Sunday, January 2, 2011

25000 किसानों ने ऊसर भूमि से किस्मत बदली

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों उत्तरकाशी व चमोली के 25 हजार किसानों ने संघे शक्ति कलियुगे के मूल मंत्र की मदद से किस्मत की नई कहानी लिख डाली। ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाने के साथ ही किसान फल सब्जियां व अनाज के रूप में सालाना साठ करोड़ रुपये की कमाई कर रहे हैं। विषम भौगोलिक परिस्थितियों में अथाह श्रम का अवमूल्यन गरीबी और बेरोजगारी के रूप में सामने आ रहा है। पलायन से खाली हो चुके गांव दिलों में दर्द पैदा कर रहे हैं। पेट के लिए जड़ों को छोड़ना मजबूरी बन चुका है। पहाड़ों का यह वीराना हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के संचालक महेंद्र कुंवर को भी भीतर तक कचोट गया और उन्होंने हालात से समझौता करने के बजाय उन्हें बदलने की ठानी। मानव प्रबंधन के बेहतर इस्तेमाल का नतीजा अब सामने है। एक दशक पहले अपनी उत्तरकाशी यात्रा को याद करते हुए कुंवर बताते हैं कि उस वक्त वहां किसानों की दशा बहुत दयनीय थी। वे जो कुछ भी उगाते उसका कुछ ही भाग बाजार में पहुंचता था। जो माल बाजार में जाता भी था, उसका सिर्फ 10 फीसदी लाभ कृषकों को मिल पा रहा था। इसे देखते हुए कुंवर ने किसानों के समूह बनाने का काम शुरू किया। अलग-अलग बाजार में पहुंच रहे माल को एक जगह एकत्र करवाया। अब माल बड़ी मात्रा में एक साथ बाजार पहुंचने लगा था। उन्होंने चमोली के ग्रामीणों को भी एकत्र किया। बाजार की मांग के हिसाब से फसल उगाने का काम शुरू हुआ। जानकारी मिलने पर ग्रामीणों के समूह खुद ही यह तय करने लगे कि कौन सा गांव कब कौन सी सब्जियां या अनाज उगाएगा। आज उनकी फसलों के 38 उत्पाद बाजार में पैठ बना चुके हैं। ग्रामीण समूह आज 35 हजार टन से अधिक फल सब्जियों व अनाज को देश के विभिन्न बाजारों में पहुंचा रहे हैं।

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