Thursday, January 13, 2011

भौगोलिक पहचान गढऩे की राजनीति

किसान आत्महत्या को रोकने के जितने प्रयास किए गए हैं, वे अब तक नाकाफी साबित हुए हैं और आत्महत्याओं के आंकड़े साल-दर-साल बढ़े ही हैं। विदर्भ क्षेत्र में कई गांवों की पहचान किसानों की आत्महत्या से होती है और समेकित रूप से देश के भीतर विदर्भ की पहचान सुसाइड बेल्टके तौर पर। देश में ऐसी अलग-अलग पहचान के कई क्षेत्र हैं, जिन्हें किसी खास विशेषता के साथ जोड़ दिया गया है। बीते दशक में कई साल विदर्भ के मुकाबले छत्तीसगढ़ में अधिक किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन किसान आत्महत्या जैसे विषय के साथ छत्तीसगढ़ स्वाभाविक तौर पर चर्चा में नहीं रहता। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि नक्शे पर खींची गई कई पट्टियों के दायरे में छत्तीसगढ़ आता है और इनमें से किस पट्टी के साथ छत्तीसगढ़ के नाम को नत्थी किया जाए, इसे सत्ता अपनी सुविधानुसार अपने प्रचार तंत्र के जरिए स्थापित करती है। छत्तीसगढ़ को रेड कॉरीडोरके प्रतिनिधि चेहरे के बतौर जाना जाता है।
गृह मंत्रालय द्वारा आधिकारिक-अनाधिकारिक तौर पर हर साल यह दावा किया जाता है कि देश के भीतर रेड कॉरीडोरलगातार अपना विस्तार कर रहा है। इसको विस्तार देने से न सिर्फ देश के भीतर किसी विकास परियोजना के नाम पर हो रहे विस्थापन विरोधी आंदोलन को रोकने में सहूलियत होती है, बल्कि एक ऐसा प्रदेश, जो आत्महत्या के मामले में शिखर पर पहुंच कर किसान आत्महत्या जैसे बेहद संवेदनशील विषय पर राज्य की असफलता को और अधिक प्रमाणित करने का जरिया बनता, उसे उस पहचान से विमुख किया जाता है। इससे फायदा यह होता है कि सुसाइड बेल्टसे इस क्षेत्र को गायब मान लिया जाता है और इस अहसास को प्रमुखता दी जाती है कि आत्महत्या रोकने में राज्य सफल हो रहा है। रेड कॉरीडोरको लंबा करने और सुसाइड बेल्टको छोटा करने के साथ ही राज्य और सरकार की सफलता-असफलता जुड़ी हुई है और इसकी लंबाई-चौड़ाई तात्कालिक राजनीतिक परिस्थितियों के मुताबिक बदलती रहती है।
पहचान निर्मिति एक बड़ी राजनीतिक योजना के साथ होती है और इसका न सिर्फ प्रतीकात्मक महत्व है, बल्कि इसमें किसी एक पूरी राजनीतिक विरासत को बिल्कुल भिन्न लबादे में उतारने की भी कोशिश रहती है। मसलन, 1 मई सारी दुनिया में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है और इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई, जहां के मजदूरों ने प्रतिदिन आठ घंटे को कार्यदिवस के रूप में मानने-मनवाने के लिए लंबा संघर्ष किया। लेकिन, 1984 में रोनाल्ड रीगन ने यह कहते हुए इस दिन को कानून दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया कि दो सौ साल पहले इस दिन मुक्ति और कानूनके बीच साझेदारी का आरंभ हुआ था। बकौल चोम्सकी, इस घोषणा के बाद मजदूर दिवस का पूरा राजनीतिक संघर्ष राष्ट्रवाद के प्रतीक के तौर पर परिवर्तित हो गया।
राज्य की सहभागिता के बगैर ऐसी किसी भी पहचान का स्थानांतरण मुश्किल होता है। मसलन, नर्मदा में पिछले 25 साल से बड़े बांधों के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण स्थानीय जनता और मानवाधिकार कार्यकर्ता नर्मदा बचाओ आंदोलनके बैनर तले संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष के दौरान नर्मदा घाटी की एक ऐसी पहचान निर्मित हुई, जिसमें लोग अथक आंदोलन करते हुए सरकारों और कॉरपोरेट ताकतों से जूझ रहे हैं। अब नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की है कि वे सरदार पटेल की ऐसी प्रतिमा यहां लगाएंगे जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। इस प्रतिमा को लगाने के साथ ही इस घाटी की पहचान और राजनीतिक संघर्ष को झटके में बदलने की यह कोशिश है। सरदार पटेल की पहचान को सरदार सरोवर बांध के साथ मोदी देख रहे हैं और सबसे ऊंचा, सबसे लंबा, सबसे पहले जैसे सामान्य ज्ञान के प्रश्नों के साथ ही गुजरात और नर्मदा घाटी की पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
देश में सुसाइड बेल्टके तहत कई नए क्षेत्र उभर रहे हैं। तमिलनाडु के तिरुपुर में पिछले दो साल में एक हजार से अधिक कपड़ा मजदूरों ने आत्महत्या की। तिरुपुर अभी तक डॉलर सिटी, कॉटन सिटी जैसे नामों से जाना जाता रहा है, लेकिन अब इसे तमिलनाडु की आत्महत्या राजधानी कहा जा रहा है। मजदूरों की आत्महत्या देश में इस अर्थ में नई है कि आत्महत्या को किसान के साथ जोड़ दिया गया है, इसलिए तिरुपुर को सुसाइड बेल्टमें आने में वक्त लग सकता है।

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