Thursday, February 17, 2011

बढ़े दूसरी हरित क्रांति की रफ्तार


दूसरी हरित क्रांति की घोषणा कर केंद्र सरकार ने कृषि पैदावार बढ़ाने का प्रयास तो किया है, लेकिन अब उसकी रफ्तार को तेज करने की आवश्यकता है। ऊंची विकास दर प्राप्त करने और खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए कृषि पैदावार में वृद्धि जरूरी है। आगामी आम बजट में कृषि सुधार के कारगर उपायों को लागू करना वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के लिए गंभीर चुनौती होगी। खेती में सुधार बीते सालों में कृषि सुधार के कुछ उपाय तो किए गए, लेकिन आधे अधूरे मन से, जिसका कोई खास असर नहीं हुआ। नतीजा, खेती घाटे का कारोबार बनी रही। मूलभूत जरूरतों और संसाधनों की कमी से कृषि क्षेत्र में सुधार की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है। कृषि विकास की दर 0.4 फीसदी से बढ़कर चालू सीजन में 5.4 फीसदी तक पहुंच गई है। सरकार इसके लिए अपनी पीठ ठोंक रही है, लेकिन इस दर को बनाए रखना और किसानों की मुश्किलों को घटाना खासा चुनौती भरा है। पिछले बजट में पैदावार बढ़ाने के लिए पूर्वी राज्यों में दूसरी हरित क्रांति की घोषणा की गई थी। आगामी बजट में इस अभियान को और आगे बढ़ाया जा सकता है। आएंगे नए और लुभावने प्रावधान कृषि विकास की मौजूदा दर से सरकार भले ही गदगद हो, लेकिन किसानों के लिए मुश्किलें बनी हुई हैं। इसीलिए माना जा रहा है कि वित्त मंत्री कृषि क्षेत्र में सुधार के कुछ नए और आकर्षक प्रावधान इस बार कर सकते हैं। घाटे में फंसी खेती को मुनाफे का कारोबार बनाने के कई प्रयास किए गए, लेकिन कृषि विपणन की माकूल व्यवस्था न होने से सारे प्रयास धराशाई हो गए। इतना ही नहीं, उच्च विकास दर के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ानी ही होगी। अलग-अलग मंडी कानून राज्यों के कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) यानी मंडी संबंधी कानून अलग-अलग हैं। खाद्यान्न के अंतरराज्यीय कारोबार पर कई तरह की बंदिशें, फसलों की खलिहान से सीधी बिक्री पर रोक, मंडी व चुंगी शुल्क समेत कई स्थानीय करों के चलते कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है। संसाधनों के महंगा होने से कृषि लागत बढ़ रही है। मार्केटिंग की व्यवस्था न होने से किसानों को अनाज सस्ता बेचना पड़ता है। वित्त मंत्री को इसके लिए कुछ करना होगा। बढ़ रही आयात पर निर्भरता गेहूं व चावल को छोड़ बाकी फसलों की आयात निर्भरता लगातार बढ़ रही है, जिसे घटाना वित्त मंत्री की चुनौतियों में शामिल होगा। घरेलू खपत का 50 फीसदी से अधिक खाद्य तेल आयात हो रहा है। वहीं, दालों का आयात पिछले एक दशक में बढ़कर 40 से 45 लाख टन पहुंच गया है। मांग व आपूर्ति के इस असंतुलन को दूर करने की जरूरत है।

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