Friday, April 29, 2011

यह है खेती की पाठशाला



मध्य प्रदेश में कृषि विकास विभाग की आत्मा परियोजना अंतर्गत संचालित कृषक खेत पाठशाला से जुड़कर उमरिया जिले के सेमरिया पंचायत के अमहा गांव के किसानों ने एक ऐसी पढ़ाई पढ़ी जिसने उन्हें आधुनिक तकनीक अपनाने और उन्नत पैदावार लेने वाला हुनरगर बना दिया। खेत-खलिहानों और किसानों के बीच रची-बसी एक ऐसी पाठशाला जो सिर्फ किताब का कोरा ज्ञान नहीं देती वरन आधुनिक कृषि तकनीक के आधार पर खेती को लाभकारी बनाने का हुनर सिखाती है। गांव अमहा इन दिनों कृषि क्षेत्र में प्रगति पर है। इस वर्ष यहां के किसानों ने प्रति हेक्टेयर 30 से 45 क्विंटल गेहूं की पैदावार हासिल की है। ज्यादातर असिंचित भूमि वाले इस गांव में पानी की समस्या से जूझते हुए ग्रामीणों ने न सिर्फ टूटे बांध का श्रमदान से जीर्णोद्धार किया बल्कि खेती में एक नया मुकाम हासिल किया है। अमहा के रामधनी सिंह, जुगंतीबाई, जगन्नाथ सिंह, प्रह्लाद, कंधई सिंह सहित सरपंच रामबाई यादव खेती में आ रहे इस बदलाव का श्रेय कृषक-खेत पाठशाला को दे रहे हैं।

आत्मा परियोजना की सहयोगी संस्था निवसीडद्वारा संचालित अमहा कृषक खेत पाठशाला के एचीवर फार्मर जगन्नाथ सिंह बताते हैं कि गत वर्ष जब यह कार्यक्रम हमारे गांव में आया तब मन में कई तरह की शंकाएं रहीं लेकिन आज जब हम अपने खेतों और उनमें लहलहाती फसलों को देखते हैं तो मन में एक नया आत्मविश्वास महसूस होता है। उन्होंने पाठशाला से जुड़े कृषि विशेषज्ञों की बातों को ध्यान में रखकर खेत की गहरी जुताई, लेवलिंग व मेड़ बंधान कराया तथा ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर का प्रयोग करते हुए मृदा-जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया। इसके साथ ही कृषि व उानिकी से जुड़ी अनुदान योजनाओं का लाभ लेते हुए वे आगे बढ़े तो धान व गेंहू फसल में बीज परिवर्तन, बीजोपचार व श्रीविधि अपनाकर दूसरों के लिए आज एक रोल मॉडल बन गए हैं। गांव के युवा फूलचंद यादव बताते है कि पाठशाला के जरिये खेत की तैयारी, बीजोपचार, कतारबद्ध बुआई, रोपड़ी विकास, सूक्ष्म जैविक तत्वों, संतुलित रासायनों का प्रयोग, सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण की लागत घटाने की तकनीक का उपयोग सिखाया जाता है। 25 सदस्यों वाली इस पाठशाला को खरीफ व रबी फसलों के मौसम फसल विविधीकरण की छह क्रांतिक अवस्थाओं के बारे में किसानों को बताया जाता है। अमहा कृषक खेत पाठशाला से जुड़े आदिवासी कृषक रामधनी सिंह ने कोलियरी से सेवा निवृत्त होने के बाद खेती को अपना मिशन बनाया और दिन-रात खेती में नए प्रयोग करते हुए पाठशाला में सीखी बातों केा साकार करने में जुट गए। रेलवे लाइन के ठीक किनारे स्थित रामधनी सिंह का प्रदर्शन फॉर्म देखने लायक है। यहां के कुएं में जिस तरह दो बोर कराकर पानी की व्यवस्था बनाई गई है वह रोचक है। भरी गर्मी में भी यहां का पानी नहीं सूखता। एक हेक्टेयर वाले फार्म के एक एकड़ में पपीता, दशहरी आम के साथ नासिक प्याज की उन्नत पैदावार और कतारबद्ध भिंडी, सब्जी व फलोत्पादन की विविधता प्रकट करती है। यहीं वर्मी कंपोस्ट की एक छोटी इकाई भी है जिसका जैविक खाद यहां की फसलों को पुष्ट कर रहा है। इस बार रामधनी सिंह ने खरीफ सीजन में धान की पूसा सुगंधा व आईआर 64 आधार बीज का विपुल उत्पादन किया तो परिवार की जुगंतीबाई ने एक एकड़ में श्रीविधि से गेंहू की एमपी 3173 किस्म की बुआई कराई। उनके इस बीज परिवर्तन से प्रेरित होकर समीप के किसानों ने भी नए प्रमाणित बीजों की बुवाई की। नतीजतन, पहले की तुलना में डेढ़ गुना फसल उत्पादन हुआ। रामधनी बताते हैं कि आत्मा परियोजना के अंतर्गत लगाए गए फसल प्रदर्शन तकनीक से जहां सिंचाई करने, उर्वरक देने, खरपतवार निकासी में लागत कम हुई वहीं एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल उत्पादन हुआ है जो कि पहले के 20-25 क्विंवटल से अधिक है। नई और वैज्ञानिक कृषि तकनीक अपनाने के फलस्वरूप आज रामधनी सिंह और उनके परिवार को एक हेक्टेयर की खेती से लगभग 2 लाख रुपए का मुनाफा हो रहा है। आज जब खेती महंगी पड़ती जा रही है, किसानों को आए दिन प्राकृतिक प्रकोप झेलना पड़ रहा है तो ऐसे में कृषक खेत पाठशाला की कम लागत तकनीक ने अमहा गांव के किसानों को खेती की एक नई राह दी है। एक ऐसी राह जिस पर चलकर खेती को लाभ का धंधा बनाने का सफर पूरा करना है।

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