Monday, September 19, 2011

गन्ना मूल्य पर बढ़ी यूपी में सियासी तपिश

लखनऊ चुनावी साल में करीब 45 लाख गन्ना किसानों पर निगाहें लगाए सियासी दलों ने गन्ने के समर्थन मूल्य को लेकर लामबंदी तेज कर दी है। राज्य परामर्शी मूल्य एसएपी 350 रुपये प्रति क्विंटल से कम करने के लिए विपक्षी दलों ने प्रदेश सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया तो चीनी मिल संचालकों ने हाथ खड़े कर दिए है। मौजूदा हालात में 171 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा दाम देने पर मिलों का घाटा बेकाबू होने की दुहाई देते हुए अपना पक्ष प्रस्तुत किया है। किसानों को खुश करने की खातिर ही बसपा सरकार ने गत पेराई सत्र में गन्ने के दामों में 40 रुपये प्रति क्विंटल की रिकार्ड वृद्धि की। बकाया गन्ना मूल्य का अधिकतम भुगतान कराने को हर संभव जतन भी किया। अब चूंकि छह सात माह के भीतर ही विस चुनाव होने की संभावना है इसलिए इस सत्र में किसानों को अधिकतम लाभ देने के प्रयास सरकार द्वारा किए जाएंगे। सूत्रों की मानें तो गन्ने की दामों में बीस से पच्चीस रुपये की बढ़ोत्तरी हो सकती है जबकि किसान संगठन 350 रुपये प्रति क्विंटल की मांग कर रहे है। भारतीय किसान संघ के महासचिव श्यामवीर सिंह का कहना है कि इससे कम दाम मिलने से किसानों का भला नहीं होगा। किसानों को लुभाने के लिए केंद्र सरकार भी पीछे नहीं है, इसलिए वर्ष 2012-13 के लिए उचित व लाभकारी मूल्य की घोषणा करीब एक वर्ष पूर्व कर दी। केंद्र ने एफआरपी में 17 प्रतिशत की वृद्धि कर प्रदेश सरकार के सामने इसी दर में बढ़ोत्तरी का टारगेट दे दिया। बता दे कि केंद्र द्वारा वर्ष 2011-12 के लिए एफआरपी में दस रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी पहले ही कर दी थी। किसान मंच के सुधीर पंवार भी खाद, डीजल और मजदूरी दरों में भारी बढ़ोत्तरी का हवाला देते हुए गन्ने के कीमतों में 20 से 30 प्रतिशत की वृद्धि जरूरी बताते है। दूसरी ओर भारतीय चीनी मिल संघ चुनावी वर्ष में गन्ने की कीमतों को लेकर अधिक चिंतित है। प्रदेश सरकार को सौंपे ज्ञापन में मिल संचालकों ने 171 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक गन्ना मूल्य देने में असमर्थता जताई है। इस्मा सूत्रों का कहना है कि चीनी निर्यात समय से शुरू न होने के कारण मिलों की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है। पूरी क्षमता से मिलों का न चल पाना और गन्ने से रिकवरी पर्याप्त न होने के कारण भी मुश्किलें बढ़ी हैं। वोटों की चाहत में गन्ने के दामों में अधिक वृद्धि की तो घाटा बेकाबू हो जाएगा

No comments:

Post a Comment