Saturday, August 20, 2011

हरिपुर में परमाणु संयंत्र नहीं लगने देंगी ममता


: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने बुधवार को केंद्र सरकार तगड़ा झटका देते हुए पूर्वी मेदिनीपुर जिले के हरिपुर में प्रस्तावित परमाणु बिजली संयंत्र नहीं लगने देने का एलान कर दिया। यही नहीं सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि राज्य में अब एक भी परमाणु उर्जा केंद्र स्थापित नहीं होगा। विधानसभा में पूछे गये सवालों के जवाब में ऊर्जा मंत्री मनीष गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार हरिपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित नहीं करने का निर्णय लिया है। गुप्ता ने आरोप लगाया कि पूर्व वाममोर्चा सरकार ने परियोजना के बारे में लोगों को गुमराह किया था। वर्तमान सरकार राज्य के किसी भी क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के पक्ष में नहीं है। उल्लेखनीय है कि अपनी रूस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हरिपुर समेत देश में पांच परमाणु ऊर्जा केंद्र खोलने के समझौते पर हस्ताक्षर किया था। पूर्व मेदिनीपुर के हरिपुर में 1000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा केंद्र के साथ परमाणु पार्क विकसित करने के लिए रूसी कंपनी रोस्टम को केंद्र सरकार ने पर्यावरण की मंजूरी के साथ-साथ भूमि भी आवंटित कर दी थी। स्थानीय किसानों और मछुआरों ने आजीविका से बेदखली और जानमाल के नुकसान के भय से कई गैर सरकारी संगठनों की मदद को लेकर परियोजना के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। हालांकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले वर्ष ही परियोजना को मंजूरी दे दी थी। कुछ पर्यावरणविदें और वैज्ञानिकों ने इस परियोजना से पर्यावरण को नुकसान होने की चिंता जताई थी। अंतत: प. बंगाल सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि राज्य में परमाणु बिजली केंद्र स्थापित करने की उसकी कोई योजना नहीं है।


किसानों के घावों पर मरहम लगाने मावल पहुंचे राहुल गांधी


मुंबई कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने गुरुवार को पुणे के मावल तालुके का दौरा कर पुलिस गोलीबारी में मारे गए किसानों के परिजनों से मुलाकात की। मावल में नौ अगस्त को पुलिस की गोली से चार किसानों की मौत हो गई थी। गोलीबारी पावना बांध का पानी निकट के औद्योगिक कस्बे पिंपरी-चिंचवड़ को देने का विरोध कर किसानों पर की गई थी। उत्तर प्रदेश के भट्टा पारसौल में किसानों के लिए पदयात्रा कर चुके राहुल गांधी पर यह आरोप लगता रहा है कि वह महाराष्ट्र के जैतापुर और मावल जैसे स्थानों के किसानों के पास क्यों नहीं जाते। महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी की ही सरकार है, जोकि उक्त दोनों स्थानों पर किसानों की भूमि का अधिग्रहण उनकी मर्जी के विरुद्ध कर रही है। किसानों द्वारा इस अधिग्रहण का विरोध करते हुए कुछ माह पहले जैतापुर में पुलिस की गोली से एक किसान की मौत हो गई थी, और पिछले सप्ताह मावल में भी पुलिस की ही गोलीबारी में चार किसान मारे गए। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने गुरुवार को मावल में घायल किसानों एवं उनके परिजनों से मुलाकात की। उन्होंने गोलीबारी की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए किसानों को हर प्रकार की मदद का भरोसा दिलाया। राहुल इस गोलीबारी का शिकार हुए कुछ किसानों के घर भी गए। इस दौरान राज्य सरकार के कई बड़े अधिकारी उनके साथ थे, लेकिन विपक्ष उनके इस दौरे को ढोंग बता रहा है। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे का कहना है कि राहुल गांधी ने मावल का दौरा कर सिर्फ एक औपचारिकता निभाने की कोशिश की है। इससे किसानों की किसी समस्या का हल नहीं होने वाला। दूसरी ओर राहुल के दौरे को कांग्रेस बनाम राष्ट्रवादी कांग्रेस की राजनीति के नजरिए से भी देखा जा रहा है। मावल गोलीबारी मामले में विपक्ष शुरू से राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को घेरने का प्रयास करता रहा है। गृह मंत्रालय भी राकांपा के ही पास है। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे पुणे पर अब अजीत पवार का दबदबा माना जाता है। अजीत केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे हैं। कांग्रेस मान रही है कि राहुल का दौरा क्षेत्र के किसानों में कांग्रेस के प्रति सद्भावना पैदा कर सकता है।



Tuesday, August 16, 2011

मोन्सैंटो पर चलेगा मुकदमा


सरकार अमेरिकी बीज कंपनी मोन्सैंटो, इसकी भारतीय सहयोगी महिको और अन्य फर्मो के खिलाफ मुकदमा चलाएगी। आरोप है कि इन कंपनियों ने बीटी बैंगन के विकास में बैंगन की देसी किस्म का इस्तेमाल किया। इसके लिए उचित अधिकारियों से मंजूरी भी नहीं ली। मोन्सैंटो ने कहा है कि उसने कोई गैर कानूनी काम नहीं किया है। नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनबीए) ने एक दिन पहले मोन्सैंटो, महिको और अन्य फर्मो के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने का फैसला लिया। स्वयंसेवी संगठन एनवायर्नमेंट सपोर्ट ग्रुप ने एनबीए के पास शिकायत की थी कि अमेरिकी कंपनी ने अपने बीटी बैंगन में कर्नाटक की स्थानीय किस्म का इस्तेमाल किया है। इस बीटी बैंगन को जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) की ओर से व्यावसायिक खेती की मंजूरी पिछले साल ही मिल चुकी है। हालांकि, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बाद में बीटी बैंगन पर अनिश्चितकाल तक के लिए रोक लगा दी।

Friday, August 12, 2011

भागते किसानों पर दागी गई गोलियां


मुंबई बीते मंगलवार को पुणे के पास पुलिस ने भागते हुए किसानों पर पीछे से फायरिंग की थी, न कि हमलावर हो रहे किसानों से अपने बचाव में। यह तथ्य एक वीडियो फुटेज के जरिये सामने आने के बाद महाराष्ट्र सरकार की मुसीबतें और बढ़ गई हैं। यह वीडियो देखने के बाद विपक्ष ने गुरुवार को तीसरे दिन भी राज्य सरकार को कसूरवार बताते हुए विधानमंडल के दोनों की सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी। इस बीच, फायरिंग के मामले में छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। सभी निलंबित पुलिसकर्मी कांस्टेबल हैं। 9 अगस्त को पुणे के निकट मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे पर किसानों और पुलिस के बीच यह टकराव हुआ था, जिसमें पुलिस की गोली से तीन किसानों की मौत हो गई थी। तब पुलिस की ओर से कहा गया था कि किसानों द्वारा पुलिस पर भीषण पथराव के कारण स्थिति को संभालने के लिए पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। पुलिस के अलावा राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने भी गुरुवार को यह कहकर मामले को रहस्यमय बना दिया था कि गोलीबारी की शुरुआत एक इंडिका कार से हुई, जिसके बाद पुलिस को भी गोली चलानी पड़ी। लेकिन एक समाचार चैनल पर दिखाए गए उस दिन की घटना के वीडियो ने पुलिस और गृहमंत्री दोनों को झूठा साबित कर दिया है। इसके बावजूद सरकार अपनी बात पर अड़ी है कि पुलिस को गोलियां आत्मरक्षा में चलानी पड़ी थीं। उक्त वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि पुलिस मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे से नीचे भाग रहे किसानों पर निशाना साधकर गोलियां चला रही है। वीडियो में एक पुलिसकर्मी अपनी सरकारी रिवाल्वर से जबकि दूसरा पुलिसकर्मी स्वचालित राइफल से किसानों पर निशाना साधते दिखाई दे रहा है। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार इस घटना में 21 चक्र आंसू गैस, 34 चक्र रबर की गोलियां एवं 51 चक्र वास्तविक गोलियां चलाई गई हैं। मृतक किसानों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी यह कहा गया है कि गोलियां मृतकों की कमर के ऊपर लगी हैं। इस घटना में मोरेश्वर साठे नामक एक किसान भी मारा गया है, जबकि एक स्थानीय समाचार पत्र में छपे एक चित्र में जीवित साठे को दो पुलिसकर्मियों के हत्थे चढ़ा दिखाया गया है। उक्त वीडियो में पुलिसकर्मियों को एक्सप्रेस-वे पर खड़ी कारों एवं मोटरसाइकिलों को तोड़ते हुए भी दिखाया गया है। जबकि पुलिस वाहनों की तोड़फोड़ का एकतरफा आरोप किसानों पर मढ़ रही है। उक्त वीडियो के सार्वजनिक होने के बाद बुधवार तक जहां विपक्ष उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को इस घटना का दोषी मान रहा था, वहीं गुरुवार को पूरी सरकार उसके निशाने पर थी। यहां तक कि क्रुद्ध विपक्ष ने नेता विरोधी दल एकनाथ खडसे को भी नहीं बोलने दिया। लेकिन यह वीडियो देखने के बाद राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने कहा है कि हाईकोर्ट के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश की जांच में यदि कोई पुलिसकर्मी किसानों पर बेवजह गोली चलाने का दोषी पाया जाएगा, तो उसे निलंबित नहीं बल्कि सीधे बर्खास्त कर दिया जाएगा। पाटिल ने दोषी पाए जाने वाले पुलिसकर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज करने का आश्वासन भी दिया है।

किसानों को बिचौलियों से बचाने की कवायद


देहरादून आंध्र प्रदेश का रायतू बाजार हो या कनार्टक का रैयथात सैंथागलू, तमिलनाडु का उलूवार संथाई हो अथवा पंजाब की अपनी मंडी, मंशा सबकी यही है कि छोटी जोत वाले किसान लाभांवित हों। साथ ही, उपभोक्ताओं को उच्चगुणवत्ता वाले उत्पाद मिल सकें। चारों राज्यों में सफल इस कांसेप्ट को अब उत्तराखंड में भी अपनाया जा रहा है। नाम दिया गया है अपणु बाजार। इसके जरिए किसान सीधे उपभोक्ताओं तक उत्पाद पहंुचा सकेंगे। सरकार का भी इसे अनुमोदन मिल गया है और इसकी शुरुआत होगी देहरादून जिले से। लघु एवं सीमांत किसानों को उत्पाद का उचित लाभ न मिल पाना उत्तराखंड में भी एक बड़ी समस्या है। वजह, विपणन की व्यवस्था का अभाव। ऐसे में बडे़ किसान तो मंडियों तक उत्पाद ले जाते हैं, लेकिन छोटी जोत वाले कृषकों के लिए यह संभव नहीं हो पाता और बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर उत्पाद बेचना मजबूरी बन जाती है। कई मर्तबा तो उत्पाद खेतों में ही सड़ जाते हैं। इसको देखते हुए हाल ही में शासन ने एक दल को अध्ययन के लिए कर्नाटक व आंध्र प्रदेश भेजा। वहां से कांसेप्ट मिला तो अब इसे कुछ संशोधनों के साथ उत्तराखंड में भी लागू करने की योजना बनाई गई। अपणु बाजार को धरातल पर उतारने को सरकार ने हरी झंडी दे दी है। इसके तहत गांवों के नजदीकी कस्बों व शहरों में टिन शेड बनाकर बैठने को चबूतरे बनाए जाएंगे, जिनका किसानों के स्वयं सहायता समूहों को पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर आवंटन होगा। इससे विपणन की दिक्कत तो दूर होगी ही, लोगों को ताजी सब्जियां समेत अन्य उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पाद वाजिब दामों पर मिल सकेंगे। दरअसल, अपणु बाजार कस्बों व शहरों के करीब विकसित होंगे। यह किसानों के अपने बाजार होंगे। इसके लिए किसानों के स्वयं सहायता समूहों को निशुल्क चबूतरे मिलिेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि इन बाजारों की सौ मीटर परिधि में कोई दूसरा फुटकर विक्रेता बाजार नहीं होगा। इससे किसानों को उत्पादों के वाजिब दाम मिलेगा। उपभोक्ताओं को ताजे एवं उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पाद मिलने में आसानी होगी। छोटे किसानों की विपणन की दिक्कतें दूर होंगी साथ ही छोटे किसानों को ज्यादा फायदा अपणु बाजार की शुरुआत देहरादून जिले से होगी। पहले चरण में डांडालखौंड में चार बीघा भूमि पर यह विकसित होगा। फिर ननूरखेड़ा, नेहरूग्राम, हरिद्वार रोड, सहस्त्रधारा क्रॉसिंग आदि स्थानों पर भी ऐसी पहल होगी। राज्य के कृषि सचिव ओमप्रकाश का इस संबंध में कहना है कि अपणु बाजार स्कीम सरकार से एप्रूव हो गई है। अक्टूबर तक डांडालखौंड में इसे आकार मिल जाएगा। धीरे-धीरे इसे राज्य के अन्य क्षेत्रों में फैलाया जाएगा।



यूपी में अधिग्रहीत भूमि न लौटाने वाला बिल पारित


उत्तर प्रदेश में अब कोई व्यक्ति राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहीत भूमि की वापसी के लिए कोई दावा नहीं कर पाएगा, भले ही वह भूमि कितने भी समय तक खाली पड़ी रहे। इस आशय का एक संशोधन विधेयक हंगामे और नारेबाजी के बीच विधानसभा से पारित हो गया। अब तक लागू कानून की धारा 17 में अनिवार्य भूमि अर्जन की व्यवस्था है और उसकी उपधारा (1) में यह भी प्रावधान था कि यदि अधिग्रहीत भूमि का पांच साल के भीतर घोषित प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं कर लिया जाता और भूमि खाली पड़ी रहती है तो उसका पूर्वस्वामी प्रतिपूर्ति के रूप में मिली धनराशि को 12 प्रतिशत ब्याज के साथ सरकार को लौटाकर अपनी भूमि वापस पाने का दावा कर सकता था, लेकिन गुरुवार को राज्य विधानसभा में पारित उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास संशोधन विधेयक 2011 के तहत अब अर्जित की गई भूमि के भू-स्वामी भविष्य में अपनी जमीन की वापसी के लिए कोई दावा नहीं कर सकेंगे। इस विवादास्पद विधेयक के साथ ही संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (संशोधन) विधेयक 2011, सोसायटी रजिस्ट्रीकरण उत्तर प्रदेश (संशोधन) विधेयक 2011 और उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत जिला पंचायत (संशोधन) विधेयक 2011 भी आनन-फानन में पारित कराए गए और विधानमंडल का सत्र तय समय से एक दिन पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। तय कार्यक्रम के हिसाब से सदन शुक्रवार तक चलना था। विपक्ष के एतराज पर संसदीय कार्य मंत्री व बसपा नेता लाल जी वर्मा ने सफाई दी कि सरकार सदन चलाना चाहती थी, पर विपक्ष के पास सरकार के अच्छे कामों को देखते हुए कोई मुद्दा ही नहीं है। वह सिर्फ हंगामे पर उतारू था। इसकी वजह से सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किए जाने का प्रस्ताव किया गया। विधानसभा में क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत संशोधन विधेयक भी पारित हुआ। इसमें किसी जिला अथवा क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की कम से कम एक साल की अवधि को बढ़ाकर दो साल कर दिया गया है यानी अब शपथ-ग्रहण की तिथि से दो साल तक उनके विरुद्ध कोई अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं हो सकेगा।




भू-अधिग्रहण में जनहित को परिभाषित करेगा केंद्र


नई दिल्ली भूमि अधिग्रहण विधेयक मसौदे में जनहित की परिभाषा पर उठ रहे सवालों के बीच ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को भी महसूस होने लगा है कि इसे पुन: परिभाषित करने की जरूरत है। रमेश उस समय भौंचक रह गए जब यूपी के टप्पल से आए किसानों के एक दल ने उनसे जनहित के मायने को स्पष्ट करने का आग्रह किया। उन्होंने भरोसा दिलाया कि इसके मद्देनजर जनहित की परिभाषा को और स्पष्ट किया जाएगा। रमेश ने कहा कि मसौदे से आपात उपबंध भी हटाए जाएंगे। यह बात उन्होंने तब कही, जब उत्तर प्रदेश के अमरोहा से आए किसानों ने राज्य सरकार की ताजा नीतियों के आपात उपबंधों का विस्तार से जिक्र किया। अमरोहा से आए किसानों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जहां किसान नेता बीएम सिंह कर रहे थे, वहीं अलीगढ़ के टप्पल के किसान कांग्रेस नेता विवेक बंसल के साथ आए थे। किसानों ने कहा कि जनहित के नाम पर राज्य सरकार किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर उसे बिल्डरों, पूंजीपतियों और व्यापारियों को सौंप रही है। किसानों की खेती वाली जमीनें सरकार के जनहित की भेंट चढ़ रही हैं। केंद्र को भी सौ साल बाद इस कानून को बदलने का होश आया है। किसानों के इस रुख पर ग्रामीण विकास मंत्री ने उनसे कहा कि इसका श्रेय भी किसानों को दिया जाना चाहिए। उन्होंने किसानों से कहा कि वे राज्य में राजनीतिक पर्यावरण को बदलने में कांग्रेस का साथ दें। नये कानून के बाद मॉल और टाउनशिप के लिए अधिग्रहीत जमीनों को जनहित में नहीं गिना जाएगा। मंत्री ने किसानों को आश्वस्त किया कि नये अधिग्रहण कानून का लाभ उन किसानों को भी मिलेगा, जो पिछले सालों से आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन इसके तरीकों पर बाद में विचार किया जाएगा।




भू-अधिग्रहण बिल को रियल एस्टेट कंपनियों ने नकारा


नई दिल्ली देश भर की रियल एस्टेट कंपनियों ने प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक को नकार दिया है। रियल स्टेट कंपनियों के शीर्ष संगठन क्रेडाई ने कहा है कि यह विधेयक देश में आवासीय इकाइयों में जबरदस्त कमी लाने का कारण बनेगा। खास तौर पर गंगा के तटीय व मैदानी इलाकों में आवासीय परियोजना लगाना मुश्किल हो जाएगा। क्रेडाई ने इस विधेयक को किसान विरोधी बताते हुए कहा है कि इससे देश भर में असंगठित क्षेत्र में आवासीय इकाइयों का निर्माण होगा। संगठित क्षेत्र में रियल एस्टेट की 6,000 कंपनियां क्रेडाई की सदस्य हैं। क्रेडाई के अध्यक्ष प्रदीप जैन का कहना है कि इस विधेयक से किसानों को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि वे गरीब के गरीब ही बने रहेंगे। क्रेडाई की मांग है कि निजी क्षेत्र को आवासीय परियोजना लगाने के लिए सीधे किसानों से जमीन अधिग्रहण की मंजूरी मिलनी चाहिए। इससे किसानों को सरकारी रेट से कई गुना ज्यादा मुआवजा मिल सकता है। मगर सरकार सभी तरह के अधिग्रहण का अधिकार अपने पास रख रही है। इससे किसानों को कभी बाजार भाव का मुआवजा नहीं मिल पाएगा। क्रेडाई ने एक से ज्यादा फसल वाली जमीन का किसी भी कीमत पर अधिग्रहण करने पर पाबंदी के प्रस्ताव के बारे में कहा है कि इससे गंगा के मैदानी इलाकों में बसे शहरों का विकास कभी नहीं हो सकेगा। इस क्षेत्र की सारी जमीन पर एक वर्ष में कई फसलें उगाई जाती हैं। ऐसे में यहां शहरों का विस्तार बेतरतीब तरीके से होगा। इसलिए प्रस्तावित विधेयक से यह प्रस्ताव पूरी तरह से हटाया जाए। अगर निजी क्षेत्र के बीच प्रतिस्पद्र्धा हो तो किसानों को कई गुना ज्यादा मुआवजा मिलेगा, जिससे उन्हें न तो अलग से पेंशन की जरूरत पड़ेगी और न ही रोजगार देने की। प्रस्तावित विधेयक के इन प्रावधानों को लागू किया गया तो उलटे मकानों की कीमतें कई गुना बढ़ जाएंगी। इससे मध्यम व नौकरीपेशा वर्ग के लिए मकान खरीदना मुश्किल हो जाएगा।


बंजर भूमि अधिग्रहण पर भी मुआवजा


नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने जंगल की जमीन, राज्य सरकार में निहित करने वाले कुमांयू उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन व भूमि सुधार संशोधन कानून (कुजलर एक्ट) को संवैधानिक ठहराया है। हालांकि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कानून को वैध ठहराने के साथ ही कहा है कि कानून के बाद सरकार में निहित जंगल की जमीन से कोई आय न होने पर भी भूस्वामी को मुआवजा दिया जाएगा। ये महत्वपूर्ण फैसला मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार की व्याख्या करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 300ए में एक व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित किया जा सकता है, लेकिन ऐसा सिर्फ निष्पक्ष और तार्किक कानूनी आधार पर ही हो सकता है। जनहित के नाम पर अधिग्रहीत की गयी किसी की निजी संपत्ति के मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई मुआवजा नहीं मिलेगा जैसा कि इस मामले में हुआ है। जबकि राज्य सरकार की वकील रचना श्रीवास्तव की दलील थी कि कानून में जमीन से आय न होने के मामलों में मुआवजा दिए जाने की बात नहीं कही गई है। पीठ ने कहा कि इस मामले में जो जमीन कानून के बाद राज्य सरकार में निहित हुई है उसे गैर उत्पादक नहीं माना जा सकता। निश्चित तौर पर सरकार में निहित संपत्ति उत्पादक संपत्ति है। इसलिए संपत्ति की संभावित आय का आकलन कर मुआवजा दिया जाना चाहिए। कुजलर कानून में भी सरकार में निहित प्राइवेट जंगल का मुआवजा दिए जाने की बात कही गयी है। संविधान पीठ ने कुजलर कानून की धारा 4ए, 18(1)(सीसी) और 19 (1)(बी) को वैध ठहराते हुए असिस्टेंट कलेक्टर को याचिकाकर्ता राजीव सरीन को उचित मुआवजा अदा करने का निर्देश दिया है। पीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि वह फैसले में दी गयी व्यवस्था के मुताबिक मुआवजे के मानक व दिशानिर्देश तय करे। याचिकाकर्ता राजीव सरीन को जमीन से बेदखल होने से लेकर मुआवजे की रकम अदा होने तक छह फीसदी की दर से ब्याज भी अदा किया जाएगा। इस मामले में राजीव सरीन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 अगस्त 1997 के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सरीन की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि सरीन मुआवजा पाने का हकदार नहीं है, क्योंकि जो जमीन कानून बनने के बाद सरकार में निहित हुई है उससे उसे कोई आय नहीं होती थी। मामला चमौली जिले के कर्ण प्रयाग में आने वाले बेनी ताल फी सिंपल इस्टेट का था।


पुणे गोलीबारी मामले में जांच के आदेश निर्माण कार्य रोका


: महाराष्ट्र सरकार ने पुणे जिले में पुलिस गोलीबारी की घटना के मामले में बुधवार को हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा जांच का आदेश दिया है। मंगलवार की इस घटना में तीन लोगों की मौत हो गई थी। इस पर बुधवार राज्य विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ। विधानसभा में कार्य स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से उठाए गए मुद्दे पर चर्चा का जवाब देते हुए राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने कहा कि जांच में इस बात का पता लगाया जाएगा कि क्या पुलिस ने अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया और क्या विपक्षी दलों ने किसानों को हिंसा के लिए उकसाया था। उन्होंने कहा कि जांच रिपोर्ट तीन महीने में सौंप दी जाएगी। पुणे के पास मवाल में किसानों पर गोलीबारी से बिगड़े हालात को संभालने के लिहाज से उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा कि उन्होंने जिला कलेक्टर से वहां काम (पावना बांध से पाइपलाइन पर) रोकने के लिए कहा है। उन्होंने घोषणा की कि मृतकों के परिजनों को सरकारी नौकरी दी जाएगी और सरकार जल्द ही मुआवजे के मुद्दे पर फैसला करेगी। पुणे के जिला कलेक्टर विकास देशमुख ने कहा कि उन्होंने पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगम के आयुक्त को मौखिक तौर पर पावना नदी बांध पाइपलाइन परियोजना पर काम रोकने की सलाह दी है।



Wednesday, August 10, 2011

पुणे में पुलिस ने किसानों पर चलाई गोली, चार की मौत मुंबई,


अपनी जमीन से पानी की पाइपलाइन ले जाने का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस द्वारा चलाई गई गोली से मंगलवार को पुणे में चार किसानों की मौत हो गई। मृतकों में एक महिला भी शामिल है। पुणे के मावल तालुका के किसानों ने पाइपलाइन के लिए भूमि अधिग्रहण के विरोध में मंगलवार सुबह 10 बजे से मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे और पुराना हाइवे जाम कर दिया था। किसान निकट के पावना बांध से पिंपरी-चिंचवड़ औद्योगिक क्षेत्र को ले जाई जा रही पानी की पाइपलाइन का विरोध कर रहे थे। किसानों का कहना था कि इस पाइपलाइन के लिए उन्हें अपनी जमीन गंवानी पड़ रही है। साथ ही बांध का पानी औद्योगिक क्षेत्र को देने से आसपास के गांवों में पीने के पानी की किल्लत भी हो सकती है। विरोध प्रदर्शन के लिए जुटे करीब चार सौ किसानों ने स्थानीय बसों पर पथराव किया और मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे का आवागमन भी ठप कर दिया। पुणे के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) संदीप कर्णिक के अनुसार विरोध कर रहे किसानों को एक्सप्रेस वे से हटाने का प्रयास कर रहे पुलिसकर्मियों पर जब किसानों ने पथराव शुरू किया तो पुलिस को लाठी और आंसूगैस का सहारा लेना पड़ा। इसके बावजूद भीड़ के काबू में न आने पर पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं। जिसके कारण एक व्यक्ति के पुलिस की गोली से मारे जाने और अन्य तीन के भगदड़ में गिरकर मरने की खबर है। पुलिस अधीक्षक के अनुसार किसानों द्वारा किए गए पथराव में करीब दो दर्जन पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। घायलों में एक पुलिस उपनिरीक्षक की हालत गंभीर बताई जा रही है। घटना के विरोध में मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्षी दलों ने भी हंगामा किया।


Tuesday, August 2, 2011

निजी क्षेत्र के लिए भूमि अधिग्रहण नहीं


कोलकाता केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने यहां कहा कि केंद्र के प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक के प्रारुप में निजी कायरें के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण किए जाने का प्रावधान नहीं है, लेकिन कुछ खास परिस्थितियों में जहां निजी क्षेत्र की कंपनियां सार्वजनिक कार्य करेंगी उस मामले में सरकार भूमि अधिग्रहण कर सकेगी। रमेश ने रविवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भूमि संबंधी मामलों से जुड़े सलाहकार देबब्रत बंद्योपाध्याय से उनके आवास पर बैठक की। इस दौरान बंद्योपाध्याय से हुई बातचीत के बाद कहा रमेश ने कहा कि भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे में रेलवे और बंदरगाह जैसी सार्वजनिक उपयोग वाली परियोजनाओं पर काम कर रही निजी कंपनियों के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण का प्रावधान किया गया है, लेकिन निजी उद्यम कार्य करने वाली कंपनियों के लिए किसी भी दशा में भूमि अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विधेयक के मसौदा को ऑनलाइन जारी कर दिया जाएगा ताकि लोगों से इसके प्रावधानों पर प्रतिक्रिया हासिल की जा सके। बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री से हुई बातचीत में तृणमूल नेता बंदोपाध्याय ने पार्टी की ओर से िधेयक में राज्य सरकार को निजी कंपनियों की खातिर भूमि अधिग्रहण करने का अधिकार देने पर एतराज जताया था। उनका सुझाव था कि राज्य सरकारों को केवल सरकारी विकास योजनाओं के लिए ही भूमि अधिग्रहण का अधिकार दिया जाना चाहिए। सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए निजी भूमि के अधिग्रहण के मुद्दे पर रमेश और बनर्जी के बीच शनिवार को चर्चा हुई थी। दोनों नेताओं ने इस विधेयक के प्रावधानों पर सिर्फ जरूरी और आवश्यक होने पर ही किसानों से जमीन लेने की बात कही थी। मुख्यमंत्री बनर्जी ने कहा था कि मैंने मसौदा पढ़ा नहीं है, लेकिन मोटे तौर पर इस में किसानों के प्रति सहानुभूति दिख रही है। विधेयक में कहा गया है कि निजी परियोजनाओं के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण करने पर जमीन की वर्तमान कीमत का छह गुणा मुआवजा किसानों को मिलनी चाहिए। वहीं शहरी क्षेत्रों के लिए भूमि का मुआवजा वर्तमान बाजार दर का दो गुणा होना चाहिए। यदि पांच साल तक जमीन का इस्तेमाल नहीं होता है तो उसे मूल मालिक वापस कर दिया जाना चाहिए। विधेयक को संसद के मानसून सत्र पेश होना है यदि किसी प्रकार विरोध होता है तो सरकार शीतकालीन सत्र तक इंतजार कर सकती है।