Friday, February 25, 2011

हरित प्रदेश पर मंडराता बंजर होने का खतरा


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस हरित प्रदेश की मांग जोर पकड़ रही है, उसकी लहलहाती धरती पर बंजर हो जाने का खतरा मंडराने लगा है। यहां के लोग न चेते तो वह दिन दूर नहीं जब लोगों को एक एक बूंद पानी को तरसना पड़ेगा। सूबे के पेयजल संकट ग्रस्त 42 जिलों में से 22 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। यानि पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी बुंदेलखंड की राह पर है। भूगर्भ से बोरिंग व नलकूपों के जरिए अंधाधुंध पानी निकाले जाने और उसी अनुपात में भूजल स्त्रोतों तक पानी नहीं लौटा पाने के कारण जल संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है। इससे भूमि की उर्वरता और पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। केंद्रीय रिपोर्ट के मुताबिक, जो 42 जिले पानी के अति दोहन का शिकार हैं, उनमें चार जिले मध्य उत्तर प्रदेश, 12 पूवरंचल, चार जिले बुंदेलखंड और 22 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। प्रभावित पश्चिमी जिलों में आगरा, अलीगढ़, बागपत, बरेली, बिजनौर, बदायूं, एटा, फिरोजाबाद, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, हाथरस, जेपीनगर, मेरठ, कन्नौज, मथुरा, मैनपुरी, रामपुर, कांशीरामनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर व मुजफ्फरनगर व बुलंदशहर शामिल हैं। इनमें से अतिदोहन से गिरते जल स्तर की स्थिति मुजफ्फरनगर व सहारनपुर के आठ-आठ विकास खंडों में बेहद चिंताजनक हैं। इसी तरह बदायूं जिले के सात, आगरा के छह, बागपत, मुरादाबाद व फिरोजाबाद के पांच-पांच ब्लाक डार्क चिह्नित किए गए हैं। मानसून साथ न दे तो यहां सूखे के हालात विकट हो जाते है।

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