Friday, August 12, 2011

भू-अधिग्रहण में जनहित को परिभाषित करेगा केंद्र


नई दिल्ली भूमि अधिग्रहण विधेयक मसौदे में जनहित की परिभाषा पर उठ रहे सवालों के बीच ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को भी महसूस होने लगा है कि इसे पुन: परिभाषित करने की जरूरत है। रमेश उस समय भौंचक रह गए जब यूपी के टप्पल से आए किसानों के एक दल ने उनसे जनहित के मायने को स्पष्ट करने का आग्रह किया। उन्होंने भरोसा दिलाया कि इसके मद्देनजर जनहित की परिभाषा को और स्पष्ट किया जाएगा। रमेश ने कहा कि मसौदे से आपात उपबंध भी हटाए जाएंगे। यह बात उन्होंने तब कही, जब उत्तर प्रदेश के अमरोहा से आए किसानों ने राज्य सरकार की ताजा नीतियों के आपात उपबंधों का विस्तार से जिक्र किया। अमरोहा से आए किसानों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जहां किसान नेता बीएम सिंह कर रहे थे, वहीं अलीगढ़ के टप्पल के किसान कांग्रेस नेता विवेक बंसल के साथ आए थे। किसानों ने कहा कि जनहित के नाम पर राज्य सरकार किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर उसे बिल्डरों, पूंजीपतियों और व्यापारियों को सौंप रही है। किसानों की खेती वाली जमीनें सरकार के जनहित की भेंट चढ़ रही हैं। केंद्र को भी सौ साल बाद इस कानून को बदलने का होश आया है। किसानों के इस रुख पर ग्रामीण विकास मंत्री ने उनसे कहा कि इसका श्रेय भी किसानों को दिया जाना चाहिए। उन्होंने किसानों से कहा कि वे राज्य में राजनीतिक पर्यावरण को बदलने में कांग्रेस का साथ दें। नये कानून के बाद मॉल और टाउनशिप के लिए अधिग्रहीत जमीनों को जनहित में नहीं गिना जाएगा। मंत्री ने किसानों को आश्वस्त किया कि नये अधिग्रहण कानून का लाभ उन किसानों को भी मिलेगा, जो पिछले सालों से आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन इसके तरीकों पर बाद में विचार किया जाएगा।




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