Sunday, March 6, 2011

कृषि रसायन उद्योग की रफ्तार होगी तेज


भारतीय कृषि रसायन उद्योग वर्ष 2012 तक 7.5 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी के साथ 170 करोड़ डॉलर (करीब 7,650 करोड़ रुपये) तक पहुंच सकता है। कैमसन बायोटेक्नोलॉजी लिमिटेड के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक धीरेन्द्र कुमार ने यह उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि बढ़ती आबादी, खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने पर अधिक जोर, प्रति एकड़ उपज बढ़ाने के दबाव के साथ-साथ कृषि भूमि की सीमित उपलब्धता और पुष्पों की खेती एवं बागवानी में हुए विकास के कारण भविष्य में कृषि रसायनों का इस्तेमाल बढ़ने की उम्मीद है। बकौल कुमार कंपनियां किसानों को कृषि रसायनों के सही मात्रा में इस्तेमाल के बारे में प्रशिक्षित करने के अपने प्रयासों में तेजी ला रही हैं। बढ़ती जागरूकता के कारण भी इन रसायनों के इस्तेमाल में तेजी आएगी। मौजूदा समय में कीटनाशकों का इस्तेमाल न किए जाने के कारण हर साल करीब 17 अरब डॉलर की फसल बर्बाद होती है। उन्होंने बताया कि पिछले तीन साल में भारत का पुष्प उत्पादन उद्योग 50 प्रतिशत बढ़ा है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन ने वर्ष 2012 तक उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में बागवानी व पुष्प उत्पादन क्षेत्र को बड़ी मात्रा में रसायनों की जरूरत होगी। भारत का कृषि रसायनों का बाजार वर्ष 2009 के 1.22 अरब डॉलर से बढ़कर वर्ष 2011 में 1.36 अरब डॉलर का हो गया। कुमार के मुताबिक अमेरिका, जापान और चीन के बाद भारत दुनिया में कृषि रसायनों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। जैव उवर्रक और बायोसाइड्स रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का सबसे अच्छा विकल्प हैं। जैव उवर्रक कंपनियां रासायनिक उवर्रकों के स्थान पर प्राकृतिक बायोसाइड्स के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रही हैं। बायोपेस्टीसाइड्स वे कीटनाशक होते हैं, जिन्हें जानवरों या पौधों के बैक्टीरिया और कुछ निश्चित खनिजों जैसे प्राकृतिक सामग्रियों से तैयार किया जाता है। बायोसाइड्स काफी प्रभावी, पर्यावरण अनुकूल और गैर टॉक्सिक हैं। रासायनिक उवर्रकों के लंबे समय तक इस्तेमाल करने से जमीन की गुणवत्ता और उवर्रता प्रभावित होती है, लेकिन जैव उवर्रकों का ऐसा कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। जो किसान अपनी जमीन की गुणवत्ता के क्षरण का सामना कर रहे हंै, वे अब अपने पांरपरिक तौर-तरीके को बदलने के लिए बाध्य हो रहे हैं। कुमार ने कहा कि रासायनिक उवर्रकों के प्रभावों के बारे में जागरूकता के साथ-साथ भारत से फलों और सब्जियों के निर्यात में भारी बढ़ोतरी ने भी रासायनिक कीटनाशक व्यवसाय और इसके विकास को काफी प्रभावित किया है। भारत के कीटनाशकों का बाजार करीब आठ हजार करोड़ रुपये का है और यह पांच से सात फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। रासायनिक उवर्रकों के मामले में एशिया में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है और वैश्विक स्तर पर देश 12वें स्थान पर है। वैश्विक कृषि रसायन उद्योग 2003 के 9.3 प्रतिशत के संचयी वार्षिक विकास दर से बढ़कर वर्ष 2008 में 41.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया|

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