Friday, August 12, 2011

यूपी में अधिग्रहीत भूमि न लौटाने वाला बिल पारित


उत्तर प्रदेश में अब कोई व्यक्ति राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहीत भूमि की वापसी के लिए कोई दावा नहीं कर पाएगा, भले ही वह भूमि कितने भी समय तक खाली पड़ी रहे। इस आशय का एक संशोधन विधेयक हंगामे और नारेबाजी के बीच विधानसभा से पारित हो गया। अब तक लागू कानून की धारा 17 में अनिवार्य भूमि अर्जन की व्यवस्था है और उसकी उपधारा (1) में यह भी प्रावधान था कि यदि अधिग्रहीत भूमि का पांच साल के भीतर घोषित प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं कर लिया जाता और भूमि खाली पड़ी रहती है तो उसका पूर्वस्वामी प्रतिपूर्ति के रूप में मिली धनराशि को 12 प्रतिशत ब्याज के साथ सरकार को लौटाकर अपनी भूमि वापस पाने का दावा कर सकता था, लेकिन गुरुवार को राज्य विधानसभा में पारित उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास संशोधन विधेयक 2011 के तहत अब अर्जित की गई भूमि के भू-स्वामी भविष्य में अपनी जमीन की वापसी के लिए कोई दावा नहीं कर सकेंगे। इस विवादास्पद विधेयक के साथ ही संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (संशोधन) विधेयक 2011, सोसायटी रजिस्ट्रीकरण उत्तर प्रदेश (संशोधन) विधेयक 2011 और उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत जिला पंचायत (संशोधन) विधेयक 2011 भी आनन-फानन में पारित कराए गए और विधानमंडल का सत्र तय समय से एक दिन पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। तय कार्यक्रम के हिसाब से सदन शुक्रवार तक चलना था। विपक्ष के एतराज पर संसदीय कार्य मंत्री व बसपा नेता लाल जी वर्मा ने सफाई दी कि सरकार सदन चलाना चाहती थी, पर विपक्ष के पास सरकार के अच्छे कामों को देखते हुए कोई मुद्दा ही नहीं है। वह सिर्फ हंगामे पर उतारू था। इसकी वजह से सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किए जाने का प्रस्ताव किया गया। विधानसभा में क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत संशोधन विधेयक भी पारित हुआ। इसमें किसी जिला अथवा क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की कम से कम एक साल की अवधि को बढ़ाकर दो साल कर दिया गया है यानी अब शपथ-ग्रहण की तिथि से दो साल तक उनके विरुद्ध कोई अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं हो सकेगा।




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