Saturday, July 30, 2011

कानून बना पर नहीं लिया गया राष्ट्रपति का अनुमोदन: टाटा


सिंगुर मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश इंद्र प्रसन्न मुखर्जी द्वारा सिंगुर विकास व पुनर्वास अधिनियम 2011 की वैधता पर पूछे गए सवाल के जवाब में टाटा के अधिवक्ता समरादित्य पाल ने शुक्रवार को अपनी दलील रखी। श्री पाल ने न्यायाधीश को जमीन अधिग्रहण व वापसी से संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों की नजीर पेश की। साथ ही कहा कि संविधान में संयुक्त रूप से जमीन अधिग्रहण कानून सूचीबद्ध है ऐसे में कोई भी राज्य सरकार राष्ट्रपति के अनुमोदन के बिना नया कानून नहीं बना सकता। सिंगुर अधिनियम इसलिए असंवैधानिक और अवैध हैं क्योंकि विधानसभा में राज्य सरकार बिल पास करा कर सिर्फ राज्यपाल का अनुमोदन लिया है। नई पीठ में मामले की दूसरे दिन हुई सुनवाई में टाटा के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट और अन्य उच्च अदालतों द्वारा दिए गए फैसले के कानूनी पहलुओं को रखा। न्यायाधीश इंद्र प्रसन्न मुखर्जी से श्री पाल ने कहा कि जमीन अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न समय पर दिए गए फैसले से प्रमाणित होता है कि बंगाल सरकार ने जो कानून बनाया है वह असंवैधानिक है। कोई भी राज्य सरकार जमीन अधिग्रहण के मामले में एकेला ही बिल लाकर नया कानून नहीं तैयार कर सकता। सिर्फ विधानसभा में बिल पास करा कर राज्यपाल से सहमति लेने से कानून नहीं बनाया जा सकता। राष्ट्रपति का अनुमोदन आवश्यक है। वहीं किसी भी जमीन को अधिग्रहण से पहले सरकार को जिसके पास मालिकाना है उसे सूचित करना पड़ता है। कानून बनने के पास जिस तरह से चुपके से नोटिस लगाया गया और पुलिस फोर्स का इस्तेमाल जमीन पर कब्जा किया गया वह असंवैधानिक व अनैतिक है। टाटा ने जमीन जबर्दस्ती नहीं ली थी उसे राज्य सरकार से लीज पर लिया था। मामल पर अगली सुनवाई सोमवार को होगी।


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