Sunday, January 9, 2011

1000 एकड़ में लगेंगे मलेरियारोधी पौधे

मलेरिया की दवा आर्टीइथर बनाने के लिए आर्टीमिसिनिन रसायन की विश्व की जरूरत का अस्सी फीसदी अकेले चीन पूरा करता है। चीन के इस दबदबे को टक्कर देने को अब देश के किसानों ने कमर कस ली है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और गुजरात के किसानों ने सीमैप और रतलाम की दवा कंपनी के साथ हाथ मिलाया है। यूपी और उत्तराखंड के एक हजार एकड़ क्षेत्र में मलेरियारोधी पौधे आर्टीमीसिया एन्नुआ को उगाने की तैयारी है। इसके लिए सीमैप द्वारा विकसित आर्टीमीसिया एन्नुआ की आरोग्या किस्म की नर्सरी तैयार कर ली गई है और अब इन पौधों को रोपने की तैयारी है। दवा कंपनी ने पौधे लगाने को यूपी के 150 से अधिक किसानों के साथ अनुबंध किया है। इसके तहत कंपनी ने सीमैप द्वारा तैयार बेहतर किस्म के बीज किसानों को नर्सरी लगाने को दिए हैं। अब किसान 30 दिनों के भीतर खेतों में रोपाई का काम पूरा कर लेंगे। तीन माह में फसल तैयार हो जाएगी। अनुबंध के मुताबिक तैयार फसल को कंपनी सीधे खेत से उठा लेगी। बुंदेलखंड के 200 एकड़ क्षेत्र में पहली बार औषधीय पौधों की खेती की जा रही है।
हर वर्ष 60 टन आर्टीमिसिनिन की जरूरत : मलेरिया भारत और अफ्रीका जैसे विकासशील देशों की बीमारी है। मलेरियारोधी दवा तैयार करने के लिए भारत को हर साल 60 टन से अधिक आर्टीमिसिनिन की जरूरत पड़ती है। जिसकी आपूर्ति फिलहाल चीन के ऊपर निर्भर है। आर्टीमिसिनिन का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मूल्य 400 डॉलर प्रति किलोग्राम है। जाहिर है कि दवा कंपनियों को कच्चे माल के लिए विदेशी मुद्रा के रूप में मोटी रकम अदा करनी पड़ती है।


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