप से गरीबी में जकड़े जाने का खतरा बढ़ गया है। इस संकट को सबसे ज्यादा संगीन बनाता सूरतेहाल है- खाद्यान्न की कीमतों में इजाफे के साथ विश्व स्तर पर उनका स्टॉक सिमटना। उदाहरण के लिए गेहूं का भंडारण 2001 में 197 मिलियन टन था, 2007 में यह 107 मिलियन टन रह गया। इसी अवधि में चावल भंडारण 136 मिलियन टन से घटकर कुल 71 मिलियन टन रह गया। यही वजह है कि दुनिया के 37 गरीब देशों में खाद्यान्न के लिए मिस्र से लेकर पेरू और फिर इंडोनेशिया से लेकर हैती तक दंगे हुए हैं। इसकी तपिश से विकसित देश भी नहीं बच पाये हैं। फलत: खाद्यान्न के दामों में नाटकीय ढंग से इजाफा हुआ है। 2007-08 में एफएओ के मूल्य सूचकांक में खाद्यान्न के दामों में अभूतपूर्व 32 फीसद वृद्धि दर्ज हुई थी जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के मुताबिक अब भी अनाज की कीमतें 2005 की तुलना में 63 प्रतिशत अधिक है। जाहिर है कि कृषि उत्पादकता में कमी और खेती-किसानी की बदहाली का असर ग्रामीण इलाके में बढ़ा है और वहां गरीबी में इजाफा हुआ है। हम चाहें या नहीं, कृषि अब भी अर्थव्यवस्था का मुख्य सहारा बनी हुई है। इसीलिए जरूरी है कि किसानों की दशा को ठीक किया जाये। किसानों के लिए अधिक आय कैसे सुनिश्चित हो, इस पर विशेष जोर देने की जरूरत है। साथ ही जरूरत है कि किसानों को दिये जाने वाले समर्थन मूल्य में वृद्धि की। इसके अलावा सबसे जरूरी है कि खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए खाद्यान्न सुरक्षा नीति की दिशा में सकारात्मक सोच को विकसित करना। इसके लिए खेती और किसानों के हितों जरूरतों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।