Thursday, April 28, 2011

दोषपूर्ण खरीद-भंडारण नीति


ऊंची विकास दर, अरबपतियों की बढ़ती संख्या और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में दुनिया भर में धाक जमाने जैसी उपलब्धियों वाला भारत भूख के मामले में अफ्रीकी उपसहारा देशों से भी गई-गुजरी स्थिति में है। गौरतलब है कि भुखमरी की यह समस्या खाद्यान्न की कमी के कारण नहीं, उसके महंगे होने के कारण है, जिससे वह गरीबों की पहुंच से दूर बना हुआ है। इसी का परिणाम है कि भरे हुए भंडारघरों और अनाज सड़ने की घटनाओं के बीच भुखमरी की फसल लहलहा रही है। इसी को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जिस देश में करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हों वहां अनाज का एक दाना भी बर्बाद नहीं जाना चाहिए। लेकिन इस फटकार से भी सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। इस समय केंद्रीय पूल में तय मानक (162 लाख टन) की तुलना में खाद्यान्न का स्टॉक दो गुना से भी अधिक (441.84 लाख टन) है। फिर चालू रबी सीजन में खाद्यान्न पैदावार 23.5 करोड़ टन से अधिक होने वाली है। इसमें अकेले गेहूं की हिस्सेदारी 8.42 करोड़ टन है, जो अब तक की सर्वाधिक है। इसे देखते हुए सरकार ने चालू खरीद सीजन में 2.62 करोड़ टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के पास भंडारण के लिए जितने गोदाम हैं वे पिछले सालों के गेहूं व चावल से भरे पड़े हैं और लाखों टन अनाज अभी भी खुले में बने अस्थायी गोदामों में पड़ा है। नियमों के मुताबिक तिरपाल से ढके अस्थायी गोदामों में रखा अनाज हर हाल में साल भर के भीतर खाली करा लिया जाना चाहिए। लेकिन महंगाई से भयाक्रांत सरकार इन्हें खाली कराने से पीछे हट गई। ऐसे में अनाज का फिर सड़ना लगभग तय है। सरकार हर साल करीब 14,000 खरीद केंद्रों से 5.5 करोड़ टन गेहूं और चावल की खरीद करती है। लेकिन देश के दर्जन भर राज्य ऐसे हैं जहां एफसीआइ खरीद नहीं कर पाती, जिससे किसानों को सस्ती दरों पर अनाज खुले बाजार में बेचना पड़ता है। उदाहरण के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसान 1000 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं बेचने को मजबूर हैं जबकि गेहूं का सरकारी खरीद मूल्य 1,120 रुपये प्रति क्विंटल है और प्रति क्विंटल की सरकारी खरीद पर 50 रुपये बोनस भी मिलता है। इसी को देखते हुए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने सरकार को सुझाव दिया है कि किसानों से खाद्यान्न की खरीद में एफसीआइ के साथ निजी क्षेत्र का भी सहयोग लिया जाना चाहिए। खरीद-भंडारण नीति को विकेंद्रित करने के उद्देश्य से भंडारण (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 2007 के तहत सरकार ने 25 अक्टूबर 2010 को भंडारण विकास एवं नियामक प्राधिकरण का गठन किया है। इसका उद्देश्य अनाज के खरीद-भंडारण क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना है। लेकिन खरीद-भंडारण को विकेंद्रित करने में सरकारी नीतियां ही बाधक हैं। उदाहरण के लिए इस साल गेहूं की सरकारी खरीद चालू होने से पहले ही भारतीय खाद्य निगम ने पंजाब और हरियाणा के गोदामों को खाली करने के लिए दूसरे राज्यों मे गेहूं व चावल का स्टॉक भेजना शुरू कर दिया। इसे लेकर उन राज्यों ने तीखा विरोध जताया जहां बिना जरूरत के अनाज की आपूर्ति शुरू कर दी गई। उच्चतम न्यायालय ने भी सरकार को सुझाव दिया कि अनाज की भंडारण व्यवस्था को विकेंद्रित किया जाए और हरेक जिले में और जरूरी होने पर तहसील या ब्लॉक स्तर पर भी गोदाम बनाए जाएं। भंडारण क्षमता में वृद्धि के लिए सरकार ने निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत दस साल की गारंटी स्कीम बनाई है। इसके तहत हर राज्य में एक नोडल एजेंसी बनाई गई है। तय योजना के मुताबिक अगले दो सालों में 150 लाख टन अनाज रखने के लिए नए गोदाम उपलब्ध हो जाएंगे जिससे एफसीआई की मौजूदा भंडारण क्षमता 308 लाख टन से बढ़कर 458 लाख टन हो जाएगी। लेकिन स्कीम की प्रगति इतनी धीमी है कि लक्ष्य प्राप्त होना कठिन लगता है। फिर राज्य सरकारों का असहयोग भी भंडारण क्षमता बढ़ाने में बाधक बना हुआ है। देखा जाए तो खाद्यान्न भंडारण के लिए जगह की व्यवस्था करना एक कठिन चुनौती है। इसका कारण है कि खाद्यान्न के उत्पादन और सरकारी खरीद में वृद्धि के बावजूद सरकार भंडारण क्षमता बढ़ाने के मुद्दे पर आंख बंद किए रही। उसकी नींद तभी टूटी जब स्थिति विस्फोटक हो गई। फिर सरकार की खरीद और भंडारण नीति बेहद केंद्रीकृत रही है। अभी तक अनाज उत्पादक क्षेत्रों में ही भंडारण सुविधा बनाने की नीति रही है, अब इसे बदलकर खपत केंद्रों को आधार बनाना होगा। इससे अनाज की अचानक ढुलाई और कीमतों में उतार-चढ़ाव की समस्या से मुक्ति मिलेगी। फिर अनाज के भंडारण को गेहूं, चावल के चक्र से मुक्ति दिलाकर विकेंद्रीकृत करना होगा। यह तभी संभव है जब पीडीएस में गेहूं, चावल के साथ-साथ दाल, खाद्य तेल, मोटे अनाजों को भी शामिल किया जाए। भंडारण सुविधा में बढ़ोतरी इसलिए भी जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन व वैश्विक तापवृद्धि के चलते खाद्यान्न उत्पादन में आकस्मिक परिवर्तन होने लगा है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).

No comments:

Post a Comment