Wednesday, February 9, 2011

सबको मुहैया कराना ही होगा भरपेट भोजन


सौ फीसद टंच है यह बात कि इतिहास खुद को दोहराता है। जिस प्रकार हम एक और खाद्य संकट के कगार पर आ पहुंचे हैं, उससे यह बात फिर साबित होने जा रही है। वर्ष 2010 के आखिर में एफएओ का जो खाद्यान्न मूल्य सूचकांक जारी हुआ है, वह अपने सर्वोच्च स्तर पर है। रूस में सूखा, इससे निबटने के लिए वहां की सरकार द्वारा लगायी गई पाबंदी, अमेरिका, यूरोप तथा उनके बाद ऑस्ट्रेलिया व अज्रेंटिना में फसली उपज गिरने जैसे तमाम कारणों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पादों के दामों में उछाल का सिलसिला बना दिया है। बेशक, मौजूदा हालात वर्ष 2007-08 जैसे नहीं हैं तो भी मौसम में हालिया बदलावों के चलते आगामी सीजन में कृषि उपज में खासी कमी आ सकती है। कीमतों में उछाल का ज्यादा असर चीनी और खाद्य तेलों पर है; खाद्यान्न पर नहीं जो विश्व में कैलॉरी खपत के 46ù हिस्सा मुहैया कराते हैं। वर्ष 2007-08 में विश्व खाद्यान्न उत्पादन 428 मिलियन टन था। अब यह 525 मिलियन टन के करीब है। अलबत्ता, बढ़ती मांग के चलते यह बढ़ोतरी बेमानी हो चली है।
सूचनाओं की अनदेखी
कह सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कृषि सम्बंधी तौर-तरीकों में असंतुलन का कारण बनने वाली अड़चनों से पार नहीं पाया गया तो आने वाले वर्षो में ऊंची कीमतों और उनमें उतार- चढ़ाव से हम बच नहीं पाएंगे। हमें हालात को जान-समझ कर संकट से उबरना होगा। संकट का पता तो 1996 और 2002 में हुए एफएओ के विश्व खाद्य सम्मेलनों में ही चल गया था। जब विश्व के शीर्ष नेताओं की जानकारी में यह तथ्य आया कि लक्ष्य पूरे नहीं हो पा रहे और वे अपने संकल्पों व वादों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। यदि मौजूदा रुझान जारी रहे तो विश्व के कर्ताधर्ताअों का यह मंसूबा वर्ष 2150 में कहीं जाकर पूरा हो पाएगा कि इस धरा पर भूखे पेट सोने वालों की संख्या को 2015 तक घटाकर हर हाल में आधा कर लिया जाए। 1996 के बाद भी रीत-नीति में बदलाव नहीं हुआ है। हालांकि एफएओ का ग्लोबल इन्फाम्रेशन एंड अर्ली वार्निग सिस्टमआसन्न संकट के बारे में लगातार चेताता रहा है। इस आशय की खबरें मीडिया में भी लगातार आई। इसके बावजूद करोड़ों लोग भूख की मार झेल रहे हैं। इसलिए हममें से हरेक को तेजी से बढ़ रही जनसंख्या को समुचित भोजन मुहैया कराने का लक्ष्य ध्यान में रखना होगा। इसके लिए आगामी 40 वर्षो के दौरान विश्व भर में कृषि उत्पादन 70ù और विकासशील देशों में तो शत-प्रतिशत बढ़ाना होगा।
बढ़ाना होगा कृषि पर व्यय
सवाल है कि ऐसा कैसे सम्भव होगा ? पहला मुद्दा तो निवेश का है। ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंस (ओडीए) में कृषि का हिस्सा 1980 में 19ù था जो 2006 में गिरकर रह गया। अभी यह के आसपास है। यह प्रतिवर्ष 44 बिलियन डॉलर के करीब होना चाहिए या उतने स्तर पर तो होना ही चाहिए जिसके बल पर गत सदी के सातवें दशक में एशिया और लातीनी अमेरिका में भुखमरी को परे धकेल दिया गया था। कम आय वाले खाद्यान्न विपन्न देशों में कृषि पर बजटीय व्यय ही है जबकि इसे कम से कम 10ù तो होना ही चाहिए। इस क्षेत्र में 140 बिलियन डालर प्रति वर्ष का मौजूदा घरेलू व विदेशी निजी निवेश बढ़ाकर 200 बिलियन डालर किया जाना चाहिए। विश्व में 1500 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष के सैन्य व्यय के बरअक्स कृषि पर व्यय का कुछ तो तारतम्य होना ही चाहिए। फिर, कृषि उत्पादों या जिंसों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मुद्दे पर भी गौर किया जाना चाहिए जो अभी न तो निष्पक्ष है और न ही तर्कसंगत। ओईसीडी देश अपनी कृषि को संरक्षण देने की गरज से हर साल 365 बिलियन डॉलर खर्च करते हैं। साथ ही अनाज से बनने वाले जैव ईधन को प्रोत्साहन देने के लिए राज सहायता व शुल्क संरक्षण देते हैं। तमाम गैर शुल्कीय अवरोध हैं जिनसे अनेक देशों, खासकर विकासशील देशों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सट्टेबाजी भी एक बड़ा मुद्दा है। कृषि जिंसों के वायदा कारोबार के उदार तौर-तरीकों के चलते सट्टेबाजी को बढ़ावा मिलता है। इसका परिणाम आर्थिक व वित्तीय संकट के रूप में सामने आता है। उत्तर प्रदे श पं जाब आं ध्र प्रदे श
व्यापार और बाजार में तालमेल की जरूरत
इसलिए विश्व में भूख व खाद्य असुरक्षा की समस्या के निराकरण के लिए निवेश, अंतरराष्ट्रीय कृषि व्यापार तथा वित्तीय बाजारों सम्बंधी फैसलों में कारगर तालमेल होना चाहिए। मौसम की अनिश्चितता के चलते बाढ़ व सूखे को देखते हुए लघु जल कार्य योजनाओं, स्थानीय जल संग्रहण सुविधाओं, ग्रामीण सड़कों के साथ ही मत्स्य आखेटन क्षेत्र, कट्टी घर (स्लॉटर हाउस) आदि के लिए वित्त पोषण में हमें सक्षम होना होगा। तभी उत्पादन और उत्पादकता में समुचित वृद्धि सम्भव होगी। किसानों की प्रतिस्पर्धा में टिके रहने की क्षमता बढ़ेगी। और इससे न केवल उपभोक्ता कीमतें कम होंगी बल्कि ग्रामीणों की आमदनी में भी इजाफा होगा जो विश्व के कुल गरीबों का 70ù हिस्सा हैं। विश्व व्यापार संगठन की लम्बे समय से जारी र्चचा-वार्ता बैठकों पर आम सहमति बना लेना हमारे हित में होगा। इससे बाजार में जो विसंगतियां बनी हुई हैं तथा मांग-आपूर्ति को डगमगाने वाले जो प्रतिबंधात्मक अवरोध या तरीके हैं, उनसे निजात मिलेगी। यह बात हमें समझ लेनी होगी कि पारदर्शिता और नियमन के नये तरीके अपनाये जाना जरूरी है। तभी कृषि जिंसों के वायदा कारोबार में सट्टेबाजी से निबटा जा सकता है। विश्व स्तर पर इन नीतियों या संकल्पों को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक है कि विकसित देश अपने वादों, खासकर ग्लेनइगल्स और लाएक्विला में जी-8 सम्मेलनों और पिट्सबर्ग में जी-20 सम्मेलन में किये गये वादों और संकल्पों को पूरा करें। दूसरी तरफ गरीब देशों को भी कृषि क्षेत्र का अपने राष्ट्रीय बजट में हिस्सा बढ़ाना होगा। निजी विदेशी निवेश को भी एक शर्त के रूप में अपनाया जाना जरूरी है जिससे एक अंतरराष्ट्रीय आचार संहिता सुनिश्चित हो सकेगी जो विभिन्न पक्षों के बीच लाभकर भागीदारी की राह प्रशस्त करेगी। निस्संदेह संकट प्रबंधन अनिवार्य अच्छाई है लेकिन एहतियात इससे कहीं बेहतर है। दूरगामी आधारभूत फैसलों तथा उन्हें लागू करने की जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति व वित्तीय संसाधनों के अभाव में खाद्य असुरक्षा की स्थिति बनी रह सकती है और इसका सबसे बुरा असर सर्वाधिक गरीब आबादी को झेलते रहना होगा। ऐसा होने पर देशों में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी और विश्व में शांति और सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय बैठकों में व्यक्त किये गये उद्गारों और वादों को जिम्मेदारी के साथ मूर्त रूप नहीं दिया गया तो कुंठा और विद्रोह की भावना पनपेगी। समय आ चुका है, उन नीतियों को अपनाने और क्रियान्वित करने का जिनसे दुनिया के तमाम विकसित और विकासशील देशों के सभी किसानों को बाजार में विसंगतियां पैदा करने वाले तरीकों के जरिये अच्छी आय अर्जित करके बेहतरीन मुकाम हासिल करने का मौका मिल सके। तमाम पुरुषों, महिलाओं, युवाओं को सम्मान के साथ अपने उपक्रम व प्रयासों को आगे बढ़ाने का अवसर मुहैया कराना ही होगा ताकि हम अपनी दुनिया की समूची आबादी, जो 2050 में मौजूदा 6.9 बिलियन से बढ़कर 9.1 बिलियन हो जानी है, के लिए भरपेट भोजन जुटा सकें।

5 comments:

  1. विचारणीय लेख|धन्यवाद|

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  2. जानकारीपरक लेख के लिये आभार.

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
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  3. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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