Monday, September 24, 2012

खरीफ फसलों की पैदावार में आएगी 10 फीसद की कमी





सरकार ने कहा, कमजोर मानसून के कारण आएगी गिरावट
पिछले साल का गेहूं और चावल का स्टाक काफी बेहतर है। कोई समस्या नहीं है। मुझे चिंता है कि गेहूं, आटा और चीनी की कीमतें बाजार में बढ़ रही हैं - शरद पवार, केंद्रीय कृषि मंत्री
नई दिल्ली (एसएनबी)। कृषि मंत्री शरद पवार ने अब कृषि के पहले अग्रिम अनुमान में यह माना कि खरीफ सत्र में देश का खाद्यान्न उत्पादन 10 फीसदी तक घटकर 11 करोड़ 71.8 लाख टन रह जाएगा। लगातार दो साल अच्छी फसल और उत्पादन के रिकार्ड के बाद इस साल देश में खाद्यान्न उत्पादन घटेगा। पिछले साल 12 करोड़ 99.4 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन था। बाजार में गेहूं, चावल और आटे की कीमतें बढ़ने पर चिंता जताते हुए पवार ने कहा कि जब भंडार की स्थिति ठीक है और फसल भी अच्छी है तो कीमतें क्यों चढ़ रही हैं। इस मुद्दे पर वह खाद्य मंत्री से बात करेंगे। पवार ने कहा कि कमजोर मानसून के कारण खरीफ उत्पादन में गिरावट आई है। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछले साल के खरीफ सत्र में खाद्यान्न उत्पादन 12 करोड़ 99.4 लाख टन हुआ था। चावल का उत्पादन खरीफ सत्र में घटकर आठ करोड़ 55.9 लाख टन रह जाने का अनुमान है, जो पिछले खरीफ सत्र गर्मी की फसल में नौ करोड़ 15.3 लाख टन था। उन्होंने कहा कि पहले अग्रिम अनुमान में फसल वर्ष 2012-13 के खरीफ सत्र में खाद्यान्न उत्पादन 11 करोड़ 71.8 लाख टन होने की उम्मीद है जो पिछले वर्ष के मुकाबले कम है लेकिन यह पिछले पांच वर्षो के 11.3 करोड़ टन के औसत से कहीं बेहतर है। खरीफ सत्र में जो भी कमी हमने देखी है उसकी भरपाई रबी सत्र में कर ली जाएगी। उन्होंने कहा कि इस वर्ष खरीफ सत्र में दलहनों का उत्पादन 52.6 लाख टन होने का अनुमान है।

राष्ट्रीय  सहारा  दिल्ली संस्करण पेज 12, 25-9-2012 कृषि

Monday, September 17, 2012

धान के साथ मछली पालन भी



ईटानगर, प्रेट्र : अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में कृषि विज्ञान केंद्र ने पहली बार धान की खेती के साथ ही मत्स्य पालन भी दोगुना करने का अचूक तरीका निकाला है। इससे धान की फसल तो लहलहाएगी ही उसी समय और संसाधन में मछलियां भी पलेंगी। सूत्रों के अनुसार कृषि की इस दोगुने फायदे वाली विधि का प्रायोगिक परीक्षण यहां के गांव खाओजी और जुना-चतुर्थ में किया गया है। इन गांवों की तीन हेक्टेयर की चार इकाइयों को लिया गया है। 2 से 3 फीट चौड़ी नहरों को डेढ़ से दो फीट गहरा खोदा गया है। यह नहर धान के खेतों के दोनों ओर बनाई गई है। साथ ही इसे पास में एक छोटे से तालाब से जोड़ दिया गया है। इस तालाब की लंबाई और चौड़ाई क्रमश: 0.01 और 0.03 हेक्टेयर है। धान की रोपाई से पहले पानी से लबालब नहरों में मछलियों को छोड़ दिया गया। जब जलस्तर ऊपर चढ़ा तो मछलियां इन तालाब और नहरों से होते हुए धान के रोपे हुए खेतों में आ गईं जो पहले ही पानी से तर थे। इससे मछलियों की तादाद में 80 से 100 गुना का इजाफा हुआ। सूत्रों का कहना है कि इससे मछलियों का उत्पादन कई गुना बढ़ने की वजह ये है कि उन्हें अपने जीवनयापन के लिए बड़ा जल क्षेत्र मिल गया है। उन्हें धान के खेतों के मिट्टी युक्त पानी में स्वभाविक भोजन और कीड़े भी मिल गए। लगे हाथ धान के पौधों को कीट और रोग लगने का खतरा भी दूर हो गया। कृषि विज्ञान केंद्र ने इसी तर्ज पर एक दलदली क्षेत्र में सूअर बाड़ा खोला। हार्टीकल्चर की फसलें जैसे केला आदि के भी पेड़ लगाए। इसके बाद जब धान की फसल पक गई और वहां पानी सूख गया तो उन मछलियों को भोजन-पानी दलदली क्षेत्र से मिलने लगा। अब इस विधि से एक किसान को मछली, सूअर और फसलों से चौतरफा फायदा होगा। बहादुर नाम की किस्म के चावल के लिए धान की बुआई मई में की गई थी। वहां पर सिर्फ 130 दिन के अंदर एक मछली का खुद का विकास भी औसतन 250 ग्राम तक हुआ। लोहित जिले में बारिश अच्छी हुई थी इसलिए वहां बहुआयामी फसलों के साथ ही मत्सय और सूअर पालन भी किया जा सका। फिर खाओजी गांव में इस विधि में सफलता मिलने के बाद इसकी विधि और फायदे किसानों, नेताओं, प्रशासकों और सरकारी अधिकारियों को दिखाए और समझाए गए। इस कृषि अनुसंधान का खर्च और जिम्मा नाबार्ड ने उठाया।

खरीफ में डेढ़ करोड़ टन कम पैदावार का अनुमान



ठ्ठ सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली मानसून में देरी और कम बारिश से जहां धान का रोपाई रकबा घट गया, वहीं मोटे अनाज और दलहन की बुआई कम हो पाई है। लौटते मानसून की बारिश से भी उत्पादन में बहुत सुधार की गुंजाइश नहीं है। यही वजह है कि खरीफ सीजन में खाद्यान्न की पैदावार में लगभग डेढ़ करोड़ टन की कमी का अनुमान है। गोदामों में भारी मात्रा में अनाज होने की वजह से खाद्य सुरक्षा पर खतरा भले ही न हो, लेकिन महंगाई बढ़ने के पूरे आसार हैं। खरीफ की सभी प्रमुख फसलों के उत्पादन पर मानसून के देर से आने का असर पड़ा है। कृषि मंत्रालय ने पैदावार के प्राथमिक अनुमान का आंकड़ा लगभग तैयार कर लिया है, जिसे सितंबर के आखिरी महीने तक जारी किए जाने की संभावना है। पिछले खरीफ सीजन (2011-12) में चावल का कुल उत्पादन 9.15 करोड़ टन हुआ था। चालू सीजन में रोपाई रकबे में लगभग 16 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। प्रति हेक्टेयर 2.5 टन उत्पादकता के अनुमान के आधार पर चावल की पैदावार 40 लाख टन कम होगी। बारिश शुरू होने के बाद हुई कुछ रोपाई के आंकड़ों को भी शामिल कर लिया जाए तो भी उत्पादन में बहुत सुधार की गुंजाइश नहीं दिखती। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, सात सितंबर तक कुल 350 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी। लेकिन इस सीजन में असामान्य बारिश की वजह से खेतों में खड़ी धान की फसल की उत्पादकता में पांच से सात फीसद तक की कमी आ सकती है। यानी चावल की कुल पैदावार में 45 लाख टन की कमी आने का अनुमान है। मानसून के गड़बड़ाने से मोटे अनाज वर्ग वाले ज्वार, बाजरा व मक्का समेत अन्य फसलों की खेती में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। पिछले खरीफ सीजन के मुकाबले कुल 22 लाख हेक्टेयर तक रकबा घट गया है। इनकी औसत उत्पादकता 1.5 टन प्रति हेक्टेयर को आधार मानें तो कुल पैदावार में 35 लाख टन तक की गिरावट आएगी। समय पर बारिश न होने की वजह से दलहन खेती भी प्रभावित हुई है। दलहन की बुआई में छह लाख हेक्टेयर बुआई कम आई है। इससे दलहन उत्पादन में गिरावट तय है। खाद्यान्न की कुल पैदावार को जोड़ें तो लगभग डेढ़ करोड़ टन कमी आने का अनुमान है। खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान सरकार के साथ जिंस कारोबार से जुड़े व्यापारिक प्रतिष्ठान व कमोडिटी एक्सचेंज भी लगाने में जुटे हुए हैं।