Sunday, January 2, 2011

लद्दाख के बर्फीले इलाके में खेती कर रहे वैज्ञानिक

आकाश चूमती धरती। पल-पल होती बर्फबारी। ठिठुरती ज्ंिादगी और पत्थर की तरह बेजान बन चुके खेत। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के वैज्ञानिकों ने इसी लद्दाख में अपनी सूझबूझ से ऐसा चमत्कार कर दिखाया कि कामयाबी पर आसमां भी झुक गया। लद्दाख के इस क्षेत्र में खेतीबाड़ी की क ल्पना भी नहीं की जा सकती थी। सैनिकों के लिए आगरा और चंडीगढ़ से खाद्य जरूरतें पूरी की जाती थीं। 1952 में नेहरू ने यहां के दौरे में हाई आल्टीट्यूड तकनीक पर रिसर्च की ख्वाहिश जताई थी। डीआरडीओ के डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई आल्टीट्यूड रिसर्च लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने इसे चुनौती के रूप में लिया। डीआरडीओ के डायरेक्टर (पब्लिक इंटरफेस) रवि गुप्ता ने बताया कि लेह में समुद्र तल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कार्यशाला कोल्ड एयर्ड एग्रो-एनीमल टेक्नोलॉजी से लैस है। इंस्टीट्यूट के रणवीर सिंह पुरा, परतापुर-सियाचिन और कारगिल में तीन रिसर्च सेंटर हैं। गाय, बकरी, मुर्गी की ऐसी नस्ल तैयार की गई है जो -20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर दूध और अंडे देने में सक्षम हैं। इस बर्फीले रेगिस्तान में अब 78 किस्म की सब्जियां, सेब, अंगूर सहित दो दर्जन से अधिक फल उगाए जा रहे हैं, जिससे सेना अब केवल 40 फीसदी खाद्य सामग्री मैदानों से मंगाती है। इसके लिए उत्पादन और पशुपालन से स्थानीय किसानों को जोड़ा जा रहा है।

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