Saturday, January 15, 2011

अब गन्ने और दलहन की खेती एक साथ

उत्तर प्रदेश का कृषि विभाग अगले महीने से मिश्रित खेती का एक अभिनव प्रयोग करने जा रहा है। खेतों में एक लाइन में गन्ना रहेगा तो दूसरी लाइन में उड़द, मसूर व अन्य दलहनी फसलें। ज्वार व बाजरा के खेतों में अब अरहर की बोआई भी होगी। इस वर्ष एक लाख 54 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल गन्ने के खेतों में दालें बोई जाएंगी तो अगले वर्ष से इनका क्षेत्रफल बढ़कर चार लाख 84 हजार 400 हेक्टेयर अभी से निर्धारित कर दिया गया है। भविष्य में इसे और भी बढ़ाने की योजना है। किसानों में इस मिश्रित खेती के प्रति दिलचस्पी बढ़ाने के लिए राज्य सरकार 1200 रुपये क्विंटल की सब्सिडी को बढ़ा चार हजार रुपये क्विंटल करने जा रही है। विभाग की इस महत्वाकांक्षी योजना को राज्य के आगामी बजट में भी शामिल कर लिया है। फसलोत्पादन में वृद्धि की उक्त योजना के अनुसार मूंगफली के शौकीनों को गर्मी में पैदा होने वाली मूंगफली की नई फसल का भी स्वाद मिल सकेगा। फर्रुखाबाद, औरैया, मैनपुरी, इटावा व उसके आसपास के इलाकों को मार्च माह में मूंगफली बोने के लिए चिन्हित किया गया है। मार्च में बोई गई मूंगफली की फसल जून-जुलाई के मध्य तैयार हो जायेगी। इसकी बोआई के लिए 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल निर्धारित किया गया है। कृषि निदेशक मुकेश गौतम कहते हैं कि गन्ने के साथ दलहनी फसलें बोने के लिए अगले माह से कृषि अधिकारियों की टीमें अलग-अलग क्षेत्रों में किसानों में अलख जगाने निकलेंगी। कृषि विभाग के सर्वेक्षण में पाया गया कि 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच जिस समय गन्ने की बोआई होती है, उसी समय जायद की फसलों में उड़द, मूंग व कुछ अन्य दलहनी फसलें भी बोई जाती हैं। ढाई-तीन महीने तक गन्ने की फसल छोटी रहती है, इसलिए उड़द व मूंग की फसल को धूप मिलने की कोई कठिनाई नहीं होगी। गन्ने में नाइट्रोजन की जरूरत पूरी करने के लिए यूरिया का प्रयोग किया जाता है, लेकिन दलहनी फसलों में नैसर्गिक रूप से यह क्षमता होती है कि वे वातावरणीय नाइट्रोजन को इकट्ठा कर लेती हैं।


No comments:

Post a Comment