Thursday, September 8, 2011

किसान वापस नहीं पा सकेंगे अधिग्रहीत भूमि


नई दिल्ली केंद्र सरकार ने भू-अधिग्रहण बिल में किसानों को भरपूर मुआवजा देने के मामले में हाथ खींच लिये हैं। अधिग्रहीत जमीन किसी हाल में किसानों को वापस मिल सकेगी। मंत्रिमंडल ने भू-अधिग्रहण बिल के जिस मसौदे को सोमवार को मंजूरी दी है, उसमें तमाम दबावों के चलते मुआवजा दरों में मूल मसौदे के मुकाबले कटौती की गई है। शहरी क्षेत्र में मुआवजा बाजार मूल्य से दो गुना होगा, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में इसे छह से घटाकर चार गुना कर दिया गया है। कानून बनने पर विधेयक के प्रावधान उन जमीनों पर भी लागू होंगे जिनका अधिग्रहण हो चुका है,पर कब्जा नहीं लिया गया है, या किसानों को मुआवजा नहीं मिला है। 117 साल पुराने कानून की जगह लेने वाला यह बिल 7 सितंबर को संसद में पेश होगा। हालांकि राहुल गांधी के छाप वाले इस बिल की कुछ बातों पर कई मंत्रियों को आपत्ति थी, जो पूर्व में मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के आग्रह और उद्योग संगठनों के दबाव में बहु फसली जमीन के अधिग्रहण के प्रावधान में ढील दी गई है, जबकि बहु फसली जमीन के अधिग्रहण पर पहले सख्त प्रतिबंध का प्रावधान किया गया था। मंत्रिमंडल द्वारा पारित विधेयक के मुताबिक, किसी भी गांव की पांच फीसदी से अधिक बहु फसली जमीन अधिग्रहीत नहीं की जाएगी। कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने बताया कि राज्यों को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की आजादी होगी। विधेयक के मसौदे में पहले जहां यह प्रावधान था कि किसानों की अधिग्रहीत जमीन पर पांच सालों के दौरान अगर प्रस्तावित परियोजना स्थापित नहीं हुई तो जमीन किसानों को वापस कर दी जाएगी। लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूर विधेयक में इसमें आमूलचूल परिवर्तन कर दिया गया है। उद्योग संगठनों के दबाव में अब परियोजना स्थापित करने की अवधि बढ़ाकर 10 साल कर दी गई है, इसके बाद भी परियोजना नहीं लगी तो उसे किसानों को देने के बजाय संबंधित राज्यों के भूमि बैंक को सौंप देने का प्रावधान कर दिया गया है। हालांकि भूमि अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी भूस्वामियों की सहमति जरूरी होगी। जनहित को परिभाषित करते हुए इसके दायरे को सीमित किया गया है, लेकिन एक नया वर्ग भी जोड़ा गया, जिसमें विद्युत संयंत्र, रेलवे, बंदरगाह और सिंचाई परियोजनाएं प्रमुख हैं। शर्त यह है कि ऐसी परियोजनाएं शत प्रतिशत सरकारी होनी चाहिए। निजी भागीदारी वाली परियोजनाएं जनहित के दायरे में नहीं आएंगी। जमीन के मुआवजे सहित पेंशन और अधिग्रहीत भूमि के मालिक को उस पर बनने वाली परियोजना में नौकरी और कई तरह के नकद मुआवजे का प्रावधान है। नौकरी दे पाने पर पांच लाख नगद देने होगा। पेंशन के तौर पर भू स्वामी को साल भर तक 3000 और इसके बाद अगले 20 साल तक 2000 रुपये मासिक पेंशन देनी होगी। पुनर्वास पुनस्र्थापन पैकेज को संशोधित करते हुए ग्रामीण क्षेत्र में इसकी सीमा जहां 100 एकड़ ही रहेगी, वहीं शहरी क्षेत्र के लिए इसे घटाकर 50 एकड़ कर दिया गया है। अधिग्रहीत जमीन के बदले जमीन देने का प्रावधान जहां लागू होगा, वहां प्रभावित अनुसूचित जन जाति के भूस्वामी को एक एकड़ के मुकाबले पांच एकड़ देने का प्रावधान होगा। यही लाभ अनुसूचित जाति के भूस्वामी को भी मिलेगा।

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