Monday, March 7, 2011

किसके लिए बीज विधेयक


गत वर्ष 9 नवंबर को कृषि मंत्री ने राज्यसभा में नया बीज विधेयक प्रस्तावित किया। इससे पहले 2004 में भी इस विधेयक को प्रस्तुत किया गया था किंतु विरोध के कारण इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिया गया था। स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के बाद मामूली परिवर्तन करते हुए इसे पुन: प्रस्तुत किया गया है। बजट सत्र में सरकार इसे पारित कराने का प्रयास करेगी। भारत के किसान समुदाय एवं किसान संगठनों में से किसी ने भी बीज का 1966 का कानून बदलने की मांग नहीं की थी। फिर यह नया कानून किसके आग्रह पर और किसके हितों के लिए लाया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने लालच के लिए टर्मिनेटर बीज बेचने प्रारंभ किए हैं। इन बीजों से उपजी फसल का दोबारा बीज के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए किसान हर फसल पर नया बीज खरीदने को विवश होते हैं। इस तरह बीज सार्वजनिक अधिकार से व्यक्तिगत अधिकार में तब्दील हो रहे हैं। बाजार में नकली एवं सबस्टैंडर्ड बीज भी बिक रहे हैं। नया प्रस्तावित विधेयक सर्वाधिक उदार नकली एवं घटियां बीज बेचने वालों के प्रति ही है। इसमें नकली एवं घटियां बीज बेचने वालों पर 25 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। झूठी सूचनाएं देकर बीज पंजीकृत कराने वालों के प्रति भी यह विधेयक इतना ही उदार है। उन पर पांच लाख रुपये तक जुर्माना और एक साल तक की सजा का प्रावधान है। बीज फेल होने पर किसानों के मुआवजे के बारे में भी विधेयक मुआवजा समिति बनाने की सिफारिश तो करता है, लेकिन किसानों को मुआवजा प्रदान करने का फार्मूला क्या होगा, इस पर मौन है। फसल फेल होने पर बीज की कीमत के बराबर मुआवजा एक मजाक से अधिक कुछ नहीं हो सकता। मुआवजा फसल की क्षति के बराबर दिया जाना चाहिए। बीजों के मूल्य के विषय में भी यह विधेयक मौन है। विदेशी कंपनियों द्वारा पेटेंटिड बीजों पर रायल्टी कम कराने के लिए भी विधेयक में कोई प्रावधान नहीं किए गए हैं। गत वर्ष मोनसेंटो कंपनी ने बीटी कपास के बीज पर आंध्र प्रदेश में प्रति एकड़ 18 सौ रुपये रायल्टी वसूलनी प्रारंभ कर दी थी। किसानों के आंदोलन एवं आंध्र प्रदेश सरकार के प्रयासों के बाद 750 रुपये प्रति एकड़ रायल्टी वसूली गई। फसल सीजन पर किसानों को अकसर इच्छित बीज समय पर नहीं मिल पाते। जिस कारण किसान वैकल्पिक एवं निम्न स्तरीय बीज बोने के लिए विवश होते हैं। फसल सीजन पर सर्वत्र आवश्यक बीज किसानों को उपलब्ध हों, यह किसानों की आवश्यकता है। लेकिन प्रस्तावित विधेयक में बीज वितरण के ढांचे को मजूबत करने का भी कोई प्रावधान नहीं है। भारत में कृषि राज्यों का विषय है। प्रस्तुत विधेयक में राज्यों को केवल सलाह देने की भूमिका तक सीमित कर दिया गया है। केंद्र में बनने वाली बीज समिति ही देश में बीजों का पंजीकरण करेगी। देश में अनेक कृषि जोन हैं। भिन्न-भिन्न जोनों में अलग-अलग प्रकार की फसलों की प्रधानता है। राज्य सरकारें इस कार्य को अधिक कुशलता से निर्वहन कर सकती हैं। न जाने क्यों केंद्र सरकार राज्य सरकारों के कार्य को अपने हाथ में लेना चाहती है। बीजों के पंजीकरण के प्रकार के बारे में भी विधेयक स्पष्ट नहीं है। यदि एक ही प्रकार का बीज अलग-अलग ब्रांड नाम से बिकता है, तो यह स्वागत योग्य है। लेकिन यदि एक प्रकार का बीज एक ही कंपनी बेच सकेगी तो यह पंजीकरण पेटेंटीकरण जैसा हो जाएगा। इससे एकाधिकार बढ़ेगा और बीजों के दाम भी। भारत की परंपरागत समृद्ध बीज संपदा के संरक्षण का मैकेनिज्म भी इस विधेयक में नहीं है। इसके अभाव में हमारा बीज हमारे ही हाथों से निकल कर विदेशी कंपनियों के हाथों में जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो भारतीय कृषि विदेशी कंपनियों के रहमोकरम पर हो जाएगी और भारत की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। यदि कंपनियां मौके पर बीज की आपूर्ति करने से मना कर दें और बीज की मनमानी कीमत वसूलें तब हम भारत की 60 प्रतिशत आबादी को कैसे न्याय दे पाएंगे। विदेशों से प्राप्त बीजों को भारतीय परिस्थितियों एवं अलग-अलग कृषि जोनों में परीक्षण के बाद ही पंजीकृत किया जाना चाहिए। प्रस्तुत विधेयक में विदेशों में किसी कंपनी को सर्टिफिकेशन का अधिकार देना संदेह पैदा करता है। भारत में 37.5 करोड़ एकड़ भूमि पर खेती होती है। एक-तिहाई कृषि योग्य भूमि सिचांई के अंतर्गत आती है जिस पर दो फसलें ली जाती हैं। इस प्रकार भारत में प्रति वर्ष 50 करोड़ एकड़ के लिए बीज चाहिए। यदि एक एकड़ के लिए एक हजार रुपये का बीज किसानों को खरीदना पड़े तब यह प्रति वर्ष 50 हजार करोड़ का व्यवसाय है। अभी तक कंपनियों की पहुंच 10 प्रतिशत कृषि तक ही है। हमारे संपूर्ण बीज बाजार तक ये कंपनियां पहंुचे शायद इसीलिए यह विधेयक लाया जा रहा है? भारत में बीज के व्यवसाय के रास्ते में चार कानून पहले से मौजूद हैं। क्या वर्तमान कानून उन चारों कानूनों को बाईपास करते हुए बीज कंपनियों को लाभ और किसानों को घाटा पहुंचाने के लिए लाया जा रहा है? (लेखक किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)



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