Friday, January 7, 2011

कृषि की चुनौती

पंजाब में किसानों का गेहूं और धान के परंपरागत द्विफसली चक्र में उलझे रहना सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। तमाम प्रयासों के बावजूद सरकार किसानों को द्विफसली चक्र से निकाल नहीं पा रही है। हर वर्ष सरकार और कृषि विभाग गेहूं और धान की फसल का रकबा घटाने और अन्य नगदी फसलों का रकबा बढ़ाने का प्रयास करता है किंतु उसके अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आते हैं। परंपरागत खेती के कारण किसान धान की फसल उगाने में भूजल का भी अत्यधिक दोहन करते हैं। इसके अतिरिक्त फसलों के अवशेष जलाने की किसानों की आदत से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। पंजाब में खेती घाटे का धंधा बन कर रह गई है और यही कारण है कि यहां किसान बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं। किसान बैंकों तथा आढ़तियों के कर्जदार होते हैं और कर्ज न चुका पाने की स्थिति में उनकी संपत्ति तक नीलाम हो जाती है। पंजाब में तो यहां तक देखने को मिला है कि कर्जदार किसान अपना गांव तक बेचने की पेशकश कर चुके हैं। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि किसानों को लाभ के धंधे की ओर प्रवृत्त किया जाए। सरकार ने इसके लिए राज्य में परंपरागत द्विफसली खेती के चक्र को तोड़ने की योजना बनाई है किंतु अन्य उपज के लिए समुचित विपणन प्रणाली न होने के कारण वह कारगर नहीं हो पा रही है। राज्य सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार से बारह सौ करोड़ रुपये की मदद की मांग भी की थी किंतु केंद्र ने न तो हां में उत्तर दिया और न ही न में। ऐसी स्थिति में यह योजना भी ठंडे बस्ते के हवाले हो गई। राज्य सरकार अन्य कृषि सहयोगी धंधों की ओर किसानों को ले जाना चाहती है किंतु उसमें सफलता नहीं मिल पा रही है और यही कारण है कि कृषि विभाग गेहूं और धान की खेती का रकबा कम करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह अन्य धंधों को इतना लाभकारी बनाए कि किसान स्वत: उनकी ओर आकर्षित हों।

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