Monday, December 20, 2010

चावल की 321 किस्मों के संरक्षण की पहल

धान का कटोरा कहे जाने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश में विलुप्त होती जा रही चावल की 321 किस्मों पर अब न तो गैरों की नजर लग पायेगी और न इन किस्मों के विलुप्त होने का ही खतरा रहेगा। बासमती चावल के पेटेंट के लिए पाकिस्तान के दावे के बाद विदेशी नजरों से प्रदेश के पूर्वी जिलों के प्राचीनतम चावल की किस्मों को बचाने को उनके बीज (धान) को उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद ने दिल्ली के राष्ट्रीय पादप संसाधन ब्यूरो व केंद्रीय चावल अनुसंधान केंद्र कटक (उड़ीसा)में संरक्षित करा दिया है। वहां से विदेशी केंद्रों के वैज्ञानिकों को इनकी सूचना भेजी जायेगी जिससे इनके पेटेंट पर कोई और न अपना हक जमा सके। कृषि अनुसंधान परिषद का तो यहां तक दावा है कि समय की दौड़ में धान की नव विकसित प्रजातियों से पिछड़ गयी इन 321 किस्मों में मामूली सा सुधार करके पूर्वी प्रदेश की तकदीर बदली जा सकती है। चावल की प्राचीनतम किस्मों में लालमती काला नमक, शक्कर चीनी, आदम चीनी, दूबराज, जीरा बत्तीसी, जुही बंगाल, कनक जीरा, श्याम जीरा, चीनी कपूर, गुलाब खस, गोपाल भोग, लाल परी, बहार रानी, बंगाल दीवाना, गोविंद भोग, कस्तूरी, मोती श्री, मोती बादाम, राजभोग और सुगंधा प्रमुख हैं। जायके व खुशबू के कारण गुजरे जमाने में ये किस्में प्रदेश के पूर्वी अंचल की पहचान और किसानों की शान थीं, लेकिन कम अवधि में अधिक उत्पादन के लिए विकसित प्रजातियों के मोह में किसानों ने पुरानी किस्मों से नाता तोड़ लिया और अब यह विलुप्त होती जा रही हैं। कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक आरएस राठौर बताते हैं कि यजुर्वेद में 1500 ईसा पूर्व हिमालय की तलहटी में चावल की उत्पत्ति का प्रसंग है। इसी आधार पर चावल की उत्पत्ति का आंकलन किया गया है। बहराइच, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, श्रावस्ती, बलरामपुर, देवरिया व महाराजगंज की मिट्टी में उपजे चावल की बात ही निराली है। चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर तथा गाजीपुर के आदम चीनी चावल की खीर का जायका दूसरे चावल में नहीं मिल सकता है। बाराबंकी, सुल्तानपुर, गोंडा,बहराइच, श्रावस्ती व बलरामपुर के बहुत थोड़े से क्षेत्र में होने वाले लालमती चावल की तो बात ही कुछ और है।

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