Wednesday, June 15, 2011

कूड़े से तैयार होगा खेतों के लिए सोना


कूड़ा अब कूड़ा नहीं खरा सोना बन जाएगा। सड़कों पर गंदगी व बदबू फैलाने वाले कूड़े में मौजूद जैविक (सड़ने वाले) कचरे का इस्तेमाल गुणवत्तायुक्त जैव उर्वरक बनाने के लिए किया जाएगा। यह जैव उर्वरक किसान के खेतों में सोना बरसाएगा। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) ने शनिवार को अमेरिकी संस्था प्रोटेरा इंटरनेशनल की शाखा प्रोटेरा इंडिया के साथ अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। एनबीआरआइ के निदेशक डॉ. सीएस नौटियाल ने बताया कि जैव उर्वरक के रूप में ऐसा उत्पाद बनाने की कोशिश की जाएगी जो व्यवसायिक रूप से उत्तम होने के साथ खेतों की पैदावार बढ़ाने के साथ कृषि भूमि की उर्वरकता भी बढ़ा सके। डॉ. नौटियाल ने बताया कि इस जैव उर्वरक को बनाने के लिए चूंकि कार्बनिक पदार्थो का प्रयोग किया जाएगा इसलिए यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी साबित होगा। प्रोटेरा इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क होजज ने बताया कि जैव उर्वरक के क्षेत्र में भारत में बहुत काम हुआ है। इंडो यूएस फाउंडेशन फॉर रिसर्च के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रो. अरुण गोयल ने बताया कि हरदोई रोड पर वर्ष 2003 में सौ करोड़ की लागत से स्थापित किए गए एशिया बायो एनर्जी संयत्र को पुन: चलाने की जुगत की जा रही है। कूड़े केलिए एक निजी संस्था से बात हो चुकी है। प्रो. गोयल ने बताया कि कूड़े से बिजली बनाने के अलावा प्लास्टिक से आरडीएफ (रिफ्यूज्ड डेराइव्ड फ्यूल) तैयार होगा, जिसे गुणवत्ता युक्त बायोफर्टिलाइजर में तब्दील किया जाएगा। इस कार्य के लिए एनबीआरआइ का सहयोग लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि जैव उर्वरक बनाने के लिए कृषि कचरे के साथ दौलतगंज व भरवारा में निकल रहे कचरे का उपयोग भी खाद बनाने के लिए किया जाएगा। इसमें लगभग सौ करोड़ रुपये का खर्च आएगा, जिसे अमेरिकी कंपनी प्रोटेरा वहन करेगी। कृषि निदेशक डॉ. मुकेश गौतम ने बताया कि तैयार जैव उर्वरक का प्रयोग किसान उत्पादकता बढ़ाने के लिए करेंगे। हालांकि इस प्रोजेक्ट को राज्य सरकार की हरी झंडी मिलना बाकी है। प्रो. गोयल ने बताया कि अनुमति मिलने के एक साल के बाद यह कार्य शुरू कर दिया जाएगा.

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