Wednesday, June 29, 2011

पाकिस्तान का एक और धोखा


लेखक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के चुनावों की विश्वसनीयता परसवाल खड़े कर रहे हैं...
एक ऐसे समय जब सारा ध्यान भारत और पाकिस्तान के बीच विदेश सचिवों की वार्ता पर लगा हुआ है तब आज यानी 26 जून को हो रही एक महत्वपूर्ण घटना लोगों की निगाहों से कुल मिलाकर अछूती ही लग रही है। यह घटना है पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चुनाव। पाक अधिकृत कश्मीर में नई सरकार के निर्वाचन के लिए हो रहे चुनाव ने एक बार फिर यह सवाल हमारे सामने ला दिया है कि पाकिस्तान सरकार और वहां की सेना इस क्षेत्र के लोगों और उनके मानवाधिकारों के साथ कैसा सलूक करती है? निर्वाचन प्रक्रिया में राजनीतिक और सैन्य तंत्र के हस्तक्षेप और बाहुबल के आधार पर पूर्व निर्धारित परिणाम प्राप्त करने की कोशिश की बातें न केवल अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हो रही हैं, बल्कि अब पाकिस्तान के भीतर भी ऐसे सवाल उठने लगे हैं। पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन पहले ही पीपीपी नीत सरकार पर यह आरोप लगा चुकी है कि वह चुनाव में धांधली कर रही है। मतदाता सूची में गड़बडि़यों फर्जी पहचान पत्र वितरित करने के तथ्यों ने चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। जहां तक भारत का प्रश्न है तो विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा गया है कि इस्लामाबाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के प्रति गंभीर नहीं है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि जिस तरह उन राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को प्रतिबंधित कर दिया है जिन्होंने जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान में विलय के विचार का समर्थन नहीं किया है उससे पता चलता है कि पाकिस्तान अपनी इस कथित नीति के प्रति कितना अगंभीर है कि जम्मू-कश्मीर के भविष्य का निर्धारण वहां के लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। इससे पता चलता है कि नए चुनाव भी पहले के चुनावों का री-प्ले होंगे जब लोगों को अपनी पसंद के राजनीतिक दल और उम्मीदवार को मत देने का अवसर नहीं दिया गया। पाकिस्तान सरकार की धांधली का प्रमाण है पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के एक दल द्वारा तैयार की गई यह रपट जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के चुनाव आयुक्त और वरिष्ठ न्यायाधीशों के खिलाफ अनेक शिकायतों का ब्यौरा दिया गया है। इन शिकायतों में ब ताया गया है कि चुनाव आयुक्तों और न्यायाधीशों ने किस तरह चुनावों के दौरान और उसके बाद किस तरह अनियमितताओं पर पर्दा डालने में मदद दी। संघीय सरकार अनेक विवादास्पद कानूनों का सहारा लेकर विरोधी दलों के उम्मीदवारों को दंडित भी करती है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के अंतरिम संविधान में एक प्रावधान है जिसके तहत ऐसे किसी भी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की विचारधारा के खिलाफ प्रचार अथवा कार्य करे। जबरन प्रतिबंधित कर दिए गए उम्मीदवारों द्वारा दायर की जाने वाली याचिकाएं चुनाव आयोग और न्यायालयों में सतही आधारों पर खारिज कर दी जाती हैं। गैर-पीपीपी दलों के उम्मीदवार इस कदर चिंतित हैं कि उनमें से एक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर असेंबली की 12 गैर-क्षेत्रीय सीटों के निर्वाचन के लिए मतदाता सूची तैयार करने के चुनाव आयोग के अधिकार को चुनौती दी है। इन सीटों के लिए पाकिस्तान के किसी भी भाग का उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है। मतदाता सूची तैयार करने का काम 2006 में हुए पिछले चुनाव में भी विवादास्पद तरीके से किया गया था। उस समय के मुख्य चुनाव आयुक्त (सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश) नई सूची तैयार करने के इच्छुक थे, जबकि पार्टियां चाहती थीं कि पुरानी सूची को ही अपडेट किया जाए। जब न्यायाधीश की सिफारिश राजनीतिक पार्टियों द्वारा खारिज कर दी गई तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने चुनाव आयुक्त के रूप में उनका स्थान लिया। मुख्य न्यायाधीश सेना द्वारा नियुक्त किए गए थे और राजनीतिक दलों ने अंदेशा जताया कि चुनाव में गड़बडि़यां की जा सकती हैं। मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में भी इसी प्रकार के आरोप सामने आए। फर्जी पहचान पत्र तैयार करने के अतिरिक्त मनमाने तरीके से मतदाता सूची बनाई गईं। इसके अलावा संघीय सरकार ने लोगों को चुनाव के ऐन पहले गैस और बिजली के कनेक्शन देकर एक प्रकार की रिश्वत भी दी। सरकार का हस्तक्षेप इससे भी प्रमाणित होता है कि चुनाव के दो रिटर्निग अफसर त्यागपत्र देने के लिए विवश हुए। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के प्रधानमंत्री सरदार अतीक अहमद खान ने हाल में स्वीकार किया है कि वोटर लिस्ट तैयार करने में गलतियां हुईं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के नेताओं और लोगों की इससे भी बड़ी आशंका यह है कि चुनावों में गड़बड़ी में आइएसआइ और सेना की भूमिका हो सकती है। आइएसआइ की पीओके में भूमिका किसी से छिपी नहीं है और चुनाव आयुक्त, न्यायाधीशों तथा अन्य सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति में इसे महसूस भी किया जा सकता है। इस्लामाबाद कैसा भी दावा क्यों न करे, लेकिन पीओके में चुनावों के नाटक ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कश्मीर के संदर्भ में वह कैसा दोहरा रवैया अपनाए हुए है। (लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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