Tuesday, February 14, 2012

पैदावार बढ़ाने की जरूरत


दिल्ली में आयोजित राज्यों के खाद्य आपूर्ति मंत्रियों के सम्मेलन में संप्रग-2 के दो वरिष्ठ मंत्रियों ने खाद्य सुरक्षा बिल को मुश्किल आश्वासन करार दिया। जहां सब्सिडी बिल के 1.34 लाख करोड़ से 2.34 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने के अनुमान ने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की रातों की नींद उड़ा दी है, वहीं कृषि मंत्री शरद पवार को मौजूदा डिलीवरी सिस्टम पर भरोसा नहीं है। शरद पवार की दूसरी चिंता यह है कि सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा बिल को अमली जामा पहनाने की खातिर अधिक अनाज खरीदना पड़ेगा। वैसे तो वर्तमान समय में सालाना सरकारी खरीद खाद्य सुरक्षा बिल की जरूरतों के लिए पर्याप्त है, लेकिन समस्या यह है कि देश में सूखा, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए सरकार के बफर स्टॉक के लिए भी 2.5 करोड़ टन अनाज चाहिए। दूसरी समस्या यह है कि केंद्रीय पूल में सबसे ज्यादा योगदान करने वाले राज्यों में खरीद एजेंसियों द्वारा अब अनाज खरीद की मात्रा बढ़ाने की गुंजाइश कम है। जहां तक उत्पादन का सवाल है तो इसमें क्षेत्र विस्तार की संभावना नहीं है। ऐसे में पैदावार में बढ़ोतरी ही एकमात्र उपाय है। पैदावार में बढ़ोतरी की भरपूर संभावनाएं भी हैं क्योंकि देश की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता अभी भी विश्व औसत से पीछे है। फिर देश के वर्षाधीन क्षेत्र विशेषकर पूर्वी भारत में पैदावार अभी भी काफी कम है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सरकार अनाज उत्पादन और खरीद की धुरी को विकेंद्रित करे। गौरतलब है कि मौजूदा समय में सरकार की खरीद नीति प्रमुख फसलों के अग्रणी उत्पादक राज्यों तक ही सिमटी हुई है। जिन क्षेत्रों में भारतीय खाद्य निगम खाद्यान्न की सीधी खरीद नहीं करता, वहां के किसान अपनी उपज की बिक्री के लिए साहूकारों-महाजनों पर निर्भर हैं। पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रांति लाने के लिए प्रयासरत है। लेकिन यह क्रांति तभी कारगर होगी जब पहली हरित क्रांति के कटु अनुभवों से सीख लेते हुए ऐसी तकनीक अपनाई जाए जो न केवल पर्यावरण अनुकूल हो, बल्कि देश के बहुसंख्यक किसानों की पहुंच में भी हो। इस दिशा में सघन धान तकनीक ने उम्मीद की किरण दिखाई है, जिसके बल पर बिहार के नालंदा जिले ने धान उत्पादन में चीन का रिकॉर्ड तोड़ दिया। सघन धान तकनीक (सिस्टम ऑफ राइस इंटेसिफिकेशन अथवा श्री पद्धति) का आविष्कार 1983 में मेडागास्कर के हेनरी डी लौलानी ने किया था, इसलिए इसे मेडागास्कर पद्धति भी कहा जाता है। पारंपरिक धान की खेती में फसल को पानी के माध्यम से पोषण दिया जाता है। इस पद्धति में खेतों में पानी भरा होने के चलते हवा और धूप की पहुंच कम होती है, जिससे रासायनिक खाद के जरिए पौधों को ज्यादा पोषण देने की कोशिश की जाती है। दूसरी ओर श्री पद्धति के अंतर्गत पौधों को हवा, धूप और मिट्टी के माध्यम से ज्यादा पोषण पहुंचाने की कोशिश की जाती है। इसमें कंपोस्ट खाद का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इस पद्धति के अंतर्गत बेहतर पोषण के कारण पौधे काफी स्वस्थ होते हैं और प्रति पौधे धान का उत्पादन काफी ज्यादा होता है। पारंपरिक खेती के अंतर्गत एक किलो धान उगाने के लिए जहां 3,000 से 5,000 लीटर पानी की जरूरत होती है वहीं श्री पद्धति में इसका करीब आधा पानी ही लगता है। इस प्रकार कम भूमि, श्रम, पूंजी और पानी लगने के बावजूद पैदावार में तीन गुना तक बढ़ोतरी हो जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें बीजों की प्रचलित किस्मों का ही उपयोग कर पैदावार बढ़ाई जा सकती है। धीरे-धीरे पूरे देश में लोकप्रिय हो रही इस तकनीक को अपनाकर बिहार के नालंदा जिले के दरवेशपुरा गांव के किसान सुमंत कुमार ने एक हेक्टेयर में 224 क्विंटल धान पैदा कर विश्व रिकॉर्ड बनाया। सुंमत कुमार के साथ चार अन्य किसानों ने प्रति हेक्टेयर 192 से 202 क्विंटल धान पैदा किया। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) 

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