Thursday, February 3, 2011

झारखंड में ओबीसी परिवारों के खेतों से भी भेदभाव


झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के हजारों किसान व्यवस्था के भेदभाव का खामियाजा भुगत रहे हैं। एक ओर एससी किसानों को चिन्हित कर गांव-गांव में कुएं खोदे जा रहे है तो दूसरी ओर गरीब और निहायत जरुरतमंद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) परिवार के खेत अब भी प्यासे है। भेदभाव से कुपित ओबीसी परिवारों ने अपना भाग्य स्वयं लिखने की ठानी है। गालूडीह क्षेत्र के बांधडीह गांव की महिलाओं ने खेतों की प्यास बुझाने के लिए हाथ में फावड़ा उठा लिया है। सरकारी नीतियों को चुनौती देने के साथ ही उन्होंने खेतों तक पानी पहुंचाने की कसम उठाई है। गालूडीह क्षेत्र के बांधडीह गांव की महिलाओं ने ओबीसी वर्ग के जरूरतमंद किसान अपने खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए स्वयं पूरे परिवार के साथ कुंआ खोदने में जुटे हुए है। पिछले 10 दिन से खेत तक पानी पहुंचाने के लिए कुंआ खोदने में जुटी गांव की नमिता महतो, सुशीला महतो, ज्योत्सना महतो और सरस्वती महतो प्रतिदिन बच्चों की शिक्षा व दूसरे काम छोड़ अहले सुबह से ही फावड़ा लेकर निकल पड़ती है। दोपहर 11 बजे तक वे कुएं की खुदाई में जुटी रहती है। इसके बाद इन महिलाओं को ध्यान घर के दूसरे कामों की ओर जाता है। इन महिलाओं की शिकायत सरकार से है तो उनकी नीतियों को भी वे जिम्मेदारी ठहराती है। नमिता महतो ने कहा, किससे शिकवा करें और किससे शिकायत। सरकार एससी को चिन्हित कर गांव-गांव कुएं खुदवा रही है, परंतु ओबीसी को सरकार की ओर से कोई लाभ नहीं दिया जा रहा। व्यथित महिलाओं का कहना है कि वे सिर्फ जात के बड़े है। परंतु आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि अपने खेतों की सिंचाई के लिए डीप बोरिंग आदि की व्यवस्था कर सके। मजदूर किसानों ने खेत तक पानी पहुंचाने के लिए परिवार के साथ स्वयं कुंआ खोदने की जिम्मेदारी संभाली है। ताकि मौसम के अनुरूप फसल को बचाया जा सके। नमिता ने बताया कि खेती छोड़ उसके परिवार के पास जीवनयापन को और कोई साधन नही है। ओबीसी प परिवारों का गुस्सा नवनिर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों से भी कम नहीं है। इनका आरोप है कि हर योजना पर नारियल फोड़ शिलान्यास करने वाले इन जनप्रतिनिधियों का ध्यान भी इस ओर नहीं जा रहा। एक ओर खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए सरकारी प्रयास किये जा रहे है तो दूसरी ओर चंद मीटर दूर पड़ोसियों के खेत बूंद-बूंद पानी को तरस रहे है।


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