Thursday, December 23, 2010

राग ने जगा दिए फसलों के भाग

भारत के प्राचीन धर्मग्रंथों में बताया गया है कि जब श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते थे तो उसकी मीठी तानकर गोपियां अपनी सुध-बुध खो बैठती थीं और गाएं अधिक दूध देती थीं। इसीतरह संगीत सम्राट तानसेन राग मेघ मल्हार गाकर वर्षा करा देते थे और राग दीपक से कमल खिला देते थे। इसी प्राचीन अवधारणा की परख करने में कुछ भारतीय कृषि वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। क्या स्वर लहरियों की खुराक से पेड़-पौधों की बढ़त को बेहतर बनाया जा सकता है। यह वह सवाल है, जो कई दशकों से वैज्ञानिकों के मन को मथता रहा है और इसके आधार पर मध्यप्रदेश का वन विभाग इन दिनों एक सुरीले प्रयोग को सींच रहा है। इस प्रयोग के तहत कुछ वृक्ष प्रजातियों को सूर्योदय से एक घंटा पहले से सूर्यास्त तक मशहूर सितार वादक रविशंकर की राग भैरवी में निबद्ध रचना सुनाई जा रही है। वन विभाग के अधिकारियों का दावा है कि सितार की स्वर लहरियों से आंवला और सीताफल (शरीफा) सरीखी फल प्रजातियों के बीजों में अंकुर फूटने की दर में नौ प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया है। विभाग के इंदौर स्थित अनुसंधान और विस्तार केंद्र के मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) पंकज श्रीवास्तव ने बताया, इस प्रयोग के जरिए हम पता लगाना चाहते हैं कि पौधों की बढ़त पर संगीत का क्या असर होता है। हम यह भी जानना चाहते हैं कि क्या संगीत के प्रति पौधों की संवेदनशीलता के वाणिज्यिक उपयोग की संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। महीने भर पहले शुरू हुए इस प्रयोग से जुड़ी वन विभाग की रेंज अफसर रेखा काले बताती हैं कि विभागीय नर्सरी में अलग-अलग जगहों पर कुल चार क्यारियां तैयार की गईं। इनमें आंवला और सीताफल और कुछ दूसरी प्रजातियों के बीज समान मात्रा में डाले गए। रेखा ने बताया कि इन क्यारियों को एक जैसा खाद-पानी दिया गया। मगर इन्हें सितार की स्वर लहरियों की खुराक अलग-अलग ढंग से दी गई। एक क्यारी को इन स्वर लहरियों से पूरी तरह दूर रखा गया, जबकि तीन अन्य क्यारियों को अलग-अलग वक्त पर सितार का संगीत सुनाया गया। वन विभाग की रेंज अफसर ने कहा, हमने पाया कि उस क्यारी में आंवला और सीताफल के बीजों का अंकुरण अपेक्षाकृत तेज गति से हुआ, जिसे सूर्योदय से सूर्यास्त तक सितार की स्वर लहरियां सुनाई गई थीं। अंकुरण की यह दर उस क्यारी के मुकाबले नौ प्रतिशत अधिक थी, जिसे ए स्वर लहरियां बिल्कुल नहीं सुनाई गई थीं। भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय की व्याख्याता श्रीपर्णा सक्सेना इस प्रयोग में वन विभाग की मदद कर रही हैं। उन्होंने कहा, संगीत के पेड़-पौधों पर प्रभाव के बारे में दुनिया भर में कई अनुसंधान किए गए हैं। हमें अपने प्रयोग की शुरूआत में अंकुरण को लेकर बेहद सकारात्मक रुझान मिले हैं। लेकिन इसका असली निष्कर्ष तीन से चार महीने के बाद निकल सकता है, जब इस प्रयोग का पहला चरण समाप्त हो जाएगा।

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