Sunday, November 18, 2012

गरम मौसम से पिछड़ी गेहूं की बुवाई



ठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली मौसम के गरम रुख को देखते हुए गेहूं की बुवाई पिछड़ रही है। पारा न घटने से किसान खेतों में बीज डालने से ठिठक रहे हैं। गेहूं की बुवाई का सीजन शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक हो चुके हैं, लेकिन बुवाई रफ्तार नहीं पकड़ पाई है। पिछले साल के मुकाबले गेहूं का बुवाई रकबा 11 लाख हेक्टेयर कम है। बुवाई रकबा घटने की एक और वजह बताई जा रही है। बारिश में देरी के चलते किसानों ने खरीफ फसलों की बुवाई भी विलंब से की, जो देर से पकी। लिहाजा खेत खाली नहीं हुए तो अब रबी बुवाई में स्वाभाविक देरी हो रही है। मानसून की जिस लेट बारिश को लेकर सरकार और कृषि वैज्ञानिक बहुत उत्साहित थे, उसका फायदा रबी सीजन की बुवाई को नहीं मिल रहा है। माना जा रहा था कि मिट्टी में पर्याप्त नमी की वजह से रबी फसलों की बुवाई जल्दी शुरू हो जाएगी। यह उत्पादन के लिहाज से फायदेमंद साबित होगा। मगर यह उलटा पड़ता दिख रहा है। गेहूं उत्पादक राज्यों में सूरज की चमक घटने का नाम नहीं ले रही है। गेहूं बुवाई के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, लेकिन इन राज्यों में अधिकतम तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं खिसक रहा है। पंजाब में पारा थोड़ा नीचे आया तो गेहूं की बुवाई भी तेज हुई है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक गेहूं की बुवाई पिछले साल के मुकाबले जहां 11 लाख हेक्टेयर पीछे है। वहीं यह सामान्य बुवाई के मुकाबले 17 लाख हेक्टेयर पिछड़ गई है। वैसे, तो रबी सीजन की सभी फसलों की बुवाई पीछे चल रही है, लेकिन प्रमुख फसल गेहूं की खेती का हाल संतोषजनक नहीं है। खासतौर पर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र में गेहूं की बुवाई में सुधार नहीं हो रहा है। इन राज्यों में हफ्ते दर हफ्ते बुवाई का रकबा घट रहा है। उत्तर प्रदेश में अधिकतम तापमान 27 से 29 डिग्री सेल्सियस चल रहा है। यह गेहूं बुवाई के लिए अनुकूल नहीं माना जा रहा है। गेहूं किसानों के लिए यह मौसम काफी चिंताजनक बना हुआ है। यहां बुवाई रकबा 8.50 लाख हेक्टेयर पीछे है। इसी तरह राजस्थान में दो लाख और महाराष्ट्र में डेढ़ लाख हेक्टेयर तक कम बुवाई हो पाई है।
Dainik jagran National Edition 18-11-2012 Page -12 (d`f”k)

Friday, November 2, 2012

रबी फसलों का समर्थन मूल्य घोषित



ठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली सरकार ने गेहूं को छोड़कर शेष अन्य रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी है। रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं के समर्थन मूल्य की घोषणा पर अलग से विचार किया जाएगा। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में दलहन व तिलहन फसलों के समर्थन मूल्य में 500 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई सीसीईए की बैठक में रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फैसला लिया गया। चना और मसूर के समर्थन मूल्य में 400 रुपये प्रति क्ंिवटल की वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया। पिछले साल इन दोनों प्रमुख दलहन फसलों के मूल्य जहां 2800 रुपये प्रति क्ंिवटल थे, वे अब बढ़कर 3200 रुपये प्रति क्ंिवटल हो गए हैं। इसी तरह सरसों के मूल्य 500 रुपये बढ़ाकर 3000 रुपये प्रति क्ंिवटल कर दिए गए हैं। जबकि एक मात्र अनाज जौ का समर्थन मूल्य 980 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1100 रुपये कर दिया गया है। उधर, गेहूं के समर्थन मूल्य को लेकर कृषि मंत्रालय खुद असमंजस में है, इसीलिए सीसीईए में इस आशय का प्रस्ताव पेश नहीं किया गया। बताया गया कि सीसीईए की अगली बैठक में इसे रखा जाएगा। गेहूं के एमएसपी निर्धारण पर कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों को लेकर सरकार असहज है। यही वजह है कि सीसीईए की बैठक में गेहूं के एमएसपी पर कोई फैसला नहीं लिया जा सका। सीएसीपी ने गेहूं के एमएसपी में कोई वृद्धि न करने की सिफारिश की थी। आयोग के इस प्रस्ताव से कृषि मंत्रालय सहमत नहीं था। मंत्रालय इसमें 115 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि चाहता है। इससे गेहूं का एमएसपी 1400 रुपये प्रति क्ंिवटल हो जाएगा। पिछले साल गेहूं का समर्थन मूल्य 1285 रुपये प्रति क्विंटल था। मंत्रालय का तर्क है कि डीजल में पांच रुपये प्रति लीटर की वृद्धि को आयोग ने नजरंदाज किया है।
1.       Dainik jagran National Edition -2-11-2012(d`f”k) Page -10

Thursday, November 1, 2012

दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बना भारत





वर्ष 2012 में किया 97.5 लाख टन का निर्यात थाईलैंड को पछाड़ पहली बार हासिल किया यह मुकाम
नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत 2012 में दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश बनकर उभरा है। यूएसडीए की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने चावल निर्यात के मामले में थाईलैंड को तीसरे पायदान पर ढकेल दिया है। वर्ष 2011 में 1.06 करोड़ टन चावल का निर्यात कर थाईलैंड पहले पायदान पर रहा था। हालांकि, 2012 में उसका निर्यात घटकर 65 लाख टन पर आ गया। वहीं दूसरी ओर भारत का चावल निर्यात 17.5 लाख टन बढ़कर 97.5 लाख टन पर पहुंच गया। इससे 2012 में पहली बार भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बन गया। भारत के बाद दूसरे पायदान पर वियतनाम रहा जिसने 70 लाख टन चावल का निर्यात किया, जबकि 65 लाख टन चावल का निर्यात कर थाईलैंड तीसरे पायदान पर रहा। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान 37.5 लाख टन चावल निर्यात के साथ चौथे स्थान पर जबकि अमेरिका 35 लाख टन चावल निर्यात के साथ पांचवे पायदान पर रहा। भारत 2011 में चावल निर्यात के मामले में तीसरे पायदान पर था। अमेरिकी एजेंसी ने कहा कि वर्ष 2012 में वैश्विक चावल उत्पादन 46.48 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
Rashtirya sahara National Edition 30-10-2012 कृषि page- 11