Saturday, December 8, 2012

केले की फसल पर मंडराता संकट





     खेती-किसानी
.      हाल में प्रकाश में आए एक शोध का आकलन है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में केला ही करोड़ों लोगों के लिए खाने का मुख्य आधार हो सकता है। यह आकलन कृषि के क्षेत्र में शोध से जुड़ी एक संस्था- सीजीआईएआर ने किया है। शोधकर्ताओं का मत है कि फिलहाल ज्यादातर विकासशील देशों की बहुसंख्य आबादी के भोजन का आधार आलू है, लेकिन भविष्य में मुमकिन है आलू की जगह केला ले ले। ऐसे जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का तापमान बढ़ने की वजह से होगा। माना जा रहा है कि तापमान बढ़ेगा तो लोबिया और केले जैसी फसलों का महत्व बढ़ेगा क्योंकि ये ज्यादा तापमान झेल सकती हैं। साथ ही ठंडे मौसम में अच्छी पैदावार देने वाली आलू जैसी फसलों का उत्पादन कम हो जाएगा। इसके अलावा प्रोटीन और कैलोरी से भरपूर गेहूं की खेती में भी कमी आ सकती है क्योंकि कपास, मक्का और सोयाबीन की फसलों से मिलने वाले अच्छे दामों की वजह से गेहूं की खेती सिमट रही है। इन हालात में लोगों को खानपान की ऐसी नई शैली अपनानी पड़ सकती है जिसमें केला भोजन का प्रमुख आधार बन जाए। नई फसलें और खानपान अपनाना लोगों के लिए कितना आसान होगा, इस बारे में कृषि और खाद्य सुरक्षा शोध समूह (सीसीएएफएस) में जलवायु परिवर्तन निदेशक ब्रूस कैंपबेल का मत है कि भविष्य में जैसे बदलावों की बात हो रही है, अतीत में वैसे बदलाव हो चुके हैं। मिसाल के तौर पर दो दशक पहले तक अफ्रीका के कुछ हिस्सों में चावल की बिल्कुल खपत नहीं थी, लेकिन अब वहां भी लोग चावल खाने लगे हैं। इसकी वजह उनके पहले के खानपान से जुड़ी चीजों की महंगाई है। यानी लोगों ने दामों की वजह से खानपान की शैली बदली। इस तरह के मौसमी बदलाव होते रहे हैं, इसलिए बहुत संभव है आगे भी लोग नया खानपान अपनाएं पर केला हमारा मुख्य भोज्य बन पाएगा, तमाम कारणों से यह शायद ही मुमकिन हो। उल्टे दुनिया में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला यह चौथा सबसे महत्वपूर्ण फल कहीं गायब ही न हो जाए। दुनिया के बहुत बड़े भूभाग पर पैदा हो रहे केले के सामने संकट यह है कि जिस आनुवांशिक आधार (जेनेटिक बेस) पर पूरी दुनिया में केला उगाया जा रहा है, उस पर ही खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिक इस नतीजे पर भी पहुंचे हैं कि दुनिया में केले के विलोपन के पीछे भारतीय केला प्रजाति की भूमिका अहम होगी क्योंकि केले के जेनेटिक बेस का मूल आधार भारतीय केला प्रजाति ही है। असल में विज्ञान पत्रिका- न्यू साइंटिस्ट इस बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित कर चुकी है, जिसके अनुसार दुनिया में जो केला खाया-उगाया जा रहा है और फल व्यापार में जिसकी बेहद खास भूमिका है, उसकी जन्मदाता प्रजाति या वैरायटी एक ही है। वह है कैवेंडिश, जिसकी जेनेटिक जड़ें भारत में हैं। कहा जाता है कि इस प्रजाति से ही केले की फसल भारत से होते हुए शेष वि में पहुंची है। न्यू साइंटिस्ट के अनुसार केले की कैवेंडिश प्रजाति को ब्लैक सिगाकोटा नामक फफूंद (फंगस) से भयंकर खतरा पैदा हो गया है और इसके चलते अगले 8-10 वर्षो में केले के खात्मे तक की आशंका है। वैसे तो केले की कैवेंडिश प्रजाति की खासियत यह है कि वह नई-नई फफूंदों से खुद लड़ने में समर्थ होती है, पर उसमें यह प्रतिरोधक क्षमता तभी तक कायम रह पाती है, जब तक उसे पारंपरिक तौर-तरीकों से उगाया जाता है। लेकिन बढ़ती मांग और उत्पादन में तेजी की चाहत में केला उत्पादकों ने समय लेने वाली पद्धतियों के स्थान पर कम समय में उगने और पकने वाले बीजरहित केले की प्रजातियां विकसित कर ली हैं, जिनको बीज के स्थान पर कलम से उगाया जाता है। इस कारण केले की इस प्रजाति में प्रतिरोधक क्षमता का अभाव हो गया है। केले के सामने मुश्किल हालात सिर्फ इसी एक कारण से पैदा नहीं हुए हैं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) के मुताबिक भारत में जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने भी ये स्थितियां पैदा की हैं। यही नहीं, अनेक किसानों ने केले की पारंपरिक फसल उगानी छोड़ दी है। इसलिए इसका लंबे समय तक बचे रहना मुमकिन नहीं लगता। एफएओ ने तो केले की पारंपरिक फसल और इसके विविध जीनों के पूल बचाने के लिए वैिक प्रयासों की मांग की है। हालांकि एफएओ के पादप विज्ञानी ने एक नुक्ता यह भी जोड़ा है कि केले की कैवेंडिश प्रजाति को जो जीन्स बचा सकते हैं, वे पहले ही विलुप्त हो चुके हैं। उनके मुताबिक ब्लैक सिगाकोटा फफूंद का मुकाबला करने वाला जीन अब महज केले के एक वृक्ष में बचा है जो कोलकाता के बॉटेनिकल गॉर्डन में लगा है। उल्लेखनीय है कि दुनिया के 130 देशों में केले की खेती होती है, उनमें भी कैंवेडिश प्रजाति का केला ही निर्यात का प्रमुख आधार है। केले के समस्त वैिक उत्पादन यानी सालाना करीब 6.5 करोड़ टन उत्पादन का 20 फीसद हिस्सा अकेले भारत और ब्राजील में पैदा होता है। हालांकि इन दोनों देशों के केला उत्पादक किसान बमुश्किल ही केले के वैिक व्यापार की मुहिम में शामिल हैं पर यह उनके जीवन-यापन का मुख्य आधार है। दक्षिण एशिया, अफ्रीका और उत्तरी लैटिन अमेरिकी देशों में जो केला पैदा होता है, उसकी ज्यादातर खपत या तो स्थानीय बाजारों में होती है या लोग उसे अपने लिए उगाते हैं पर केला वैिक व्यापार का सबसे अहम और लोकप्रिय फल है। मात्रा या वजन के पैमाने पर सबसे ज्यादा निर्यात केले का होता है, हालांकि कीमत के आधार पर संतरा पहले नंबर पर आता है। यह भी गौरतलब है कि केले की फसल का खाद्य सुरक्षा संदर्भों में बहुत महत्व है। तमाम विकासशील देशों में गेहूं, चावल और मक्के की फसल के साथ केले की फसल भी आर्थिक, सामाजिक, वातावरणीय और राजनीतिक नजरिए से महत्व रखती है। कई गरीब देशों में केले का निर्यात ही आय और रोजगार का प्रमुख साधन है। इतने व्यापक महत्व को देखते हुए कहा जा सकता है कि अगर किसी कारण इस स्वादिष्ट फल की पैदावार को ग्रहण लगता है, तो अनेक देशों की अर्थव्यवस्था के लिए यह बेहद त्रासद अनुभव होगा। और जिस तरह वैज्ञानिक कह रहे हैं कि आने वाले समय में लोगों को आलू की जगह केले पर निर्भर होना पड़ सकता है, उन हालात में केले को बचाये रखना और जरूरी हो जाता है। यह कोशिश खास तौर से भारत को करनी होगी। मुमकिन है, बाहरी मुल्कों के वैज्ञानिक इस काम में भारत की मदद के लिए सहर्ष तैयार हो जाएं क्योंकि यह उनके भविष्य का भी सवाल है।
Rashtirya sahara National edition 8-12-2012 Page -8 d`f”k)