Monday, September 5, 2011

धन की कमी से कृषि शोध चौपट


नई दिल्ली धन की कमी के चलते कृषि क्षेत्र में अनुसंधान, नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना और कृषि प्रसार का कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। कृषि क्षेत्र में नैनो टेक्नोलॉजी, स्टेम सेल, जेनोमिक्स और बायो रेमिडिएशन जैसे महत्वपूर्ण अनुसंधान प्रभावित हो रहे हैं। इससे खेती की गुणवत्ता व फसलों की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। बजट में लगातार कटौती से कृषि क्षेत्र की लगभग दो दर्जन शोध परियोजनाएं रूक गई हैं। इनमें दलहन, आलू, केला, खुम्बी, विभिन्न भौगोलिक जोन में फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अलग-अलग फार्मूला, लवणीय और क्षारीय जमीनों को उर्वर बनाने, मत्स्य पालन के नए तरीके और जूट मिलों के कचरे को जैविक खाद में तब्दील करने जैसी परियोजनाओं में अनुसंधान प्रभावित हैं। असिंचित क्षेत्रों में वैज्ञानिक खेती और पूर्वी राज्यों में उत्पादकता बढ़ाने की योजना की सफलता पर भी सवाल खड़ा हो गया है। कृषि शिक्षा और कृषि प्रसार को भी धक्का लगा है। धन का उचित आवंटन न होने से देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित होने वाले तीन केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों के फैसले दस्तावेजों से वास्तविक जमीन पर नहीं उतर पा रहे हैं। मेघालय के बड़ापानी, बिहार में पूसा और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थापित होने में हो रही देरी पर संसद की स्थायी समिति ने सरकार को फटकार लगाई है। समिति के अनुसार धन के अभाव में कृषि क्षेत्र में अनुसंधान व शिक्षा के प्रभावित होने के साथ कृषि प्रसार की पूरी प्रणाली लड़खड़ा गई है। देश में अभी भी महज 589 कृषि विज्ञान केंद्र हैं। जबकि 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इनकी संख्या बढ़ाकर 667 की जानी थी। मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि निधि के कम आवंटन से इन केंद्रों का ढांचागत विकास नहीं हो पा रहा है। ज्यादातर केंद्रों पर प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों के रहने के लिए हॉस्टल, स्टाफ क्वार्टर और उपकरणों की भारी कमी है। इस वजह से केंद्र कृषि प्रसार का अपना मूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं। कृषि अनुसंधान व शिक्षा विभाग (डेयर) को चालू वित्त वर्ष 2011-12 में 2,800 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। जबकि 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए विभाग को 12,023 करोड़ रुपये आवंटित किया जाना था। मगर इसमें कटौती से इस दौरान विभाग को केवल 10,054 करोड़ रुपये ही मिल पाए हैं। यह कुल केंद्रीय योजना खर्च का केवल 0.46 फीसदी ही बैठता है


No comments:

Post a Comment