Wednesday, March 2, 2011

दो दशकों में कृषि भूमि 28 लाख हेक्टेयर घटी


देश में 40.22 करो ड़ श्रमिकों में से कुल 58.2 प्रतिशत कृषि क्षेत्र पर आश्रित
1988-89 से 2008-09 के दौरान 16.99 से बढ़कर 23.45 करोड़ टन हुआ खाद्यान्न उत्पादन इस अवधि के दौरान पैदावार में दर्ज की गई 38 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कृषि भूमि का गैर कृषि कायरे में उपयोग रोकने की जिम्मेदारी राज्यों की डीएसी की रिपोर्ट
नई दिल्ली (एजेंसी)। पिछले दो दशकों में भारत में कृषि भूमि में लगभग 28 लाख हेक्टेयर (करीब दो प्रतिशत) की कमी आई है। देश की आबादी के विशाल हिस्से की कृषि पर निर्भरता को देखते हुए यह अच्छा नहीं माना जा सकता। कृषि मंत्री शरद पवार द्वारा हाल में संसद पेश आंकड़ों के अनुसार वर्ष वर्ष 1988-89 में 18 करोड़ 51.42 लाख हेक्टेयर थी जो 2008-09 में घट कर 18 करोड़ 23.85 लाख हेक्टेयर रह गई। इस दौरान कृषि योग्य भूमि के रकबे में 27.6 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई। कृषि राज्यमंत्री अरुण यादव ने पिछले सप्ताह संसद को कि 2001 की जनगणना के अनुसार देश में 40.22 करोड़ श्रमिकों में 58.2 प्रतिशत कृषि क्षेत्र पर आश्रित हैं। पवार ने आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय (डीएसी) की रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि पिछले दो दशक से हर साल कृषि योग्य भूमि घट रही है। जमीन की कमी होने के बावजूद 1988-89 से 2008-09 के दौरान खद्यान्न उत्पादन में वाषिर्क 16.99 करोड़ वाषिर्क से बढ़ कर 23.45 करोड़ टन हो गया। यह उत्पादन स्तर में 38 प्रतिशत वृद्धि दर्शाता है। कृषि योग्य भूमि की गिरावट को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में उन्होंने कहा कि संविधान के सातवीं अनुसूची के अनुसार कृषि भूमि का विषय राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है। कृषि भूमि को गैर कृषि कायरे के लिए उपयोग में लाने से रोकने की जिम्मेदारी राज्यों की है। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति और राष्ट्रीय पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन नीति वर्ष 2007 में तैयार की जिसमें भी कृषि भूमि का गैर कृषि कायरे के लिए उपयोग को रोकने या कम करने की परिकल्पना की गई है।

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