Monday, September 17, 2012

धान के साथ मछली पालन भी



ईटानगर, प्रेट्र : अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में कृषि विज्ञान केंद्र ने पहली बार धान की खेती के साथ ही मत्स्य पालन भी दोगुना करने का अचूक तरीका निकाला है। इससे धान की फसल तो लहलहाएगी ही उसी समय और संसाधन में मछलियां भी पलेंगी। सूत्रों के अनुसार कृषि की इस दोगुने फायदे वाली विधि का प्रायोगिक परीक्षण यहां के गांव खाओजी और जुना-चतुर्थ में किया गया है। इन गांवों की तीन हेक्टेयर की चार इकाइयों को लिया गया है। 2 से 3 फीट चौड़ी नहरों को डेढ़ से दो फीट गहरा खोदा गया है। यह नहर धान के खेतों के दोनों ओर बनाई गई है। साथ ही इसे पास में एक छोटे से तालाब से जोड़ दिया गया है। इस तालाब की लंबाई और चौड़ाई क्रमश: 0.01 और 0.03 हेक्टेयर है। धान की रोपाई से पहले पानी से लबालब नहरों में मछलियों को छोड़ दिया गया। जब जलस्तर ऊपर चढ़ा तो मछलियां इन तालाब और नहरों से होते हुए धान के रोपे हुए खेतों में आ गईं जो पहले ही पानी से तर थे। इससे मछलियों की तादाद में 80 से 100 गुना का इजाफा हुआ। सूत्रों का कहना है कि इससे मछलियों का उत्पादन कई गुना बढ़ने की वजह ये है कि उन्हें अपने जीवनयापन के लिए बड़ा जल क्षेत्र मिल गया है। उन्हें धान के खेतों के मिट्टी युक्त पानी में स्वभाविक भोजन और कीड़े भी मिल गए। लगे हाथ धान के पौधों को कीट और रोग लगने का खतरा भी दूर हो गया। कृषि विज्ञान केंद्र ने इसी तर्ज पर एक दलदली क्षेत्र में सूअर बाड़ा खोला। हार्टीकल्चर की फसलें जैसे केला आदि के भी पेड़ लगाए। इसके बाद जब धान की फसल पक गई और वहां पानी सूख गया तो उन मछलियों को भोजन-पानी दलदली क्षेत्र से मिलने लगा। अब इस विधि से एक किसान को मछली, सूअर और फसलों से चौतरफा फायदा होगा। बहादुर नाम की किस्म के चावल के लिए धान की बुआई मई में की गई थी। वहां पर सिर्फ 130 दिन के अंदर एक मछली का खुद का विकास भी औसतन 250 ग्राम तक हुआ। लोहित जिले में बारिश अच्छी हुई थी इसलिए वहां बहुआयामी फसलों के साथ ही मत्सय और सूअर पालन भी किया जा सका। फिर खाओजी गांव में इस विधि में सफलता मिलने के बाद इसकी विधि और फायदे किसानों, नेताओं, प्रशासकों और सरकारी अधिकारियों को दिखाए और समझाए गए। इस कृषि अनुसंधान का खर्च और जिम्मा नाबार्ड ने उठाया।

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