Wednesday, January 26, 2011

जैविक खाद से भट्ठों पर पकाई जा रही ईंट


जमीन के लिए सबसे ताकतवर खादप्रेस मड

इसके इस्तेमाल से बढ़ जाता है जीवाश्म का लेवल
खेतों के लिए गुणवान है मैली

मुरादाबाद। गन्ने की मैली यानीप्रेस मडको उम्दा जैविक खाद माना जाता है। खेतों में इसके इस्तेमाल से केवल जीवाश्म का लेवल बढ़ता है बल्कि लाभकारी आर्गेनिक कार्बन मिट्टी में पहुंचते हैं। लेकिन खेतों कीजानकही जाने वाली इस मैली का इस्तेमाल ईंधन के रूप में हो रहा है। भट्ठों में इसे झोंक ईंट पकाई जा रही हैं। हालांकि इस पर सिर्फ किसानों का हक होना चाहिए लेकिन सरकारी मशीनरी की अनदेखी और सख्त कानून बनने से उत्तर प्रदेश की धरती को एक बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है।
रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से बिगड़ती जमीन की दशा को सुधारने के लिए यूं तो हर साल करोड़ों का बजट जारी होता है। जैविक खाद के बढ़ावे को तमाम प्रोग्राम बने हैं। लेकिन दूसरी तरफ जैविक खाद की सूची में नंबर एक पर गिनी जाने वाली मैली को जलाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में 126 चीनी मिलें गन्ने की खरीद कर रही हैं। एक मिल में लाखों कुंतल गन्ने की पेराई होती है। एक कुंतल गन्ने में करीब चार प्रतिशत मैली निकलती है। अनुमान लगाइए कि अगर इस मैली को प्रदेश के गन्ना किसानों को ही दे दिया जाए तो कितना मुनाफा होगा। गन्ने की पैदावार में तो बढ़ोत्तरी होगी ही क्वालिटी भी सुधर जाएगी। मौजूदा समय में मैली सोलह से अट्ठारह रुपये कुंतल बेची जा रही है। जबकि पिछले साल मुश्किल से आठ रुपये कुंतल बिकी। प्रदेश में ईंट भट्ठों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिससे मैली के रेट भी बढ़ गए हैं।
भट्ठा मालिकों का कहना है कि गन्ने की मैली सूखने के बाद कोयले से भी अच्छी जलती है। इसका ईंधन सस्ता भी पड़ता है। उपगन्ना आयुक्त सुल्तान अहमद ने बताया कि मैली तो किसानों को अभी भी मिल रही है लेकिन भट्ठों पर भी जलाई जा रही है। मैली अच्छी खाद मानी जाती है लिहाजा खेतों में ही पहुंचनी चाहिए।
मैली के इस दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रदेश सरकार कानून बनाने जा रही है जिसके लिए हर जिले से रिपोर्ट मंगाई जा चुकी है।

कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर वीरेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि इसके इस्तेमाल से पैदावार में इजाफा हो जाता है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के साथ तमाम सूक्ष्म माइक्रो एलीमेंट होते हैं। मिट्टी के लिए लाभकारी जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ जाती है। पौधे में रोग से लड़ने की ताकत आती है। क्योंकि भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती है लिहाजा बार बार सिंचाई भी नहीं करनी पड़ती।


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