Saturday, January 1, 2011

अब गंगा के मैदानी राज्यों पर ही एतबार

आम आदमी को महंगाई से निजात दिलाने और खाद्य सुरक्षा की गारंटी बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ही दे सकते हैं। अभी तक खाद्य सुरक्षा का दायित्व निभा रहे पंजाब और हरियाणा के खेत चुकने के कगार पर हैं। ऐसे में दूसरी हरितक्रांति के लिए गंगा के मैदानी इलाके वाले इन राज्यों पर खास ध्यान देने की जरूरत है। यह बात प्रधानमंत्री को शुक्रवार को सौंपी गई राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी की रिपोर्ट में कही गई है। अकादमी के अध्यक्ष डॉक्टर मंगला राय ने रिपोर्ट जारी करते हुए सरकार की वर्तमान कृषि नीति की आलोचना भी की। उन्होंने दूसरी हरितक्रांति की शुरुआत को आधे-अधूरे मन से किया गया प्रयास बताया। साथ ही सरकारी बजट को ऊंट के मुंह में जीरा करार दिया। डॉ. राय ने कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा को लेकर कई सवाल भी खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि भारत में विश्व का 4.2 फीसदी पानी और 2.3 फीसदी जमीन है। इन्हीं संसाधनों के बल पर भारत दुनिया की 17 फीसदी आबादी का पेट भरता है। विश्व औसत के मुकाबले हमारी खेती पर पांच गुना दबाव है। पंजाब और हरियाणा की भूमि की क्षमता लगातार घट रही है, इस ओर ध्यान न दिए जाने पर रिपोर्ट में गंभीर चिंता जताई गई है। जबकि इन्हीं राज्यों पर खाद्यान्न सुरक्षा का भार है। अंधाधुंध दोहन से जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। अब सारी संभावनाएं पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल पर टिकी है। रिपोर्ट की दो दर्जन से अधिक सिफारिशों में मुख्य रूप से कहा गया है कि भूख, गरीबी, कुपोषण और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई अब गंगा के मैदानी इलाके वाले राज्यों के किसानों के खून पसीने से लड़ी जा सकती है। कृषि अकादमी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी क्षेत्रों के राज्यों में फसलों के उन्नत प्रजाति बीजों का संकट है। अच्छी उत्पादकता और गुणवत्ता वाले बीजों की खेती करने और उसे किसानों को रियायती दर पर उपलब्ध कराने की सिफारिश की गई है। बिहार में सिंचाई के लिए कम गहराई वाले ट्यूबवेल लगाने के सुझाव के साथ झारखंड की अम्लीय भूमि की सेहत बनाने के लिए मिशन शुरू करने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में पश्चिमोत्तर क्षेत्र के राज्यों पंजाब-हरियाणा में पोषक तत्वों और जल संकट से खेती के तबाह होने का खतरा बताते कुछ सुझाव दिए गए हैं। यहां गेहूं व चावल की खेती से तौबा कर पशुधन और बागवानी पर अतिरिक्त जोर देने की सिफारिश की गई है।

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