Sunday, May 15, 2011

पसीने से सींच रहे मूंग की फसल


कौन कहता है कि बुंदेलखंड की धरती बंजर हो गई। हौसले के साथ मेहनत की तो यही माटी सोना उगलने लगी। सांतर गांव के एक किसान ने जायद में मूंग की खेती कर खेतों में ऐसी हरियाली बिखेरी की गांव ही नहीं क्षेत्र के किसानों में उम्मीद की किरण चटक हो गयी। अब तो पूरे इलाके में हरियाली दिखाई पड़ने लगी। पिछले दस वर्ष से लगातार पड़ रहे सूखे से बुंदेलखंड के किसानों में हताशा और निराशा भर गयी है। लोग समझने लगे कि हमारी माटी ही धोखा दे गयी है पर ऐसा नहीं है। सांतर के किसान गोपाल शरण सिंह ने 2009 में मूंग की खेती शुरु की। उस समय गांव के किसान यही कह रहे थे कि काहे को पैसा बर्बाद कर रहे हो कुछ होना नहीं है पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हाड़तोड़ मेहनत से सिंचाई का बंदोबस्त किया। रात-दिन रखवाली करके मूंग की फसल तैयार की। 10 बीघे में 10 क्विंटल यानि 60 हजार रुपये की उपज मिली और खर्च मात्र 10 हजार हुआ। 62 दिन में फसल तैयार हो गयी, 50 हजार की आमदनी से गोपाल शरण सिंह का हौसला बढ़ा और 2010 में 17 बीघे मूंग की खेती करके एक लाख रुपये की आमदनी हासिल की। इस वर्ष गोपाल शरण सिंह ने 40 बीघे में मूंग की खेती की है। उनका मानना है कि सबकुछ ठीक रहा तो पांच लाख तक की पैदावार मिलेगी। तकरीबन 40 बीघे में 70 से 80 क्विंटल मूंग की पैदावार मिलने की संभावना है।


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