Sunday, February 20, 2011

संगीत के सुरों को सुन पेड़-पौधे हो रहे निहाल


यह वृंदावन नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं! वृंदावन में श्रीकृष्ण की बांसुरी पर पेड़-पौधे, जीव जंतु सभी झूमते थे। यहां श्रीकृष्ण तो नहीं, लेकिन संगीत की सुर लहरियों पर पेड़-पौधे झूम के फल-फूल रहे हैं। संगीत की तान पेड़-पौधों के लिए अद्भुत टॉनिक का काम कर रही है। वातावरण पर संगीत का असर देखना है तो आइए देहरादून के नजदीक थान गांव की पहाड़ी पर। चौधरी इकबाल सिंह ने व्यावहारिक प्रयोग से इस धारणा को विश्वास में तब्दील कर दिया कि पेड़-पौधों पर भी संगीत का असर पड़ता है। राजधानी से 22 किमी दूर थान गांव की पहाड़ी पर चौधरी इकबाल सिंह ने वृंदावन बसाया है। जहां संगीत की सुर-लहरियों पर मस्त झूमते उनके बागीचे के यौवन के आगे दूसरे बाग फीके नजर आ रहे हैं। सेब, अमरूद, संतरा, कीनू, नाशपाती जैसे 4500 पौधों के बाग से चार में इकबाल तीन फसलें ले चुके हैं। इसके उलट चार साल पहले दूसरे किसानों ने जो बाग लगाए थे, वे अभी फल आने का इंतजार ही कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर से 1968 में आकर देहरादून बसे इकबाल ने चार साल पहले थानगांव में 32 बीघा भूमि खरीदी और उस पर अपना पेड़ पौधों का वृंदावन बसाया। स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई और फिर ठेकेदारी के बाद बागवानी में उतरे इकबाल सिंह का संगीत प्रेम उनकी असली ताकत बन गया। बकौल सिंह, मैं सोचता था कि जब संगीत पर मनुष्य झूम उठता है तो पौधे भी जरूर झूमते होंगे। दो साल पहले इसके लिए म्यूजिक सिस्टम लगाया और पुराने गीत बजाने शुरू किए। तीन-चार माह बाद इसका असर भी दिखने लगा। अब पार्क में जगह-जगह 14 स्पीकरों के जरिए पेड़-पौधों को संगीत सुनाया जाता है।


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