Wednesday, May 25, 2011

भूमि की बिगड़ती सेहत


हमारे देश में रोटी और रोजगार के सबसे बड़े संसाधन भूमि की गुणवत्ता जांचने का अब तक कोई राष्ट्रव्यापी पैमाना नहीं है। जबकि कुल आबादी में से सत्तर फीसद आबादी कृषि और प्राकृतिक संपदा से रोजी-रोटी जुटाती है। भूमि की उर्वरता और क्षरण को लेकर टुकड़ों में तो आकलन आते रहते हैं लेकिन इस स्थिति की वास्तविक हालत का खुलासा करने वाला कोई एक मानचित्र देश के सामने पेश नहीं किया गया। हालांकि अशासकीय स्तर पर यह दायित्य अहमदाबाद की संस्थास्पेस एप्लिकेशन सेंटरने इसी काम से जुड़ी अन्य सत्रह एजेंसियों के साथ मिलकर निभाने की कोशिश की है। जमीन की सेहत से जुड़ा यह शोध बताता है कि आधुनिक औद्योगिक विकास, जल वायु प्रदूषण और कृषि भूमि में खाद कीटनाशकों के बढ़ते चलन ने कैसे उपयोगी भूमि को रेगिस्तान में तब्दील करने का सिलसिला जारी रखा है। यदि जमीन की गुणवत्ता और क्षरण रोकने के उपाय राष्ट्रीय स्तर पर जल्दी एक अभियान के रूप में शुरू नहीं किये गये तो देश की बड़ी आबादी आजीविका के संकट के दायरे में तो आएगी ही, जैव-विविधता भी खतरे में पड़ जाएगी।स्पेस एप्लिकेशन सेंटरके कुछ समय पूर्व किए शोध के मुताबिक राजस्थान का 21.77 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर का 12.79 प्रतिशत और गुजरात का 12.72 प्रतिशत क्षेत्र रेगिस्तान बन चुका है। मध्य प्रदेश में चंबल के बीहड़ पिछले 60 सालों में 45 प्रतिशत तक बढ़े हैं। महाराष्ट्र में विदर्भ और उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र की कृषि का अनावृष्टि के कारण तेजी से क्षरण हो रहा है। वहीं भू-जल के बेतहाशा दोहन और अल्पवर्षा के चलते खेतों में दस सेंटीमीटर नीचे ऐसी कठोर परत बन रही है जो कालांतर में फसल की उत्पादन क्षमता प्रभावित करेगी। मानसून की अनिश्चितता उपजाऊ भूमि को बंजर में बदल रही है। जंगलों का विनाश, चरागाह की भूमि कृषि आवासीय भूमि में तब्दील करना और एक ही किस्म की फसल उगाने से भूमि की सेहत बिगड़ी। कुछ ऐसी ही वजहों के चलते बर्फीली वादियों से लेकर घने वनों वाले क्षेत्र भी फैलते रेगिस्तान की गिरफ्त में गए। जिस हरित क्रांति के बूते पंजाब को भारत का अनाज भंडार का दर्जा हासिल हुआ, वही पंजाब आज रसायनिक खादों का बेतहाशा उपयोग करने के कारण बड़ी तादाद में अपनी कृषि भूमि बरवाद कर चुका है। देश के कुल कृषि क्षेत्र का 1.5 प्रतिशत भाग पंजाब के हिस्से में है जबकि देश में कीटनाशकों की कुल खपत का 18 फीसद उपयोग पंजाब के किसान करते हैं। इसी तरह पंजाब के मालवा क्षेत्र का कपास क्षेत्र पूरे पंजाब का केवल 15 फीसद है, जबकि यहां पंजाब के कुल कीटनाशकों की खपत 70 फीसद है। जो भांखड़ा नांगल बांध पंजाब की उन्नत खेती का आधार है, उसके जल रिसाव के चलते पंजाब की अब तक ढाई लाख हेक्टेयर कृषि भूमि दलदल में तब्दील हो चुकी है। कृषि के आधुनिकीकरण यांत्रिकीकरण ने भी भूमि की सेहत बिगाड़ने का काम किया है। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में किए गए एक शोध के मुताबिक इस अंचल की भूमि में दो तरह के विकार पैदा हुए हैं। एक कृषि भूमि की सतह में दस सेंटीमीटर नीचे एक कठोर परत (हार्ड-लेयर) बन गई है। दूसरे, भू-गर्भ में करीब सौ मीटर की गहराई पर पानी से भरी रहने वाली जगह (पोर-स्पेस) रिक्त पड़ी है। क्षेत्रीय पर्यावरण में आए ये परिवर्तन भू-गर्भीय अथवा सतह पर भूकंप जैसी हलचल की वजह भी बन सकते हैं। डिस्कवरी चैनल द्वारा इस क्षेत्र में किए गए एक अध्ययन के प्रस्तुतीकरण ने भी दावा किया है कि चंबल ग्वालियर अंचल में तेजी से रेगिस्तान का विस्तार हो रहा है। इससे जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा परंपरागत खेती को नकारने के कारण हुआ। पहले हलों से खेतों की जुताई होती थी लेकिन अब हैरो, कल्टीवेटर और प्लाऊ जैसे उपकरणों से जुताई हो रही है। ये जमीन को आठ से बारह सेंटीमीटर तक गहरा जोत कर भूमि की ऊपरी परत उधेड़ कर पलट देते हैं। नतीजतन मिट्टी शुष्क होती जा रही है और इसके नीचे की परत कठोर। यह अब इतनी कठोर हो गई है कि खेतों की मिट्टी का कुदरती जैविक समीकरण ही गड़बड़ा गया है। इस अंचल की उस कृषि भूमि में ये लक्षण देखने में आए हैं जो सबसे ज्यादा उपजाऊ मानी जाती है। ये इलाके तंवरघार के मैदानी खेत, चंबल के पठारी क्षेत्र और डबरा-भितरवार की उपजाऊ पट्टी हैं। इसी क्षेत्र में जल संकट भी बढ़ रहा है। नदियों और नहरों का जाल होने के बावजूद जल संरक्षण नहीं हो पा रहा है। कठोर परत जल को नीचे नहीं उतरने देती जिससे पानी बहकर बरबाद हो जाता है। कुछ ऐसी ही वजहों से भूमि जल संरक्षण की खेत तालाब जैसी वैज्ञानिक योजनाएं भी अवैज्ञानिक साबित हो रही हैं। मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो रही है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले खरपतवार नष्ट नहीं हो रहे हैं। चंबल क्षेत्र में बीहड़ों का विस्तार गांव के गांव लीलता जा रहा है। इस अंचल के भिंड, मुरैना और श्योपुर जिलों में हर साल पन्द्रह सौ एकड़ भूमि बीहड़ में बदल रही है। इन जिलों की कुल भूमि का 25 फीसद हिस्सा बीहड़ों का है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक चंबल नदी घाटी क्षेत्र में 3000 वर्ग किलोमीटर इलाके में बीहड़ों का विस्तार है। इन जिलों की छोटी-बड़ी नदियां जैसे बीहड़ों के निर्माण के लिए अभिशप्त हैं। चंबल में 80 हजार, कुआंरी में 75, आसन में 2036, सीप में 1100, बैसाली में 1000, कूनों में 8072, पार्वती में 700, सांक में 2122 और सिंध में 2032 हेक्टेयर बीहड़ हैं। बीते आठ सालों में करीब 45 प्रतिशत बीहड़ों में वृद्धि दर्ज की गई है। इन बीहड़ों का जिस गति से विस्तार हो रहा है, उसके मुताबिक 2050 तक 55 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बीहड़ों में तब्दील हो जाएगी। इन बीहड़ों का विस्तार एक बड़ी आबादी के लिए विस्थापन का संकट पैदा करेगा। जमीन की सेहत अब प्राकृतिक कारणों की तुलना में मानव उत्सर्जित कारणों से ज्यादा बिगड़ रही है। पहले भूमि का उपयोग रहवास और कृषि कार्यों के लिए होता था, लेकिन अब औद्योगीकरण, शहरीकरण बड़े बांध और बढ़ती आबादी के दबाव भी भूमि को संकट में डाल रहे हैं। जमीन का खनन कर उसे छलनी किया जा रहा है, तो जंगलों का विनाश कर बंजर बनाए जाने का सिलसिला जारी है। जमीन की सतह पर ज्यादा फसल उपजाने का दबाव है तो भू-गर्भ से जल, तेल गैसों के अंधाधुंध दोहन के हालात भी भूमि पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में सिंचाईं के आधुनिक संसाधन हरित क्रांति के उपाय साबित हुए थे, लेकिन ज्यादा मात्रा में पानी छोड़े जाने के कारण कृषि भूमि को क्षारीय भूमि में बदलने के कारक सिद्ध हो रहे हैं।