Friday, February 25, 2011

चलो गाँव की ओर


पंजाब में इस बार और ज्यादा सड़ेगा अनाज


देश में करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं जबकि पंजाब के गोदामों में अनाज सड़ रहा है। राज्य में 106 लाख टन अनाज कवर्ड स्टोरेज और 90 लाख टन खुले आसमान के नीचे भंडारण की क्षमता है। केंद्र और राज्य की खाद्य एजेंसियों ने संयुक्त अध्ययन के बाद 80 लाख टन भंडारण क्षमता बढ़ाने का सुझाव दिया था लेकिन सरकार महज 4.97 लाख टन अनाज के लिए ही गोदाम का इंतजाम कर सकी। ऐसे में इस साल भी अनाज का सड़ना तय लग रहा है। पंजाब के सरकारी गोदामों में 2008-09 का गेहूं पड़ा है। 2009-10 में खरीदा गया गेहूं,चावल और धान भी यहीं रखा है। एक माह बाद करीब 124 लाख टन गेहूं की फसल और आ जाएगी। फूड कारपोरेशन आफ इंडिया (एफसीआइ) और पंजाब के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने पिछले साल संयुक्त अध्ययन में पाया कि राज्य में 80 लाख टन भंडारण क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। राज्य में 106 लाख टन कवर्ड स्टोरेज क्षमता है जबकि करीब 90 लाख टन खुले आसमान में भंडारण की व्यवस्था है। पिछले साल टेंडर प्रक्रिया शुरू होते ही पंजाब को 71 लाख टन भंडारण को कहा गया जो बाद में 50 लाख टन कर दिया गया। अब 63 स्थानों पर होने वाला नया भंडारण 14 स्थानों पर होगा, वो भी मात्र 4.97 लाख टन। एफसीआई के डीजीएम असीम छाबड़ा का कहना है कि पंजाब में पिछले साल एक अप्रैल को गेहूं व धान का भंडारण 94 लाख टन था। इस साल यह कुछ कम हो कर 87.5 लाख टन रहेगा। पंजाब में भंडारण क्षमता न बढ़ाने के सवाल पर वे कहते हैं कि 33 लाख टन के लिए दस साल की अवधि के टेंडर निकालने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। प्रदेश में 13 लाख टन क्षमता बढ़ी है। राज्य में आए ज्यादातर टेंडर 6.10 रुपये प्रति टन की दर से थे जबकि केंद्र सरकार की नीति के मुताबिक पांच रुपये से ज्यादा नहीं दिया जा सकता है। 6.10 रुपये की दर पर भंडारण की क्षमता 40 लाख टन और बढ़ जाती। राज्य की ओर से ऐसी मांग भी रखी गई पर केंद्रीय नीति ने इसकी इजाजत नहीं दी। राज्य की खरीद एजेंसियों की कोआर्डिनेशन कमेटी कहती है कि मामला एक राज्य या एक एजेंसी का नहीं पूरे देश का है। ऐसे में हर व्यक्ति की भागीदारी जरूरी है।

हरित प्रदेश पर मंडराता बंजर होने का खतरा


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस हरित प्रदेश की मांग जोर पकड़ रही है, उसकी लहलहाती धरती पर बंजर हो जाने का खतरा मंडराने लगा है। यहां के लोग न चेते तो वह दिन दूर नहीं जब लोगों को एक एक बूंद पानी को तरसना पड़ेगा। सूबे के पेयजल संकट ग्रस्त 42 जिलों में से 22 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। यानि पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी बुंदेलखंड की राह पर है। भूगर्भ से बोरिंग व नलकूपों के जरिए अंधाधुंध पानी निकाले जाने और उसी अनुपात में भूजल स्त्रोतों तक पानी नहीं लौटा पाने के कारण जल संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है। इससे भूमि की उर्वरता और पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। केंद्रीय रिपोर्ट के मुताबिक, जो 42 जिले पानी के अति दोहन का शिकार हैं, उनमें चार जिले मध्य उत्तर प्रदेश, 12 पूवरंचल, चार जिले बुंदेलखंड और 22 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। प्रभावित पश्चिमी जिलों में आगरा, अलीगढ़, बागपत, बरेली, बिजनौर, बदायूं, एटा, फिरोजाबाद, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, हाथरस, जेपीनगर, मेरठ, कन्नौज, मथुरा, मैनपुरी, रामपुर, कांशीरामनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर व मुजफ्फरनगर व बुलंदशहर शामिल हैं। इनमें से अतिदोहन से गिरते जल स्तर की स्थिति मुजफ्फरनगर व सहारनपुर के आठ-आठ विकास खंडों में बेहद चिंताजनक हैं। इसी तरह बदायूं जिले के सात, आगरा के छह, बागपत, मुरादाबाद व फिरोजाबाद के पांच-पांच ब्लाक डार्क चिह्नित किए गए हैं। मानसून साथ न दे तो यहां सूखे के हालात विकट हो जाते है।

मप्र और कर्नाटक में एक फीसदी पर मिलेगा कृषि ऋण


मध्य प्रदेश और कर्नाटक में किसानों को एक फीसदी दर पर कृषि ऋण मिल सकेगा। मप्र में पेश आम बजट और कर्नाटक में अपनी तरह के पहले कृषि बजट में इस आशय की घोषणा की गई। मध्य प्रदेश में वित्त मंत्री राघवजी ने गुरुवार को प्रदेश का बजट पेश किया। बाद में पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि मैंने जो कहा था वह करके दिखा दिया। गरीबों पर आधा बजट खर्च करने की घोषणा की थी, बजट के माध्यम से उसे पूरा कर दिया। किसानों को कर्ज के दलदल से उबारने के लिए एक फीसदी दर पर कृषि ऋण के लिए बजट में प्रावधान किया गया है। इसी तरह, कर्नाटक में मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा ने 17,857 करोड़ रुपये का कृषि बजट प्रस्तुत किया। इसमें किसानों को एक प्रतिशत ब्याज की दर से कृषि ऋण देने का प्रावधान प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री ने बताया कि फसल ऋण तीन लाख रुपये तक का होगा। दस लाख किसान परिवारों की तरक्की के लिए सुवर्णा भूमि योजना के तहत एक हजार करोड़ रुपये व्यय का प्रावधान होगा।

Wednesday, February 23, 2011

कर्नाटक लाएगा अलग कृषि बजट


 कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा गुरुवार को कृषि के लिए अलग से बजट पेश करेंगे। ऐसा करने वाले वह देश के पहले मुख्यमंत्री और कर्नाटक पहला राज्य होगा। येद्दयुरप्पा जो सूबे के वित्त मंत्री भी हैं और दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी के सरकार के पहले मुख्यमंत्री हैं। येद्दयुरप्पा मुख्यमंत्री के रूप में चौथी बार आम बजट पेश करेंगे। इससे पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन से पूर्व जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) और भाजपा की गठबंधन सरकार (2006-07) में वह उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री थे। तब उन्होंने अपने 20 माह के कार्यकाल में दो बार बजट पेश किया था। इस बीच विपक्षी दल कांग्रेस और जेडीएस ने भाजपा द्वारा अलग से कृषि बजट पेश किए जाने की आलोचना की है। विपक्षी दलों को कहना है येद्दयुरप्पा की यह एक नई नौटंकी है, लेकिन मुख्यमंत्री जो खुद को एक किसान का बेटा कहते हैं, ने अपने दृढ़ता से अपने विचार (कृषि बजट) का बचाव किया है। उनका कहना है, किसानों की यह लंबे समय से चली आ रही मांग है, और जब मैं विपक्ष का नेता था तब भी मैं इस विचार का समर्थन करता था। 25 मई 2008 को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले येद्दयुरप्पा ने वादा किया कि वह किसानों को एक फीसदी वार्षिक ब्याज की दर पर ऋण उपलब्ध कराएंगे। संभावना है कि ऋण की राशि का खुलासा गुरुवार को बजट में घोषित कर दी जाएगी। मुख्यमंत्री के अलग से कृषि बजट पेश करने के मामले पर आइआइएम बेंगलूर का कहना है कि येद्दयुरप्पा ने बहुत ही हतोत्साहित करने वाला कार्य अपने हाथों में लिया है

Tuesday, February 22, 2011

९४७ कृषकों को बांटे ९०१ लाख के ऋण


मौत के खेल में किसानों का इस्तेमाल


यूपी में मिलावटखोरों का धंधा तो फल फूल रहा ही है, कच्ची सब्जियों को कृत्रिम रंग से रंग कर खुलेआम हर बाजारों में बेंचा जा रहा है। यही नहीं गहरी नींद में सो रही सरकार की लाचारी का फायदा उठाते हुए बड़े सौदागर सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाकर पैदावार बढ़ाने में किसानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। कृषि और हार्टीकल्चर विभाग की उदासीनता से जहर के सौदागरों का हौंसला बुलंद है तो खा एवं औषधि प्रशासन विभाग सब्जियों में ऑक्सीटोसिन के इस्तेमाल से पल्ला झाड़ लिया है। वह कह रहा है कि सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाने को रोकने की जिम्मेदारी हार्टीकल्चर विभाग की है।

हरी सब्जियां ग्रीन प्वाइजन बन चुकी हैं। सरकार इससे बेतकल्लुफ है। जहर के सौदागरों ने लौकी, गाजर, खीरा, करैला, शलजम, टमाटर से लेकर यहां तक कि पपीते में ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन लगाकर पैदावार बढ़ाने और उसके प्राकृतिक आकार में बदलाव पैदा कर दिया है। जहर का यह कारोबार खुलेआम हो रहा है। इसके अलावा सब्जियों को कृत्रिम रंग से रंगने का काम भी बड़ी-बड़ी मंडियों में चल रहा है। आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग द्वारा पूछे गए सूचना का अधिकार के तहत खा एवं औषधि प्रशासन विभाग के आयुक्त ने स्वीकार भी किया है कि प्रदेश में कृत्रिम रूप से रंगी गई कच्ची सब्जियों के 124 नमूने संग्रहीत कर जांच कराई गई। जांच में पांच नमूने अखा रंगों से रंगे हुए पाए गए। खा आयुक्त ने बताया कि अखा रंगों से रंगी पाई गई पांच नमूनों की सब्जियों के विक्रेताओं को दंडित कराने के लिए खा अपमिश्रण निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा सक्षम न्यायालय में दायर कराए गए। दरअसल जहर के बड़े कारोबारियों के हाथ इतने लम्बे हैं कि खा एवं औषधि प्रशासन विभाग उन्हें पकड़ने की हिमाकत नहीं कर पाता है। विभाग सिर्फ छापेमारी के जरिए उसे ही पकड़ रहा है जो उनके हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाने जैसे अपराध पर भी विभाग ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। डीएनए ने जब खा एवं औषधि प्रशासन विभाग के विशेष सचिव शिव श्याम मिश्रा से इस बाबत पूछा तो वे हार्टीकल्चर विभाग पर इसका ठीकरा फोड़ने लगे। श्री मिश्र ने कहा कि पहले आप हार्टीकल्चर से यह पूछो कि वे सब्जियों, फलों व अन्य शाक-भाजी के विकास में क्या प्रमोट करते हैं? वह यूरिया है या अन्य फर्टिलाइजर? अगर सब्जियों की पैदावार में ऑक्सीटोसिन इस्तेमाल किया जा रहा है तो इसे रोकने की जिम्मेदारी उनकी है। हमारी नहीं। उधर विशेष सचिव ने कहा कि हमने 29 लाख ऑक्सीटोसिन के डोज छापेमारी के दौरान पकड़े हैं। बीते नौ महीने में 76 को जेल भेजा है और 89 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। मगर खा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाकर पैदावार बढ़ाने सम्बंधी किसी ऐसी शिकायत से साफ इनकार कर दिया है। मगर जिस प्रकार कृत्रिम रूप से रंगी गई कच्ची सब्जियों को बेचने तथा हार्मोन्स की सूई के जरिए सब्जियों की पैदावार बढ़ाई जा रही है उससे घातक बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. भगवान सिंह ने बताया कि रंगी गई सब्जियों से चर्म रोग, अल्सर तथा पाचन तंत्र खराब हो जाता है। आंतों पर प्रभाव पड़ता है। कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।

Sunday, February 20, 2011

गेहूं की फसल में कल्ले निकलने व गांठे बनते समय सिंचाई करें


कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को गेहूं की फसल में कल्ले निकलते समय दूसरी सिंचाई एवं गांठे बनते समय तीसरी सिंचाई करने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों के अनुसार दोमट मिट्टी में विलम्ब से बुआई वाले क्षेत्नों में नत्नजन की एक चौथाई मात्रा सिंचाई के बाद ओट आने पर दें, हल्की बलुई दोमट मिट्टी में नत्नजन की शेष मात्ना का आधा भाग सिंचाई के बाद ओट आने पर दिया जाए।

फसल सतर्कता समूह के कृषि वौानिकों की सलाह के अनुसार गेहूं की फसल में यदि खपतवार निकाई, गुडाई से नियंत्नित न हो तो चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे बथुआ, सत्यानाशी, हिरनखुरी, कृष्णनील, गजरी, प्याजी तथा संकरी पत्ती जैसे गेहुआ व जंगली जई के नियंत्नण के लिए सल्फो सल्फ्यूरान 75 प्रतिशत, 32 मिली प्रति हेक्टेयर मेटा सल्फ्यूरान मिथाइल पांच प्रतिशत डब्लू, जी की 40 ग्राम प्रति हेक्टेयर 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से चपटे नाजिल वाले स्पेयर से बुआई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें। गेहूं में पूर्ण झुलसा का प्रकोप होने पर मैंकोजेब दो किग्रा प्रति हेक्टेयर या जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर याथीरम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 20 किग्रा. के साथ 20 किग्रा. यूरिया को प्रति हेक्टेयर मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.


संगीत के सुरों को सुन पेड़-पौधे हो रहे निहाल


यह वृंदावन नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं! वृंदावन में श्रीकृष्ण की बांसुरी पर पेड़-पौधे, जीव जंतु सभी झूमते थे। यहां श्रीकृष्ण तो नहीं, लेकिन संगीत की सुर लहरियों पर पेड़-पौधे झूम के फल-फूल रहे हैं। संगीत की तान पेड़-पौधों के लिए अद्भुत टॉनिक का काम कर रही है। वातावरण पर संगीत का असर देखना है तो आइए देहरादून के नजदीक थान गांव की पहाड़ी पर। चौधरी इकबाल सिंह ने व्यावहारिक प्रयोग से इस धारणा को विश्वास में तब्दील कर दिया कि पेड़-पौधों पर भी संगीत का असर पड़ता है। राजधानी से 22 किमी दूर थान गांव की पहाड़ी पर चौधरी इकबाल सिंह ने वृंदावन बसाया है। जहां संगीत की सुर-लहरियों पर मस्त झूमते उनके बागीचे के यौवन के आगे दूसरे बाग फीके नजर आ रहे हैं। सेब, अमरूद, संतरा, कीनू, नाशपाती जैसे 4500 पौधों के बाग से चार में इकबाल तीन फसलें ले चुके हैं। इसके उलट चार साल पहले दूसरे किसानों ने जो बाग लगाए थे, वे अभी फल आने का इंतजार ही कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर से 1968 में आकर देहरादून बसे इकबाल ने चार साल पहले थानगांव में 32 बीघा भूमि खरीदी और उस पर अपना पेड़ पौधों का वृंदावन बसाया। स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई और फिर ठेकेदारी के बाद बागवानी में उतरे इकबाल सिंह का संगीत प्रेम उनकी असली ताकत बन गया। बकौल सिंह, मैं सोचता था कि जब संगीत पर मनुष्य झूम उठता है तो पौधे भी जरूर झूमते होंगे। दो साल पहले इसके लिए म्यूजिक सिस्टम लगाया और पुराने गीत बजाने शुरू किए। तीन-चार माह बाद इसका असर भी दिखने लगा। अब पार्क में जगह-जगह 14 स्पीकरों के जरिए पेड़-पौधों को संगीत सुनाया जाता है।


एसएमएस से मिलेगा मौसम का हाल


केंद्र सरकार ने किसानों और मछुआरों के लिए तैयार की योजना

दूरदराज के गांवों के किसानों के सेल फोन पर अब जल्द ही नियमित तौर पर एक ऐसा संदेश मिलेगा, जिससे उन्हें मौसम के बिगड़ते मिजाज की जानकारी मिल जाएगी। केंद्र सरकार पहले चरण में 30 लाख किसानों को यह सुविधा देने जा रही है। केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री अश्वनी कुमार ने कहा कि अगले एक दशक में देशभर के सभी 30 करोड़ किसान इस सुविधा को पाने लगेंगे। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों के सभी 37 हजार मछुआरों के लिए भी मोबाइल फोन संकट मोचक बनने जा रहा है।
मौसम में अचानक आए बदलाव से सबसे ज्यादा परेशानी किसानों और मछुआरों को ही होती है। इसलिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सेल फोन को उनका संकट मोचक बनाने की योजना तैयार की। इसके तहत मौसम की सूचना मोबाइल फोन पर एसएमएस या वॉइस मैसेज के जरिए दी जाएगी। किसानों को मिलने वाली मौसम की जानकारी सटीक भी हो, इसके लिए भी मौसम विभाग प्रयास कर रहा है क्योंकि मौसम विभाग की भविष्यवाणी भी कई बार गलत साबित हो जाती है। हालांकि कुमार का दावा है कि मौसम विभाग की 70 से 80 फ ीसदी तक भविष्यवाणी सही साबित होती हैं। मौसम भवन में मिले अपने कार्यालय में पहली बार पदार्पण करने के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि मंत्रालय ने इस साल मैसेज के जरिये 30 लाख और अगले पांच वर्षों में पांच करोड़ किसानों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय देश के सुपर कंप्यूटर की कंप्यूटिंग क्षमता भी बढ़ाने जा रहा है। मौजूदा 70 टैराफ्लोप क्षमता को बढ़ाकर 300 टैराफ्लोप करने की योजना है। कुमार ने कहा कि अभी यह तय किया जाना बाकी है कि इस प्रौद्योगिकी को देश में ही विकसित किया जाए अथवा विदेश से खरीदा जाए। इस योजना पर लगभग तीन साल लगेंगे।


बदलते मौसम से गेहूं पर मंडराया रोगों का खतरा


उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में बारिश और तापमान में गिरावट से जहां रबी फसलों को होने वाले फायदे गिनाए जा रहे हैं, वहीं मौसम में नमी बढ़ने से गेहूं जैसी प्रमुख फसल के लिए कई तरह के रोगों का खतरा पैदा हो गया है। जबकि बदली छाये रहने से दलहन व तिलहन फसलों के प्रभावित होने की भी आशंका है। यही वजह है कि सरकारी तंत्र इन रोगों की रोकथाम के उपाय करने में जुट गया है। चालू रबी सीजन में 2.9 करोड़ हेक्टेयर में गेहूं की बुआई हुई है, जो एक रिकॉर्ड है। फरवरी के दूसरे सप्ताह में बारिश होने के साथ ही तापमान सामान्य से दो से छह डिग्री सेंटीग्रेड नीचे पहुंच गया है। अचानक तापमान घटने से मौसम में नमी का स्तर बढ़ गया है। गेहूं अनुसंधान निदेशालय के निदेशक प्रोफेसर एसएस सिंह का कहना है कि अचानक बढ़ी नमी वाले इस मौसम में गेहूं की फसल में फफूंदी (फंगस) का प्रकोप होता है, जिससे रतुआ रोग के फैलने की आशंका है। रतुआ (रस्ट) पीला, भूरा व काला तीन तरह का होता है। इस समय पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पीले रतुआ के फैलने की खबरें हैं। मगर यहां के किसान इस रोग से निपटने में माहिर हैं। कृषि वैज्ञानिक सिंह के मुताबिक रोग के लक्षण दिखने के साथ ही दवा का छिड़काव न करने पर फसल चौपट हो जाती है। दूसरी ओर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप महानिदेशक डॉक्टर स्वपन के. दत्ता का भी कहना है इस बारिश का वैसे तो रबी सीजन की समूची फसल पर अच्छा असर होगा, लेकिन कुछ रोगों के प्रकोप का खतरा भी है। इसके लिए किसानों को सचेत किया जा रहा है। आईसीएआर ने रतुआ रोधी (रस्ट फ्री) गेहूं की कई प्रजातियां विकसित की हैं, लेकिन तीन सालों के बाद इन प्रजातियों पर भी रतुआ का प्रकोप होने लगता है। लिहाजा रतुआ के संबंध में किसानों को जागरूक बनाने के प्रयास शुरू कर दिये गये हैं। डॉक्टर दत्ता के मुताबिक उत्तरी राज्यों में बारिश व तापमान गिरने से गेहूं समेत सभी फसलों को फायदा हो रहा है। लेकिन दलहन व तिलहन की फसलों को बदली वाले मौसम में नुकसान होता है। मध्य प्रदेश और गुजरात में तो फसलें तैयार होने के करीब हैं। अगले 15 दिनों में वहां कटाई शुरू होने वाली है। जबकि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में गेहूं की फसल के लिए बहुत अच्छा मौसम है। पंजाब में इस बार 35 लाख हेक्टेयर और हरियाणा में 24.68 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुआई हुई है। इसे देखते हुए यहां रिकॉर्ड पैदावार का अनुमान लगाया गया है।