Monday, February 14, 2011

अधिग्रहण केभय में मिट्टी बेच रहे किसान


इसे भूमि अधिग्रहण का डर कहें या दोहरी कमाई का लालच, कुरुक्षेत्र के किसान धरती की छाती चीर कर धड़ल्ले से मिट्टी बेच रहे हैं। शहर के आसपास और राजमार्ग के किनारे बसे गांवों में तीन से चार फुट गहराई तक खनन किए जाने से खेत जैसे तालाब बन गए हैं। किसानों की सोच है कि मिट्टी खनन से उनकी जमीन अधिग्रहण से बच जाएगी और यदि ऐसा नहीं भी हुआ तो अच्छी खासी कमाई तो हो रही है। अधिग्रहण के लिए तय दर से मुआवजा तो एकसमान ही मिलना है। यानि आम के आम व गुठली के दाम। पिछले कुछ सालों से शहरों के आसपास कृषि भूमि का अधिग्रहण अधिक हुआ है। सरकार कीमती जमीन अधिग्रहण कर निजी हाथों में बेच रही है। इससे किसानों को कम मुनाफा हुआ, जबकि कालोनाइजर करोड़ों में खेल रहे हैं। जिस तेजी से भूमि अधिग्रहण का हो रहा है, उससे डरे शहर के आसपास के गांवों के लोगों ने कृषि भूमि से मिट्टी का खनन कर उसे बेचना शुरू कर दिया है। किसानों को खेत से प्रति एकड़ एक फीट मिट्टी के खनन की कीमत सवा लाख रुपये तक मिल रही है। किसान खेतों से 4-4 फुट मिट्टी उठवा रहे हैं। इस तरह किसानों के संग मिट्टी का कारोबार करने वालों की भी पौबारह हो रही है। शहरों में कंक्रीट के जंगल तेज गति से बढ़ रहे हैं, इस कारण मिट्टी मुंहमांगे भाव पर बिक रही है। मिट्टी का कारोबार करने वाले ईश्वर का कहना है कि शहर में एक ट्राली मिट्टी छह सौ रुपये में बिकती है। दयालपुर समेत कई गांवों मिट्टी का खनन का काम धड़ल्ले से जारी है। इससे चार-पांच लाख रुपये प्रति एकड़ मिल रहे हैं। किसान रमेश का कहना है कि जमीन के गहरी होने के कारण अधिग्रहण की संभावना कम हो जाती है। यदि फिर भी अधिग्रहण होती है तो उन्हें तो गहराई वाली जमीन के रुपये उतरने ही मिलेंगे, जितने बिना मिट्टी उठाई गई जमीन के मिलते हैं। किसानों का कहना है कि मिट्टी उठाने के बाद भी खेती हो जाती है, हालांकि उत्पादन इतना नहीं होता। कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र टामक के अनुसार, कृषि भूमि खनन को बहुत ज्यादा खतरनाक है। उन्होंने कहा कि मिट्टी उठने पर जमीन की उवर्रता शक्ति न के बराबर रह जाती है।


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