Tuesday, July 26, 2011

सिरदर्द बनीं देर से दाखिल याचिकाएंनई दिल्ली


नोएडा के विवादित भू-अधिग्रहण मामले में फैसला सुनाने वाली सुप्रीमकोर्ट खुद ही बड़ी दुविधा में है। देश के प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाडि़या ने देर से दाखिल होने वाली याचिकाओं को सिर दर्द बताया है। उनका कहना है कि मौैजूदा समय में उसे करोड़ों रुपये की लागत वाली परियोजनाओं के खिलाफ देर से दाखिल होने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करनी पड़ती है। ऐसे मामलों में न्यायालय को पूर्व में हुए फैसलों को बाद के चरण में मंजूरी देने के संबंध में निर्णय करना होता है। यह चलन शीर्ष अदालत की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। न्यायमूर्ति एसएच कपाडि़या ने रविवार को यहां वैश्विक पर्यावरण और आपदा प्रबंधन पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, उच्चतम न्यायालय को पिछले कुछ वर्षो से नई समस्या का सामना करना पड़ रहा है। शीर्ष अदालत के समक्ष उन संयंत्र, इमारतों व अन्य परियोजनाओं के खिलाफ जनहित याचिकाएं दाखिल कर दी जाती हैं, जो अंतिम चरण में होती हैं और जिन पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके होते हैं। देर से दाखिल होने वाली इन याचिकाओं में न्यायालय को पूर्व में हुए फैसलों को बाद के चरण में मंजूरी देने के संबंध में निर्णय करना होता है। मौजूदा समय में यह शीर्ष न्यायालय की सबसे बड़ी समस्या है। उन्होंने परियोजनाओं को दी जाने वाली पर्यावरण मंजूरी के संदर्भ में कहा, इस मामले में स्थानीय निकाय भी अदालत की मुश्किलें बढ़ा देती हैं। कभी- कभी तो वे खुद ही उस अनापत्ति प्रमाण पत्र को खारिज कर देतीं हैं या वापस ले लेती हैं, जिसे पूर्व में उन्होंने ही जारी किया होता है। हमें समझना होगा कि भारत में ऐसा हो सकता है, क्योंकि यहां पर्यावरण आकलन की प्रक्रिया में जनभागीदारी भी शामिल होती है। कपाडि़या ने कहा, जहां तक अदालतों का सवाल है तो हमें लोगों के जीवन यापन को ध्यान में रखते हुए नैतिक फैसले करने होते हैं। उन्होंने कहा, वर्तमान हालात और रवैए को देखते हुए इस संबंध में विचार किया जाना चाहिए कि ऐसी स्थिति में न्यायालय को क्या करना चाहिए। इस संबंध में ब्रिटिश अदालतों ने संसाधनों व तर्कसंगतता के बीच संतुलन साधती अवधारणा विकसित की है। प्रधान मुख्य न्यायाधीश कपाडि़या का यह बयान बेहद अहम है, क्योंकि उन्होंने यह बात ऐसे समय में कही है जबकि ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों की विभिन्न आवासीय परियोजनाओं में निवेश करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले (उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 750 हेक्टेयर जमीन के भू-अधिग्रहण को रद किए जाने का निर्णय) को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। हाल ही में उच्च न्यायालय ने नोएडा एक्सटेंशन-साबेरी और पतवाड़ी गांव के भूमि अधिग्रहण को रद कर दिया था। अदालत का कहना था कि राज्य सरकार ने किसानों से जमीन लेकर बिल्डरों को दे दी। साथ ही किसानों को उचित मुआवजा नहीं दिया। अदालत ने आदेश दिया है कि अधिग्रहीत जमीन पर बने फ्लैटों को गिरा कर किसानों को उनकी जमीन लौटा दी जाए, जबकि करोड़ों रुपये की लागत वाली कई आवासीय परियोजनाएं पूरी होने को हैं। कपाडि़या ने विधि मंत्रालय, सुप्रीमकोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट, भारतीय विधि संस्थान, पर्यावरण व वन मंत्रालय द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी के संदर्भ में कहा, पिछले कुछ वर्षो से उच्चतम न्यायालय मामलों को न्यायिक समीक्षा की दृष्टि से देखता आया है, लेकिन हाल ही में संवाद आधारित समीक्षा प्रक्रिया की नई अवधारणा सामने आई है। इस तरह (व्याख्यानों के जरिए) न्यायाधीश अब प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों के साथ संवाद करते हुए समीक्षा कर सकते हैं।

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