Saturday, January 8, 2011

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अब गेहूं की तरह बोएंगे धान

सूखे की मार झेलने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए खुशखबरी। अब पानी की कमी से धान की फसल बर्बाद न होगी। साथ ही रोपाई के लिए खेतों में पानी भी नहीं भरना पड़ेगा। वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने गेहूं की तर्ज पर धान को पंडलिंग विधि से उगाने में सफलता हासिल कर ली है। नई विधि से पैदावार भी अपेक्षाकृत अधिक होगी। अभी तक धान की फसल को ट्रांसप्लांटेशन विधि (रोपाई) से उगाया जाता है। इसके तहत खेतों को पानी से भरकर पौध लगाई जाती है। इसमें पानी की बहुत अधिक खपत होती है। इसके लिए किसान मानसून के अलावा नहर, राजवाहों और नलकूपों पर पूरी तरह आश्रित हैं। यदि मानसून धोखा दे जाए या नहर और राजवाहों में समय से पानी न छोड़ा जाए तो फसल बर्बाद होना तय है। खासतौर से खरीफ की फसलों के समय किसानों को सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ता है। जून में तो सूखे के हालात पैदा हो जाते हैं। बिजली की कमी के चलते नलकूपों से भी सिंचाई नहीं हो पाती। बुलंदशहर स्थित सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि अनुसंधान केंद्र में पिछले तीन साल से धान को गेहूं की तर्ज पर पंडलिंग विधि से उगाने पर चल रहे शोध के सकारात्मक परिणाम निकले हैं। अनुसंधान केंद्र प्रभारी कृषि वैज्ञानिक डा.एमके कौशिक ने बताया कि सफल प्रोजेक्ट को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद भेजा गया है। इन नए प्रोजक्ट में वैज्ञानिक सलाहकार परिषद की सलाह पर कई बदलाव (मोडिफिकेशन) भी किए गए हैं। कौशिक ने बताया कि अभी तक एक किलोग्राम चावल पैदा करने में 250 से 300 लीटर पानी की जरूरत होती है। इस विधि से पानी की 30 से 40 फीसदी बचत होगी। बीजों की बुआई के चलते अब रोपाई को मजदूरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यानि लेबर कम लगेगी। बरसात के बाद फसल में कीट और रोग लगने की आशंका कम हो जाएगी। सबसे बड़ी बात यह कि पंडलिंग विधि से धान की पैदावार काफी बढ़ जाएगी।

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