Thursday, April 28, 2011

महिला किसानों ने दिखाई राह


 संकट के दौर में महिला किसानों के कई प्रेरणादायक उदाहरण सामने आ रहे हैं, जिनमें इस संकट से बाहर निकलने की उम्मीद भी नजर आती है। कई स्थानों पर यह देखा गया है कि यदि प्रोत्साहन और सहायता मिले तो सस्ती, टिकाऊ व पर्यावरण की रक्षा के अनुकूल खेती में महिला किसान विशेष तौर पर आगे आ सकती हैं। जालौन जिले की कोंच तहसील में समर्पण संस्था और लघु सीमांत किसान मोर्चे ने ऐसी ही तकनीक फैलाने का प्रयास किया है। डांग खजूरी गांव में एक-एक बूंद पानी को बचाने और उसका उपयोग खेतों को हरा-भरा करने का सराहनीय प्रयास देखा जा सकता है। यहां के कुंओं के पानी को बचाने का प्रयास गांववासियों ने अपने सीमित साधनों से किया है। यहां के छोटे स्तर के किसान जैविक खेती के लिए कंपोस्ट और वर्मीकंपोस्ट बनाने में आगे हैं। इसमें महिला किसानों की अग्रणी भूमिका है। वे अपने छोटे-छोटे खेतों और बगीचों में लगभग 35 तरह की फसलें उगा रही हैं। जैव विविधता और पर्यावरण रक्षा पर आधारित इस खेती को सरकार से बेहतर सहायता मिलनी चाहिए। गांववासियों ने बताया कि सरकार तीन लाख रुपये भी खर्च करे तो लगभग 24 पातालतोड़ कुंओं का बेहतर उपयोग हो सकता है। जुगराजपुर गांव की रंजना शर्मा जैविक खेती के प्रयोगों के लिए चर्चित रही हैं, उन्होंने बताया कि रेडियो, पुस्तकों व प्रशिक्षण शिविर से उन्होंने जैविक खेती की जानकारी प्राप्त कर पिता को प्रेरित किया कि 25 बीघा खेत में कम से कम पांच बीघा जमीन पर बिना रासायनिक खाद व कीटनाशक दवा के खेती करें। यह प्रयोग सफल रहा तो धीरे-धीरे रंजना ने अपने परिवार की पूरी जमीन पर जैविक खेती को सफल कर दिखाया।। समर्पण के निदेशक राधेकृष्ण ने कहा कि पहले हमें भी डर था कि जैविक खेती से बाद में कितने ही लाभ हों पर रासायनिक खाद छोड़ने से आरंभ में उत्पादन कम हो सकता है। पर महिला किसानों ने अपनी मेहनत व निष्ठा से उत्पादन भी बढ़ाया और पर्यावरण की भी रक्षा की। जैविक फसलों के लिए व्यापारी बेहतर कीमत दे रहे हैं। गोरखपुर जिले में भी गोरखपुर एनवायर्नमेंट एक्शन ग्रुप जीईएजी के प्रयासों से कई महिलाओं ने टिकाऊ व पर्यावरण के अनुकूल खेती को अपनाया है। गोरखपुर की ही प्रभावती दुधई जानी-मानी महिला किसान हैं। वह अपने दस सदस्यों के परिवार के साथ अपने खेतों के बीच बने आवास में रहती हैं। गांव में उनका एक पक्का घर भी है जहां उनके बेटे और बहू प्राय: रहते हैं पर प्रभावती को अपने डेढ़ एकड़ के खेत के पास रहना ही अच्छा लगता है। 55 वर्षीय प्रभावती ने लगभग 12 वर्ष पहले गोरखपुर एनवायर्नमेंट एक्शन गु्रप के संपर्क में आने के बाद जैविक खेती की राह अपनाई। उनकी खेती की एक विशेषता यह है कि वह मिश्रित खेती का बहुत अच्छा उपयोग करती हैं और विविध किस्म की फसलों की खेती करती हैं। प्रभावती के खेत में चावल, गेहूं, मक्का व महुवा आदि के अतिरिक्त विविध किस्म की सब्जियां उगाई जाती हैं जैसे तोरई, लौकी, लोबिया, सेम, बैंगन, अरबी, आलू, प्याज, टमाटर, शकरकंद, करेला, चौलाई, मूली, मिर्च, खीरा, भिंडी, फूलगोभी, गांठगोभी, गाजर, मटर, अदरक, लहसुन आदि। तिलहन में वे सरसों उगाती हैं। अधिया पर एक बीघा अतिरिक्त जमीन लेकर वह मूंगफली की खेती भी करती हैं। दलहन में वे मूंग, उड़द उगाती हैं। मसालों में वह हल्दी, लौंग, धनिया, सौंफ उगाती हैं। प्रभावती के खेत व बगीचे में अनेक फलदार पेड़ हैं जैसे अमरूद, आम, केला, कटहल, बेल, पपीता, शहतूत, शहजन, नींबू, चकोतरा, महुआ, अनार आदि। इसके अतिरिक्त बांस भी उगाया जाता है, इनमें नीम व सागौन के भी पेड़ हैं। हानिकारक कीड़ों को दूर भगाने के लिए नीम, धतूरा, मदार, कनैल, गेंदे आदि के जिन पौधों की जरूरत होती है उन्हें भी प्रभावती ने अपने खेत में ही उगा लिया है ताकि जरूरत होने पर इसके लिए भटकना न पड़े। प्रभावती के खेत में तीन भैंस व चार बकरियां भी हैं। पहले वह मुर्गियां भी पालती थीं। अपने खेत में प्रभावती कंपोस्ट व जैविक खाद बनाती हैं। इसके अलावा मटका खाद, केंचुओं की खाद वर्मीकंपोस्ट आदि भी वह बनाती हैं। खेतों में वह वर्षा का पानी रोकने के लिए अच्छी तरह मेड़बंदी करती हैं। इस तरह पौष्टिक गुणों से भरपूर वर्ष भर जैविक अनाज व सब्जी प्रभावती के दस सदस्य के परिवार को मिल जाता है। दलहन व तिलहन की भी जरूरत मुख्य रूप से अपने खेत से ही पूरी हो जाती है। अधिकांश मसाले व कई तरह की औषधि भी खेत से ही मिल जाती हैं। जलावन व अन्य तरह की लकड़ी, बांस भी खेत से मिल जाती है। खाद व कीड़ों की दवा भी खेत पर ही तैयार हो जाते हैं। साथ ही वर्ष भर बिक्री के लिए कुछ न कुछ मिलता रहता है। जुताई-बुवाई के लिए ट्रैक्टर या बैल किराए पर लेने व बोरिंग के लिए डीजल का खर्च प्रभावती को अभी करना पड़ता है। नादेप खाद का टैंक बनाते समय प्रभावती को सीमेंट उपलब्ध नहीं था तो उन्होंने बांस व टहनियों से काम चला लिया। प्रभावती का खेत बलुवा मिट्टी का है जो उपजाऊ नहीं मानी जाती है। पर जैविक खाद के उपयोग से प्रभावती ने इस बलुवा मिट्टी के खेत को ही उपजाऊ बना दिया है। इस तरह प्रभावती ने स्वयं प्रेरणादायक कृषि तो की ही साथ में कई स्थानों पर जैविक खेती का प्रशिक्षण भी दिया है। इसी तरह गोरखपुर की रामरति रासायनिक खाद व कीटनाशक दवा का उपयोग किए बिना इतनी बढि़या खेती करती हैं कि उन्हें दूर-दूर तक जैविक खेती के आदर्श किसान की पहचान मिली है। मात्र एक एकड़ के अपने खेत पर विविधता भरी अनेक फसलों को उगाते हुए रामरति अपने पति रामबहल व परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग से न केवल पूरे परिवार के लिए पौष्टिक अनाज, सब्जी, फल, दलहन, तिलहन आदि का पर्याप्त उत्पादन कर लेती हैं अपितु औसतन प्रतिमाह 3000 रुपये की नकद आय भी विभिन्न फसलों से प्राप्त कर लेती हैं। पिछले वर्ष की बिक्री को याद करते हुए रामरति ने बताया कि 5,000 रुपये के तो केले ही बेच दिए व गेंहू तथा चावल भी कुल 10,000 रुपये का बेचा। इसके अतिरिक्त आलू व विभिन्न सब्जियों की अच्छी बिक्री हुई। रामरति अपने खेत पर ही कंपोस्ट और वर्मीकंपोस्ट खाद तैयार करती हैं। नीम, गोमूत्र आदि से कीड़ों से रक्षा की दवा भी बनाती हैं। कभी विशेषकर धान की रोपाई में परिवार से बाहर के मजदूर की जरूरत पड़ती भी है तो इसके बदले में वह भी मजदूरी कर लेते हैं। इससे नकद खर्च बच जाता है। इस तरह खर्च को न्यूनतम रखते हुए रामरति ने खर्च और उत्पादन में 1:13 का अनुपात प्राप्त किया यानी एक रुपये के खर्च पर 13 रुपये का उत्पादन प्राप्त किया। लगभग दस वर्ष पहले जीईएजी के कार्यकर्ताओं का संदेश सुनने के बाद रामरति ने जैविक खेती की यह राह पकड़ने का निर्णय लिया था। रासायनिक खाद और कीटनाशक दवा की खेती को धीरे-धीरे लगभग तीन वर्ष के समय में पूरी तरह छोड़ दिया। तब से वह जैविक खेती के लिए बहुत निष्ठा से मेहनत से करती हंै और इससे संतुष्ट हैं। वह बताती हैं कि इससे उनकी आय भी बढ़ी है और उत्पादन भी। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).

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