Friday, August 12, 2011

भू-अधिग्रहण बिल को रियल एस्टेट कंपनियों ने नकारा


नई दिल्ली देश भर की रियल एस्टेट कंपनियों ने प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक को नकार दिया है। रियल स्टेट कंपनियों के शीर्ष संगठन क्रेडाई ने कहा है कि यह विधेयक देश में आवासीय इकाइयों में जबरदस्त कमी लाने का कारण बनेगा। खास तौर पर गंगा के तटीय व मैदानी इलाकों में आवासीय परियोजना लगाना मुश्किल हो जाएगा। क्रेडाई ने इस विधेयक को किसान विरोधी बताते हुए कहा है कि इससे देश भर में असंगठित क्षेत्र में आवासीय इकाइयों का निर्माण होगा। संगठित क्षेत्र में रियल एस्टेट की 6,000 कंपनियां क्रेडाई की सदस्य हैं। क्रेडाई के अध्यक्ष प्रदीप जैन का कहना है कि इस विधेयक से किसानों को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि वे गरीब के गरीब ही बने रहेंगे। क्रेडाई की मांग है कि निजी क्षेत्र को आवासीय परियोजना लगाने के लिए सीधे किसानों से जमीन अधिग्रहण की मंजूरी मिलनी चाहिए। इससे किसानों को सरकारी रेट से कई गुना ज्यादा मुआवजा मिल सकता है। मगर सरकार सभी तरह के अधिग्रहण का अधिकार अपने पास रख रही है। इससे किसानों को कभी बाजार भाव का मुआवजा नहीं मिल पाएगा। क्रेडाई ने एक से ज्यादा फसल वाली जमीन का किसी भी कीमत पर अधिग्रहण करने पर पाबंदी के प्रस्ताव के बारे में कहा है कि इससे गंगा के मैदानी इलाकों में बसे शहरों का विकास कभी नहीं हो सकेगा। इस क्षेत्र की सारी जमीन पर एक वर्ष में कई फसलें उगाई जाती हैं। ऐसे में यहां शहरों का विस्तार बेतरतीब तरीके से होगा। इसलिए प्रस्तावित विधेयक से यह प्रस्ताव पूरी तरह से हटाया जाए। अगर निजी क्षेत्र के बीच प्रतिस्पद्र्धा हो तो किसानों को कई गुना ज्यादा मुआवजा मिलेगा, जिससे उन्हें न तो अलग से पेंशन की जरूरत पड़ेगी और न ही रोजगार देने की। प्रस्तावित विधेयक के इन प्रावधानों को लागू किया गया तो उलटे मकानों की कीमतें कई गुना बढ़ जाएंगी। इससे मध्यम व नौकरीपेशा वर्ग के लिए मकान खरीदना मुश्किल हो जाएगा।


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