Friday, January 28, 2011

खादान संकट की पुनरावृति


लेखक खाद्य संकट के कारणों पर प्रकाश डाल रहे हैं ……
2008 के खाद्यान्न संकट की पुनरावृत्ति महज तीन साल के भीतर हो गई तो इसका कारण यही है कि तब इसका तात्कालिक उपाय ही ढूंढ़ा गया था। 5 जनवरी को संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने कहा कि दिसंबर में खाद्य सूचकांक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। पहले जहां खराब मौसम के चलते खाद्य पदाथरें की कीमतें ऊंची होती थीं, वहीं अब मांग और आपूर्ति के लगभग बराबर होने कारण इनमें उफान आया है। दरअसल, जनसंख्या व खपत में वृद्धि के कारण जहां मांग में तेजी आई, वहीं मिट्टी अपरदन, भूजल Oास, वैश्विक तापवृद्धि के कारण उत्पादन के मोर्चे पर दुनिया मात खा रही है। जनसंख्या वृद्धि के कारण हर रोज 2,19,000 व्यक्ति बढ़ रहे हैं। इसके अलावा दुनिया में 300 करोड़ लोग खाद्य श्रृंखला में ऊपरी पायदान पर चढ़ रहे हैं, जिससे अनाज के प्रत्यक्ष की बजाय अप्रत्यक्ष उपभोग को बढ़ावा मिल रहा है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आय बढ़ने और खान-पान की पश्चिमी शैली अपनाने के कारण दूध, मांस, अंडे की खपत अप्रत्याशित ढंग से बढ़ी है। आज चीन की कुल मांस खपत अमेरिका की तुलना में दोगुना हो चुकी है। अनाज से ईंधन बनाने के प्रचलन से अनाजों का गैर खाद्य उपभोग बढ़ा है। उदाहरण के लिए अमेरिका में 2009 में 41.6 करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ, जिसमें से 11.9 करोड़ टन अनाज ईंधन बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया। यह अनाज 35 करोड़ लोगों की साल भर की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। अमेरिका ने एथनॉल फैक्टरियों में भारी निवेश करके मनुष्य के पेट और कारों की टंकी के बीच जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी है। उपरोक्त कारणों से खाद्यान्न की खपत तेजी से बढ़ी है। उदाहरण के लिए 1990 से 2005 के बीच जहां विश्व की अनाज खपत में हर साल 2.1 करोड़ टन की बढ़ोतरी हो रही थी, वहीं 2005-10 के बीच यह 4.1 करोड़ टन तक पहुंच गई। लेकिन जहां अनाजों की खपत में दो गुनी बढ़ोतरी हुई है, वहीं पैदावार में बढ़ोतरी रुक सी गई। विश्व के अधिकांश सिंचित क्षेत्रों में भूजल पर दबाव बढ़ा है। गहराई से पानी खींचने में सक्षम सबमर्सिबल पंपों के बड़े पैमाने पर प्रचलन ने भूजल Oास की समस्या को और गंभीर बनाया। पिछले दशक में कृषि पैदावार के सबंध में एक नई घटना यह घटी है कि तकनीक के मामले में सर्वाधिक उन्नत देशों में भी उत्पादकता में ठहराव आ गया है। उदाहरण के लिए धान की उत्पादकता में चोटी पर रहे जापान में पिछले 14 वषरें से प्रति हेक्टेयर पैदावार जस की तस बनी हुई है। विश्व के अनाज उत्पादन में गिरावट का एक कारण कृषि भूमि का गैर कृषि कार्य के लिए बढ़ता उपयोग है। नगरों के विस्ताार, औद्योगिक इकाइयों, सड़क, पार्किंग स्थल आदि के कारण कृषि भूमि तेजी से कम होती जा रही है। तेजी से फैलते शहर उपजाऊ जमीन के साथ-साथ सिंचाई के पानी को भी निगल रहे हैं। जो पानी सिंचाई के काम आता था उसकी आपूर्ति शहरों में होने लगी है। वैश्विक तापवृद्धि के चलते खाद्यान्न की उत्पादकता में तेजी से गिरावट आ रही है। पिछले साल रूस में जून से मध्य अगस्त तक चली गर्म हवाओं के कारण फसलें सूख गईं और देश का अनाज उत्पादन 10 करोड़ टन से घटकर 6 करोड़ टन रह गया। बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। खाद्यान्न संकट के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कीमतों में बढ़ोतरी अब तात्कालिक घटना नहीं रह गई है क्योंकि जिन कारणों से कीमतें बढ़ रही हैं उनके फिर से सामान्य होने की उम्मीद कम ही है। अत: दुनिया को अपनी प्राथमिकता बदलनी होगी। सैन्य खर्च की तुलना में जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने, मिट्टी व जल संरक्षण, जनसंख्या स्थिरीकरण जैसे उपायों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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